जयपुर.गुलदाउदी का फूल, जिसमें खुशबू तो नहीं होती, लेकिन इसकी खूबसूरती स्वतः लोगों को आकर्षित करती है. यही वजह है कि साल 1986 में राजस्थान विश्वविद्यालय ने 200 पौधों की खेप के साथ गुलदाउदी प्रदर्शनी शुरू की थी. आज 34 साल बाद 70 किस्मों में करीब 5000 पौधे हर साल यहां बेचे जाते हैं. विश्व में 8 ग्रुप में गुलदाउदी की पैदावार होती है. इनमें से 6 ग्रुप पोमपोम, बटन, स्पाइडर, इनकवर्ड, कोरियन सिंगल, कोरियन डबल की तकरीबन 60 से 80 किस्में यहां तैयार की जाती हैं.
साल 2012 तक तो गमले सहित महज 40 रुपये में ये पौधा लोगों के घरों की शान बन जाया करता था. बीते साल तक इसके दाम 100 रुपये तक जा पहुंचे. लोगों के बीच अपनी छाप छोड़ चुके गुलदाउदी की उम्र भले ही 3 महीने हो, इसके बावजूद भी लोग बड़े शौक से इसे अपने घर लेकर जाते हैं. हालांकि 2020 जो अपने साथ कोरोना संकट लेकर आया. ये संकट ना सिर्फ इंसानों पर पड़ा बल्कि उन सभी वस्तुओं पर भी पड़ा, जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इंसानों के साथ जुड़ाव है.
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राजस्थान विश्वविद्यालय की नर्सरी में उगने वाला गुलदाउदी भी इन्हीं में से एक है. जो इस बार शायद इतने रंग नहीं बिखेर पाएगा, जो हर साल देखने को मिला करते थे. जिसकी बड़ी वजह कोरोना और इससे प्रभावित हुई सेवाएं भी हैं. दरअसल, इस पौध को तैयार करने में 10 से 12 कर्मचारी 4 से 6 महीने झोंकते हैं, लेकिन इस बार ये कर्मचारी विश्वविद्यालय नर्सरी तक ही नहीं पहुंच सके. लॉकडाउन के दिनों में तो महज एक कर्मचारी ही इन हजारों पौधों का रखवाला था. जो करीब 5000 पौधों को तो खराब होने से बचा ना सका.
प्रदर्शनी लगने के चांस न के बराबर