जयपुर. हर भारतीय नागरिक के लिए हर साल 26 नवंबर का दिन बेहद खास होता है. दरअसल यही वह दिन है जब देश की संविधान सभा ने मौजूदा संविधान को विधिवत रूप से अपनाया था. यह संविधान ही है जो हमें एक आजाद देश का आजाद नागरिक की भावना का एहसास कराता है. जहां संविधान के दिए मौलिक अधिकार हमारी ढाल बनकर हमें हमारा हक दिलाते हैं, वहीं इसमें दिए मौलिक कर्तव्य में हमें हमारी जिम्मेदारियां भी याद दिलाते हैं. हर वर्ष 26 नवंबर का दिन देश में संविधान दिवस (Constitution Day) के तौर पर मनाया जाता है. संविधान दिवस पर पढ़िए ये खास रिपोर्ट...
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देश को आजादी मिलने के बाद 9 दिसंबर 1947 को संविधान सभा का पहला सत्र (First Session of the Constituent Assembly) आयोजित हुआ तो देशवासियों के मन में था कि अंग्रेज तो देश छोड़ ही चुके हैं, अब संविधान भी भारतीय होगा और देश में कानून भी भारत के रहेंगे. लेकिन आजादी को सात दशक से ज्यादा समय बीतने के बाद भी देश के प्रमुख कानून अंग्रेजों के बनाए हुए ही हैं.
संविधान निर्माण के समय संविधान सभा के सदस्यों का यह मानना रहा होगा कि एक साथ नए कानून बनाना संभव नहीं है. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 13 में प्रावधान किया गया कि जो तत्कालीन कानून संविधान के मूल अधिकारों से नहीं टकराते हैं, उन्हें लागू रखा जाएगा. भले ही संविधान आम आदमी के अधिकारों का रक्षक है, लेकिन आज देखा जाए तो न्यायपालिका अंग्रेजों के कानूनों पर ही टिकी हुई है. अदालतें साक्ष्य अधिनियम के तहत गवाहों का परीक्षण कर भारतीय दंड संहिता में बताए अपराधों को लेकर दंडित करने का काम करती है. लेकिन भारतीय दंड संहिता जहां 1860 में बनी थी तो वहीं साक्ष्य अधिनियम भी 1872 में लागू हुआ था.
सर्वप्रथम तिलक को हुई थी सजा, आज भी है लागू
ब्रिटिश काल (British period) में स्वतंत्रता की मांग करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का उपयोग कर दबाया जाता था. बाल गंगाधर पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें इस कानून के तहत सजा हुई थी. वहीं महात्मा गांधी, भगत सिंह और जवाहर लाल नेहरू सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अंग्रेजों ने इस धारा का बखूबी प्रयोग किया. इस कानून के तहत वर्ष 1922 में महात्मा गांधी पर भी यंग इंडिया में उनके लेखों के कारण राजद्रोह का मुकदमा दायर किया गया था.