जयपुर. आम जनता की तकलीफों को सुनने के और उन्हें न्याय दिलाने के उद्देश्य से प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में मंत्री दरबार लगाकर आम कार्यकर्ताओं की जनसुनवाई शुरू तो की गई, लेकिन मंत्रियों की ओर से जनसुनवाई को लेकर कोई खास महत्व नहीं दिए जाने के चलते यह जनसुनवाई प्रदेश कांग्रेस के लिए एक बोझ बनती जा रही है. जनसुनवाई के काम को देख रहे कांग्रेस नेताओं को आए दिन यह सुनना पड़ता है कि तय होने के बाद भी मंत्री प्रदेश कांग्रेस कार्यालय अपनी व्यस्तता के चलते नहीं आ रहे हैं और आ भी रहे हैं तो जो जनसुनवाई यह मंत्री कर रहे हैं उससे जनता को कोई खास समाधान मिल नहीं रहा है.
यही कारण है कि कई बार खुले में मंत्री जनसुनवाई करवाकर लौटे लोग यह कहते नजर आते हैं कि वह कई बार इस जनसुनवाई में आ चुके हैं, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ. मंत्रियों की कांग्रेस कार्यालय में होने वाली (Rajasthan Congress Politics) जनसुनवाई से बेरुखी का आलम यह है कि कांग्रेस पार्टी को घोषित किए जाने के बाद भी अक्सर अपनी जनसुनवाई को स्थगित करना पड़ता है. हालात यह बन गए हैं कि इस 1 सप्ताह में ही तीसरी बार जनसुनवाई को स्थगित करना पड़ा है. जनसुनवाई महज खानापूर्ति बनकर रह गई है.
जून में ईडी के लिए दिल्ली कूच और राज्यसभा चुनावों के चलते बाड़ेबंदी ने लगाया था जनसुनवाई पर ब्रेक : कांग्रेस मुख्यालय में वैसे भी सप्ताह में केवल 3 दिन ही जन सुनवाई होती है, जिसके चलते एक मंत्री का दोबारा नंबर 1 महीने से पहले नहीं आता. वहीं, कांग्रेस पार्टी ने छह मंत्रियों को इसलिए रिजर्व में रखा हुआ है कि अगर कोई मंत्री जनसुनवाई कार्यक्रम में नहीं पहुंच सके तो उसकी जगह दूसरा मंत्री पहुंच जाए. लेकिन ऐसा होता नहीं है. कारण साफ है कि न तो मंत्री दिलचस्पी दिखा रहे हैं और न ही आम जनता को कोई राहत मिल रही है. जून महीने की बात की जाए तो राहुल गांधी पर ईडी की कार्रवाई के विरोध में जनसुनवाई कार्यक्रम स्थगित किए गए थे. वहीं, राज्यसभा चुनाव में जब मंत्री विधायक बड़ेबंदी में चले गए तब भी जनसुनवाई नहीं हो सकी थी.