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विधानसभा में एक बार तो गहलोत को भी सांप सूंघ गया था

विधानसभा में कांग्रेस के लिए एक बारगी अजीब स्थिति बन गई. एक बिल पर पार्टी के विधायक भाजपा नेताओं की ओर से लाए गए अस्वीकार के संकल्प का समर्थन कर बैठे....

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Published : Feb 14, 2019, 4:05 PM IST

कांसेप्ट इमेज।

जयपुर . विधानसभा में एक बिल को लेकर उस समय कांग्रेस के भीतर हड़कंप मच गया, जब पार्टी के विधायकों ने बिल पर वोट कराने को भाजपा की ओर से पेश संकल्प को समर्थन कर दिया. जिसके बाद भाजपा नेता बिल पर वोट डिवीजन कराने की मांग रख दी. इससे कांग्रेस खेमे में अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई. बाद में माजरा समझ में आने के बाद भाजपा की ओर से पेश संकल्प को ध्वनिमत से खारिज करते हुए बिल को पारित करा लिया गया.

दरअसल, विधानसभा में सहकारिता संशोधन विधेयक पर बहस चल रही थी. राज्य में गहलोत सरकार ने 26 दिसंबर 2018 को अध्यादेश के जरिए इस विधेयक में संशोधन कर दिया था. जिसके तहत विधायक रहते हुए भी सहकारी सोसायटी का सदस्य रह सकते है. सदन में अध्यादेश के संशोधन के लिए लाए गए विधेयक पर बहस पूरी होने के बाद सभापति राजेंद्र पारीक ने कहा कि इस अध्यादेश को अस्वीकार करने के पक्ष में जो हों वे हां कहें. इस दौरान कांग्रेस के विधायकों को ना कहना था, लेकिन, गफलत में वे 'ना' के बजाए 'हां' कहने लगे. इसे सुनने के साथ ही सीएम अशोक गहलोत समेत पार्टी के बड़े नेताओं को एक बारगी सांप सूंघ गया. वहीं, कांग्रेस विधायकों की ओर से कहे गए 'हां' को पकड़ते हुए तत्काल नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने बिल पर वोट डिवीजन की मांग रख दी. सदन में कांग्रेस विधायकों से हुई गफलत का मामला समझ में आने के साथ ही कांग्रेस खेमे में हड़कंप मच गया.

क्योंकि, इस गफलत के बीच कांग्रेस विधायकों की 'हां' अपनी सरकार के विधेयक के विरोध का बन गया था. भाजपा नेता वेल में आकर वोट डिवीजन की मांग करने लगे. बाद में सभापति राजेंद्र पारीक ने मामले को संभालते हुए कहा कि उन्होंने कांग्रेस सदस्यों की हां नहीं बल्कि ना सुनी है. इस पर नेता प्रतिपक्ष कटारिया ने विधानसभा के रिकॉर्ड से कार्यवाही की रिकॉर्डिंग मंगाने पर अड़ गए. लेकिन, कुछ देर में समझौता होने के बाद भाजपा नेता अपनी सीट की तरफ चले गए. इसके बाद कांग्रेस सरकार ने भाजपा की तरफ से पेश संकल्प को ध्वनिमत से खारिज करते हुए विधेयक को पारित करवा लिया. आपको बता दें कि पिछली भाजपा सरकार ने 2016 के दौरान सहकारी सोसायटी में यह प्रावधान किया था कि यदि किसी सहकारी सोसायटी का कोई भी सदस्या मंत्री, सांसद या विधायक बनता है तो उसे सोसायटी का पद छोड़ना पड़ेगा. या फिर उसे मंत्री, सांसद और विधायकी को छोड़ना पड़ेगा. लेकिन, अब कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस विधेयक में संशोधन कर दिया गया है. कांग्रेस सरकार की ओर से किए गए संशोधन के तहत अब विधायक रहते हुए भी सहकारी सोसायटी का सदस्य रह सकता है.

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