जयपुर. केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में लाया गया सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक विपक्षी पार्टियों के विरोध के बावजूद पारित हो गया है. राजस्थान सूचना के अधिकार की अगुवाई करने वाला प्रदेश है. देश में सबसे पहले सूचना के अधिकार की मांग राजस्थान से प्रारंभ हुई थी. राज्य में सूचना के अधिकार के लिए 1990 के दशक में मजदूर किसान शक्ति संगठन द्वारा प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय की अगुवाई में भ्रष्टाचार के भंडाफोड़ के लिए जन सुनवाई कार्यक्रम के रूप में शुरुआत हुई थी.
RTI एक्ट में संशोधन को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने, मंत्री बोले- भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए किया बदलाव - संशोधन
सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक विपक्षी पार्टियों के विरोध के बावजूद पारित हो गया है. आरटीआई एक्ट में संशोधन को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हो गई है. कांग्रेस भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए संशोधन करने की बात कह रही है. तो वहीं भाजपा इसे कानून को और अच्छा बनाने के लिए बदलाव बता रही है.
राजस्थान सूचना का अधिकार अधिनियम, 2000 को आखिरकार 11 मई 2000 को पारित किया गया. 12 मई 2005 में राष्ट्रीय सूचना का अधिकार कानून, 2005 संसद द्वारा पारित किया गया. जिसे 15 जून 2005 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली और अंततः 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया गया.
सोनिया गांधी की ओर से एक पत्र जारी कर सूचना के अधिकार में संशोधन पर कड़ा एतराज जताते हुए केंद्र सरकार पर इसे खत्म करने के आरोप लगाए हैं. इसी मुद्दे पर राजस्थान में भी सियासत गरमा गई है. राजस्थान में कांग्रेस सरकार और उसके मंत्री सूचना का अधिकार कानून के समर्थन में खड़े हो गए हैं और इससे छेड़छाड़ पर केंद्र सरकार को जमकर घेरा है. वहीं बीजेपी ने पलटवार करते हुए कहा कि यूपीए सरकार के समय जल्दबाजी में कानून बनाया गया था. जिसमें कई खामियां थी. जिनको व्यवस्थित करने के लिए केंद्र सरकार संशोधन विधेयक लायी है.