जयपुर. सरकार भले ही केंद्र की हो या प्रदेश की हर सरकार इस समय जब कोरोना वायरस का संक्रमण चल रहा है, तो सबसे ज्यादा अगर किसी तबके के लिए काम करना चाहती है तो वह है दिहाड़ी मजदूर. लेकिन दिहाड़ी मजदूरों की परिभाषा ऐसी कर दी गई है कि मानों जो लोग बाहर से आए हैं और फैक्ट्रियों में लेबर का काम करते हैं या किसी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते हैं, वही दिहाड़ी मजदूर है.
देश हो या प्रदेश एक दिहाड़ी मजदूर का तबका ऐसा भी है जिस पर किसी की नजर नहीं जाती है, ये दिहाड़ी मजदूर हैं ऑटो चालक. राजधानी जयपुर में 40 हजार ऑटो चालकों की ऑटो लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही खड़े हो गए हैं. ऐसे में इन ऑटो चालकों के सामने अपने परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल हो गया है. लॉकडाउन 1 में तो किसी तरीके से इन ऑटो चालकों ने काम चला लिया, लेकिन अब लॉकडाउन 2 शुरू होने के साथ ही इन ऑटो चालकों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखना शुरू हो गई है.
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संकट में ऑटो चालक के परिवार
बता दें कि एक तो ऑटो खड़े होने से इनकी कमाई बंद हो गई है, जिससे परिवार संकट में आ गए हैं. तो दूसरी ओर अपने ऑटो की किस्त चुकाने की चिंता भी इनके सामने खड़ी हो गई है. जयपुर महानगर तिपहिया वाहन चालक यूनियन के अध्यक्ष कुलदीप सिंह की मानें तो ऑटो चालकों के साथ दिक्कत यह है कि उनका कोई श्रमिक कार्ड भी नहीं बना हुआ है. इस कारण उन्हें श्रमिक की कैटेगरी में माना ही नहीं जाता है. जबकि उनका काम यह है कि वह रोजाना सवारी को इधर से उधर छोड़ते हैं और उसी से हुई कमाई से अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.
बीकानेर प्रशासन ने ऑटो चालकों को दिए हैं 2 हजार
कुलदीप सिंह का कहना है कि वैसे तो ऑटो चालकों की सरकार से कोई डिमांड नहीं रहती है. लेकिन लॉकडाउन में उनके ऑटो के पहिए ही थम गए हैं, ऐसे में उनके सामने अपने परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल हो गया है. सिंह के अनुसार दिल्ली सरकार ने वहां के ऑटो चालकों को 5 हजार रुपए दिए हैं, जबकि बीकानेर प्रशासन की ओर से ऑटो चालकों को 2 हजार रुपए दिए गए हैं.