जयपुर. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या मामले में दोषी पेरारिवलन की रिहाई से देश भर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में काफी रोष है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पेरारिवलन की रिहाई (gehlot statement on the release of Rajiv Gandhi assassination convict) के लिए तमिलनाडू के राज्यपाल की सिफारिश और केन्द्र सरकार की कमजोर पैरवी को मुख्य कारण बताया है. सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी विशेष शक्ति का प्रयोग करते हुए आरोपी पेरारिवलन को सजा से मुक्त कर दिया.
पेरारिवलन की रिहाई दुर्भाग्यपूर्ण:सीएम अशोक गहलोत ने ट्वीट करते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के दोषी पेरारिवलन की रिहाई दुर्भाग्यपूर्ण है. यह तमिलनाडू के राज्यपाल की ओर से राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई की सिफारिश करने और केन्द्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में बेहतर पैरवी न करने का परिणाम है. गहलोत ने कहा कि इस निर्णय से आम जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में दुख और रोष है.
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11 जून 1991 को पेरारिवलन गिरफ्तार हुए
21 मई 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हत्या हुई थी. 11 जून 1991 को पेरारिवलन गिरफ्तार हुआ. उस पर बम धमाके में काम आई 8 वोल्ट की बैटरी खरीद कर हमले के मास्टरमाइंड शिवरासन को देने का दोष साबित हुआ था. लेकिन पुण्य तिथि के एक दिन पहले ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में दोषी पेरारिवलन को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन की सजा खत्म कर दी है.
राजीव गांधी की हत्या का दोषी रिहा कोर्ट ने अपनी विशेष शक्ति के तहत पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया है. पेरारिवलन 30 साल से ज़्यादा की सजा काट चुका है. उसने कोर्ट को बताया कि उसे रिहा करने के लिए तमिलनाडु सरकार के आदेश को राज्यपाल और केंद्र ने लटका रखा था. घटना के समय 19 साल के रहे पेरारिवलन ने जेल में रहने के दौरान अपनी पढ़ाई जारी रखी. उसने अच्छे नंबरों से कई डिग्रियां हासिल की हैं.
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राज्यपाल ने किया विशेष अधिकार का उपयोग
संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को किसी कैदी की सजा माफ करने का अधिकार है. राज्यपाल ऐसा राज्य सरकार की सलाह पर करते हैं. इस अनुच्छेद में यह नहीं कहा गया है कि राज्यपाल रिहाई की फाइल राष्ट्रपति के पास भेजेंगे. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि पेरारिवलन के मामले में राज्यपाल ने अनुच्छेद 161 के तहत निर्णय लेने में काफी देर की है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट उसे रिहा कर रहा है.