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सीएम गहलोत बोले, NCRB के आंकड़ों का गलत विश्लेषण कर राजस्थान को बदनाम करने का प्रयास - etv bharat Rajasthan news

एनसीआरबी के आंकड़ों को लेकर प्रदेश में सियासी बयानबाजी तेज हो गई है. विपक्ष जहां इसे मुद्दा बनाकर सत्तापक्ष को घेर रहा है , वही खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इन आंकड़ों पर अपना स्पष्टीकरण जारी करना पड़ रहा है. गहलोत ने एक बार फिर दोहराया कि एनसीआरबी के आंकड़ों का गलत विश्लेषण करके राजस्थान को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है.

NCRB के आंकड़ों का गलत विश्लेषण
NCRB के आंकड़ों पर बोले गहलोत

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Published : Sep 2, 2022, 11:03 PM IST

जयपुर.एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों में महिला दुष्कर्म के मामले में राजस्थान पहले पायदान पर पहुंच गया है . एनसीआरबी के इन आंकड़ों (Incorrect analysis of NCRB data) ने प्रदेश की गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है . विपक्ष लगातार इसे मुद्दा बनाकर गहलोत सरकार को घेर रहा है. वहीं, खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिनके पास गृह विभाग का जिम्मा भी है उन्होंने इन आंकड़ों पर अपना स्पष्टीकरण जारी किया है. गहलोत ने कहा कि विपक्ष एनसीआरबी के आंकड़ों का गलत विश्लेषण करते राजस्थान को बदनाम करने का प्रयास कर रहा है.

मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी किए बयान में तर्क दिया गया है NCRB 2021 की क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट के बाद राजस्थान को बदनाम करने के प्रयास किए जा रहे हैं . सामान्य वर्षों 2019 व 2021 के बीच आंकड़ों की तुलना करना उचित होगा. क्योंकि 2020 में लॉकडाउन रहा . राजस्थान में FIR के अनिवार्य पंजीकरण की नीति के बावजूद 2021 में 2019 की तुलना में करीब 5 फीसदी अपराध कम दर्ज हुए हैं. जबकि MP, हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड समेत 17 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में अपराध अधिक दर्ज हुए हैं .

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मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी बयान में तर्क दिया गया है कि गुजरात में अपराधों में करीब 69 फीसदी, हरियाणा में 24 फीसदी और MP में करीब 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है . हत्या, महिलाओं के विरुद्ध अपराध और अपहरण में उत्तर प्रदेश देश में सबसे आगे है. सबसे अधिक कस्टोडियल डेथ्स गुजरात में हुईं हैं. नाबालिगों से बलात्कार यानी पॉक्सो एक्ट के मामले में मध्य प्रदेश देश में पहले स्थान पर है. जबकि राजस्थान 12वें स्थान पर है . अनिवार्य पंजीकरण नीति का ही परिणाम है कि 2017-18 में 33 फीसदी FIR कोर्ट के माध्यम से CrPC 156(3) के तहत इस्तगासे द्वारा दर्ज होती थीं. लेकिन अब यह संख्या सिर्फ 13 फीसदी रह गई है . इनमें भी अधिकांश सीधे कोर्ट में जाने वाले मुकदमों की शिकायतें ही होती हैं.

सरकार बोली, पीड़ित पक्ष के साथः जारी बयान में कहा है कि हमारी सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का नतीजा है कि 2017-18 में बलात्कार के मामलों में अनुसंधान समय 274 दिन था जो अब केवल 68 दिन रह गया है. पॉक्सो के मामलों में अनुसंधान का औसत समय 2018 में 232 दिन था जो अब 66 दिन रह गया है. राजस्थान में पुलिस की ओर से हर अपराध के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई की जा रही है. सरकार पूरी तरह पीड़ित पक्ष के साथ खड़ी रहती है . 2015 में SC-ST एक्ट के करीब 51 फीसदी मामले अदालत के माध्यम से CrPC 156(3) से दर्ज होते थे. अब यह महज 10 फीसदी रह गया है . यह FIR के अनिवार्य पंजीकरण नीति की सफलता है .

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झूठी एफआईआर दर्ज कराकर नीति का दुरुपयोग: मुख्यमंत्री कार्यालय ने अपने बयान में कहा कि यह चिंता का विषय है कि कुछ लोगों ने हमारी सरकार की FIR के अनिवार्य पंजीकरण की नीति का दुरुपयोग किया है. झूठी FIR भी दर्ज करवाईं. इसी का नतीजा है कि प्रदेश में 2019 में महिला अपराधों की 45.28 फीसदी, 2020 में 44.77 फीसदी एवं 2021 में 45.26 फीसदी FIR जांच में झूठी निकली . झूठी FIR करवाने वालों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है एवं आगे भी की जाएगी . जनवरी, 2022 में अलवर में नाबालिग विमंदित बालिका से गैंगरेप का मामला बताकर पूरे देश के मीडिया ने राजस्थान को बदनाम करने का प्रयास किया. लेकिन जांच में सामने आया है कि यह एक सड़क दुर्घटना का मामला था. यह मामला CBI को भी जांच के लिए भेजा था परन्तु CBI ने इस केस की जांच तक अपने पास नहीं ली. जारी बयान में कहा है कि हमारी सरकार की राय है कि चाहे कुछ झूठी FIR भी क्यों नहीं हो रही हों परन्तु अनिवार्य पंजीकरण की नीति से पीड़ितों और फरियादियों को एक संबल मिला है. वो बिना किसी भय के थाने में अपनी शिकायत देकर न्याय के लिए आगे आ रहे हैं.

राजस्थान में सजा का प्रतिशत 48 फीसदी हैः मुख्यमंत्री कार्यालय ने जारी बयान में कहा है कि बलात्कार के प्रकरणों में राजस्थान में सजा का प्रतिश करीब 48 फीसदी है. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये मात्र 28.6 फीसदी है . महिला अत्याचार के प्रकरणों में राजस्थान में सजा का प्रतिशत 45.2 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 26.5 फीसदी है . महिला अत्याचार के प्रकरणों की पेंडिंग प्रतिशत 9.6 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 31.7 फीसदी है . IPC के प्रकरणों में राजस्थान में पेंडिंग प्रतिशत करीब 10 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 35.1 फीसदी है. जारी बयान में कहा है कि चिंता का विषय यह भी है कि यौन अपराधों के करीब 90 फीसदी मामलों में आरोपी एवं पीड़ित दोनों एक दूसरे के पूर्व परिचित (पारिवारिक सदस्य, रिश्तेदार, मित्र, सहकर्मी इत्यादि) होते हैं. यानी यौन अपराधों में परिचित लोग ही भरोसे का नाजायज फायदा उठाकर कुकृत्य करते हैं . हम सभी को इस बिन्दु पर गंभीर चिंतन करना चाहिए कि इस सामाजिक पतन को किस प्रकार रोका जाए.

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