जयपुर.सामाजिक समस्याओं से निजात दिलाने में संस्कृत भाषा और उसमें लिखे साहित्य की भूमिका को निर्धारित करना जरूरी है. संस्कृत जब आम आदमी की मुश्किलों तक पहुंचेगी. तभी इसकी प्रासंगिकता और उपयोगिता बन सकेगी. यह बात गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. रमेश भारद्वाज ने जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित व्याख्यान के समापन समारोह में कही. उन्होंने कहा कि संस्कृत के विकास के लिए नई तकनीक का प्रयोग आवश्यक है.
जयपुर: राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में दो दिवसीय व्याख्यान का समापन समारोह आयोजित
जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में दो दिवसीय व्याख्यान का समापन समारोह गुरुवार को संपन्न हुआ. इस व्याख्यान में संस्कृत भाषा में निहित ज्ञान-विज्ञान पर किए जा रहे शोध की दशा और दिशा पर मंथन किया गया.
रमेश भारद्वाज ने कहा कि योग, आयुर्वेद, ज्योतिष और साहित्य में ऐसे प्रयोगों की आवश्यकता है, जिससे समाज संस्कृत की तरफ आकर्षित हो सके. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्कृत विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. अनुला मौर्य ने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालय में शोधार्थियों के लिए अनुसंधान केंद्र में विशेष व्यवस्था की जा रही है. कुलपति ने आधुनिक विषयों से जोड़कर नए संदर्भों में अनुसंधान की जरूरत बताई. साथ ही कहा कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शोध करने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है. राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति के पूर्व कुलपति प्रो. हरेकृष्ण शतपथी ने संस्कृत भाषा और तकनीकी से जुड़े मुद्दों पर व्याख्यान देते हुए बताया कि संस्कृत और विज्ञान का जोड़ आज के युग में चमत्कार है.
उन्होंने कहा कि जरूरी है कि संस्कृत के अध्ययन और अध्यापन से जुड़े लोग पुरातन और आधुनिकता के बीच सेतु का काम करें. इससे प्राच्यविद्या नई पीढ़ी तक पहुंच सकेगी. अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. माताप्रसाद शर्मा ने संस्कृत भाषा और साहित्य में हो रहे नवीन शोध की जानकारी दी. संयोजन एवं संचालन डॉ. राजधर मिश्र ने किया.