जयपुर. छोटी काशी के रूप में विख्यात जयपुर के नाहरगढ़ की पहाड़ी पर भगवान श्रीकृष्ण के चरण चिह्न की पूजा होती है. इसी वजह से मंदिर का नाम चरण मंदिर (Shri Krishna Charan Mandir) रखा गया. मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने यहां पर गाय चराई थी. चरण मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के चरण चिह्न और गायों के खुरों के दर्शन होते हैं.
चरण मंदिर के महंत सुरेश कुमार पारीक ने बताया कि मंदिर का निर्माण मानसिंह प्रथम ने करवाया था. पूर्व महाराजा मानसिंह को भगवान श्री कृष्ण ने स्वप्न में आकर अंबिका वन यानी आमेर की पहाड़ी पर अपना चरण चिह्नत होने का स्थान बताया था, साथ ही वहां पर मंदिर बनाने के लिए कहा था. राजा मानसिंह ने सेवकों से इस स्थान की खोज करवाई थी. राजा ने स्वयं अपने पुरोहितों के साथ इस स्थान पर पहुंच कर भगवान श्री कृष्ण के चरण चिह्न को (Lord Shri Krishna Footprints) द्वापर के समय का बताया और श्रीमद् भागवत कथा के दसवें स्कंध के चौथे अध्याय में वर्णित सुदर्शन के उद्धार की कथा सुनाई थी.
भगवान श्रीकृष्ण इस पहाड़ी पर आए थे : द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण और नंद बाबा ग्वालों के साथ आमेर की इस पहाड़ी पर आए थे. इस क्षेत्र को अंबिका वन के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर से जु़ड़ी कथा के मुताबिक अंबिका वन में बड़ा अजगर रहता था. अजगर ने नंद बाबा का पैर पकड़ लिया. नंद बाबा ने अपनी सहायता के लिए भगवान कृष्ण को पुकारा किशन वहां दौड़कर पहुंचे और अजगर को दाहिने चरण का स्पर्श किया. स्पर्श करते ही अजगर सुंदर पुरुष के रूप में आ गया. उस पुरुष में से दिव्य प्रकाश निकल रहा था.
वह पुरुष अपने हाथ जोड़कर भगवान श्री कृष्ण के सामने खड़ा हो गया और कहा कि भगवान में इंद्र का पुत्र था मेरा नाम सुदर्शन है. मेरे पास सौंदर्य और लक्ष्मी भी बहुत थी. एक दिन अपने विमान से आकाश विहार कर रहा था, तभी मैंने अंगिरा गोत्र के कुरूप ऋषियो को देखा और अपने सौंदर्य के घमंड में उनकी हंसी उड़ाई थी. इस कृत्य से क्रोधित होकर ऋषियों ने मुझे अजगर योनि में जाने का श्राप दे दिया था. यह मेरे पाप का फल था. आपके चरणों के स्पर्श से मैं श्राप मुक्त हो गया हूं. इंद्र के पुत्र ने भगवान कृष्ण की परिक्रमा की और हाथ जोड़कर आज्ञा मांगी. इस पहाड़ी पर भगवान श्री कृष्ण के साथ ही गायों के चरण चिह्न है.