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यहां होती है भगवान श्रीकृष्ण के चरण की पूजा, गायों को चराने आए थे योगीराज

भगवान श्रीकृष्ण के देशभर में अनेकों मंदिर हैं. हर मंदिर में भक्त अपने अराध्य के दर्शन करने और विशेष पूजा अर्चना करते हुए मन्नत मांगते हैं. लेकिन आज हम आपको जयपुर के चरण मंदिर की कहानी बताएंगे. यहां भगवान श्रीकृष्ण के चरण के चिह्न और गायों के खुरों के निशान हैं. यहां पर भगवान श्रीकृष्ण गायों को चराने के लिए आए थे.

Shri Krishna Charan Mandir
जयपुर का चरण मंदिर

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Published : Aug 18, 2022, 8:33 PM IST

Updated : Aug 18, 2022, 8:52 PM IST

जयपुर. छोटी काशी के रूप में विख्यात जयपुर के नाहरगढ़ की पहाड़ी पर भगवान श्रीकृष्ण के चरण चिह्न की पूजा होती है. इसी वजह से मंदिर का नाम चरण मंदिर (Shri Krishna Charan Mandir) रखा गया. मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने यहां पर गाय चराई थी. चरण मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के चरण चिह्न और गायों के खुरों के दर्शन होते हैं.

चरण मंदिर के महंत सुरेश कुमार पारीक ने बताया कि मंदिर का निर्माण मानसिंह प्रथम ने करवाया था. पूर्व महाराजा मानसिंह को भगवान श्री कृष्ण ने स्वप्न में आकर अंबिका वन यानी आमेर की पहाड़ी पर अपना चरण चिह्नत होने का स्थान बताया था, साथ ही वहां पर मंदिर बनाने के लिए कहा था. राजा मानसिंह ने सेवकों से इस स्थान की खोज करवाई थी. राजा ने स्वयं अपने पुरोहितों के साथ इस स्थान पर पहुंच कर भगवान श्री कृष्ण के चरण चिह्न को (Lord Shri Krishna Footprints) द्वापर के समय का बताया और श्रीमद् भागवत कथा के दसवें स्कंध के चौथे अध्याय में वर्णित सुदर्शन के उद्धार की कथा सुनाई थी.

क्या कहते हैं जानकार, सुनिए

भगवान श्रीकृष्ण इस पहाड़ी पर आए थे : द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण और नंद बाबा ग्वालों के साथ आमेर की इस पहाड़ी पर आए थे. इस क्षेत्र को अंबिका वन के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर से जु़ड़ी कथा के मुताबिक अंबिका वन में बड़ा अजगर रहता था. अजगर ने नंद बाबा का पैर पकड़ लिया. नंद बाबा ने अपनी सहायता के लिए भगवान कृष्ण को पुकारा किशन वहां दौड़कर पहुंचे और अजगर को दाहिने चरण का स्पर्श किया. स्पर्श करते ही अजगर सुंदर पुरुष के रूप में आ गया. उस पुरुष में से दिव्य प्रकाश निकल रहा था.

वह पुरुष अपने हाथ जोड़कर भगवान श्री कृष्ण के सामने खड़ा हो गया और कहा कि भगवान में इंद्र का पुत्र था मेरा नाम सुदर्शन है. मेरे पास सौंदर्य और लक्ष्मी भी बहुत थी. एक दिन अपने विमान से आकाश विहार कर रहा था, तभी मैंने अंगिरा गोत्र के कुरूप ऋषियो को देखा और अपने सौंदर्य के घमंड में उनकी हंसी उड़ाई थी. इस कृत्य से क्रोधित होकर ऋषियों ने मुझे अजगर योनि में जाने का श्राप दे दिया था. यह मेरे पाप का फल था. आपके चरणों के स्पर्श से मैं श्राप मुक्त हो गया हूं. इंद्र के पुत्र ने भगवान कृष्ण की परिक्रमा की और हाथ जोड़कर आज्ञा मांगी. इस पहाड़ी पर भगवान श्री कृष्ण के साथ ही गायों के चरण चिह्न है.

जयपुर का चरण मंदिर

भक्तों की मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण : मंदिर की मान्यता है कि यहां पर आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है. राजा मानसिंह प्रथम ने मंदिर का निर्माण करवाकर पुरोहित को भेंट कर दिया था. पुरोहित परिवार पीढ़ियों से भगवान श्री कृष्ण के मंदिर में सेवा पूजा करता आ रहा है. दूर-दूर से भक्त मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

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जन्माष्टमी को दिन के समय होती है पूजा :चरण मंदिर के महंत सुरेश कुमार पारीक ने बताया कि चरण मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के चरण चिह्न का निशान बना हुआ है. साथ ही गाय के खुर (पैर) के निशान भी बने हुए हैं. भगवान श्रीकृष्ण के चरण चिह्न द्वापर युग के हैं. द्वापर काल में भगवान श्रीकृष्ण ने यहां पर (Krishna Janmashtami 2022) गाय चराई थी. यहां भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव के श्रापित पुत्र को श्राप मुक्त किया था. चरण मंदिर की मान्यता है कि यहां दर्शन करने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है. जन्माष्टमी के दिन दोपहर में भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया जाता है. जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके विशेष पोशाक धारण करवाई जाती है.

करीब 5000 वर्ष पुराना इतिहास : टूरिस्ट गाइड महेश कुमार शर्मा ने बताया कि चरण मंदिर का इतिहास काफी पुराना रहा है. करीब 5000 वर्ष पहले भागवत में चरण मंदिर को बताया गया है. चरण मंदिर के आसपास वन क्षेत्र सुदर्शन गढ़ भी कहलाता है. राजा मानसिंह भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे. राजा मानसिंह ने चरण मंदिर का निर्माण करवाया था. राजा मानसिंह ने चरण मंदिर के अलावा अन्य अनेक ऐतिहासिक मंदिरों का निर्माण करवाया था. आमेर में कृष्ण मीरा का मंदिर भी राजा मानसिंह ने बनवाया था. उन्होंने कहा कि दूर-दूर से दर्शनार्थी यहां दर्शन के लिए आते हैं. चरण मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व दिन के समय मनाया जाता है. दिन में 12:00 बजे विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. जबकि भगवान कृष्ण के अन्य मंदिरों में जन्माष्टमी का जश्न रात के समय मनाया जाता है.

Last Updated : Aug 18, 2022, 8:52 PM IST

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