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राजस्थान में नाम परिवर्तन की 'योजना', कांग्रेस और भाजपा में शह-मात का खेल

राजस्थान में कई दशकों से एक परंपरा चली आ रही है कि राजस्थान की जनता सरकार को दोबारा रिपीट नहीं करती है. ऐसे में यहां एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की सरकार बनती है, लेकिन एक और परंपरा बीते दशक से प्रदेश में चल पड़ी है. वह है सरकार बदलने के साथ ही योजनाओं के नाम बदलना. देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट...

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योजनाओं के नामों में परिवर्तन बन रही राजनीतिक परंपरा

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Published : Jul 9, 2020, 1:28 PM IST

Updated : Jul 9, 2020, 2:23 PM IST

जयपुर.पहले गहलोत सरकार (1998-2003) फिर वसुंधरा राजे सरकार (2003-08)...साल (2008-13) में फिर प्रदेश की कमान अशोल गहलोत के हाथ में, साल (2013-18) में फिर सत्ता बदली और प्रदेश की बागडोर भाजपा की वसुंधरा राजे के हाथ में आई. वर्तमान में प्रदेश की कमान कांग्रेस के अशोक गहलोत के हाथों में है. इससे साफ पता चलता है कि राजस्थान की जनता सरकार को दोबारा रिपीट नहीं करती है. लेकिन अब सरकार बदलने के साथ ही योजनाओं का नाम बदलना भी प्रदेश की परंपरा बन गई है.

योजनाओं के नामों में परिवर्तन बन रही राजनीतिक परंपरा

पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान कांग्रेस की तत्कालीन गहलोत सरकार-2 के कार्यकाल की योजनाओं के नाम बदले तो वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार ने भी वसुंधरा सरकार की योजनाओं के नाम बदलना शुरू कर दिया है. बीते एक दशक से यह देखा जाता है कि विपक्ष में रहने वाली पार्टी सत्ताधारी दल पर यह आरोप लगाती रहती है कि वह जनता के लिए शुरू की गई योजनाओं के नाम बदलकर राजनीति कर रही है, लेकिन जब वह खुद सत्ता में आती है तो उन पर भी यही आरोप लगते हैं. ताजा विवाद पूर्वर्ती वसुंधरा सरकार की 'अन्नपूर्णा रसोई योजना' को लेकर शुरू हुआ है. जहां कांग्रेस और भाजपा नेता आमने-सामने दिखाई दे रहे हैं.

अन्नपूर्णा रसोई योजना बदलकर हुई इंदिरा रसोई योजना

दरअसल, हाल ही में गहलोत सरकार ने पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के कार्यकाल में शुरू की गई 'अन्नपूर्णा रसोई योजना' का नाम बदलकर 'इंदिरा रसोई योजना' रख लिया है. इसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित भाजपा के कई नेता कांग्रेस सरकार पर हमलावर हो गए हैं. सत्ता में लौटते ही गहलोत सरकार ने पिछले डेढ़ साल के कार्यकाल में पूर्ववर्ती सरकार की कई योजनाओं के नाम बदल डाले हैं. सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहले सरकारी दस्तावेजों से पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीर हटाई और भामाशाह योजना की जगह जनाधार योजना लागू की.

हालांकि, कांग्रेस की ओर से इन आरोपों को सिरे से खारिज किया जा रहा है. उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का कहना है कि इंदिरा रसोई किसी पुरानी योजना को बंद करके उसका नाम बदलकर के शुरू नहीं की गई है, बल्कि यह एक नई योजना है और नए स्वरूप में लोगों के सामने होगी. इस तरीके से नाम बदलने की राजनीति भाजपा सरकार अपने कार्यकाल में करती थी ना कि कांग्रेस सरकार.

योजना का नाम बदलने पर प्रदेश में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का कहना है कि हमारी सरकार में लाई गई योजना को रोक कर उसका नाम बदलकर फिर से प्रारंभ करना राजनीतिक चश्मे से देखने जैसा है, जिससे मुख्यमंत्री को बाज आना चाहिए.

भाजपा की भामाशाह योजना बनी जनाधार योजना

पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने की नाम बदलने की शुरुआत...

भले ही भाजपा अब यह आरोप लगा रही हो कि जनता के लिए लाभदायक योजनाओं के नाम बदलकर कांग्रेस सरकार राजनीति कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि योजनाओं के नाम बदलने के मामले में भाजपा की सरकार भी पीछे नहीं रही. भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में कई योजनाओं के नाम बदल डाले थे. जिसमें राजीव गांधी शिक्षा संकुल का नाम बदलकर डॉक्टर राधाकृष्णन शिक्षा संकुल किया गया. इसके अलावा राजीव गांधी सेवा केंद्र का नाम अटल सेवा केंद्र किया गया था.

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वर्तमान गहलोत सरकार ने योजनाओं के नामों में ये किए परिवर्तन...

1. सरकारी दस्तावेजों से पंडित दीनदयाल उपाध्याय की फोटो हटाई गई.

2. किसान राहत आयोग का नाम बदलकर कृषक कल्याण कोष किया गया.

3. ग्रामीण गौरव पथ की जगह सरकार ने विकास पथ के नाम से योजना शुरू की.

4. भामाशाह की जगह जनाधार योजना शुरू की गई.

5. दीनदयाल उपाध्याय वरिष्ठ नागरिक तीर्थ योजना का नाम मुख्यमंत्री वरिष्ठ नागरिक तीर्थ योजना किया गया.

Last Updated : Jul 9, 2020, 2:23 PM IST

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