जयपुर. प्रदेश में आज का दिन ब्लैक फ्राई-डे साबित हुआ. शुक्रवार को राजस्थान की सड़कें हादसों (Accidents in Rajasthan) के कारण 'लाल' हो गईं. तमाम शहरों में एक के बाद एक दर्दनाक हादसों ने कई जिंदगियां लील लीं. जोधपुर-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक ही परिवार के छह लोग काल का गाल समा गए, जबकि कोटा में जेके लोन अस्पताल के सामने फुटपाथ पर सो रहे दंपती को कार ने रौंद दिया. वहीं दूसरी ओर बाड़मेर में भी एक हादसे में दंपती समेत तीन लोगों की मौत हो गई. बालोतरा के मूंगड़ा रोड पर भी बेकाबू डंपर ने बाइक सवारों को कुचल दिया.
प्रदेश में हादसों का सिलसिला लगातार जारी है. आए दिन लोग हादसे का शिकार हो रहे हैं. दुर्घटनाओं का ये सिलसिला आखिर कब थमेगा. परिवहन मंत्रालय और सरकार हर बार सड़क हादसों के ग्राफ को कम करने की बात करती है, लेकिन हादसे हैं कि कम होने का नाम नहीं लेते हैं. हाल के हादसों के आंकड़ों पर नजर डालें तो तस्वीर बेहद डरावनी होगी. अगर राजस्थान में सड़क दुर्घटनाओं की बात की जाए तो रोजाना करीब 66 हादसे होते हैं जिनमें 29 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
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राजधानी जयपुर की बात की जाए तो इन एक्सीडेंट्स के कारण रोजाना दो लोगों की मौत हो रही है. इन हादसों के कारणों का अध्ययन किया जाए तो तेज रफ्तार, चालकों की लापरवाही, शराब के नशे में ड्राइविंग के साथ-साथ खराब इंजीनियरिंग इन दुर्घटनाओं के पीछे की प्रमुख वजह दिखाई देती है. ऐसे में इन हादसों का नुकसान पीड़ित परिवारों को झेलना पड़ता है जिन्हें आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रूप से जिन्दगी भर के जख्म मिल जाते हैं.
खराब रोड इंजीनियरिंग जिम्मेदार
जयपुर में सड़क हादसों की रोकथाम के लिये काम करने वाले सामाजिक संगठन मुस्कान फाउंडेशन की प्रोजेक्ट्स डायरेक्टर नेहा खुल्लर के मुताबिक सड़कों की क्वालिटी में समझौता और खराब इंजीनियरिंग की वजह से हमारे देश में एक्सीडेंट्स का ग्राफ खासा ऊपर है. प्रदेश में ही करीब 25 हजार किलोमीटर लंबे हाईवे पर 825 के करीब डेथ स्पॉट्स को चिह्नित किया गया है. ये वह प्वाइंट्स हैं जहां अक्सर हादसे होते हैं.
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इस मामले में रोड सेफ्टी के मानदंडों को जांचने वाली संस्था इंडियन रोड कांग्रेस यानि IRC का मानना है कि ट्रैफिक सर्वे के आधार पर किसी भी बड़ी सड़क को बनाने की प्लानिंग की जाती है. इस दौरान यातायात के दबाव के साथ-साथ सड़क बनाने के लिये कुछ बुनियादी बिन्दुओं का भी ख्याल रखना होता है जिनमें सड़क निर्माण की तकनीक, मोटाई और मैटेरियल जैसे बिन्दू प्रमुख होते हैं लेकिन भ्रष्टाचार और राजनीतिक कारणों से इन सभी बिंदुओं पर काम ठीक से नहीं हो पाता है और हादसे एक के बाद एक होते रहते हैं. साल 2021 में ही राजस्थान में 10 हजार के करीब सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गईं थीं. इनमें 77 फीसदी हादसों में लोगों के गंभीर रूप से हताहत होने की जानकारी सामने आई है. ये आंकड़े ये दर्शाने के लिये काफी हैं कि सड़कों की गुणवत्ता पर फिलहाल कितना काम और किया जाना चाहिए.
ये हैं मौजूदा स्थितियां
राजस्थान में सड़क हादसों की बात की जाए तो आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश दुर्घटनाओं के लिहाज से देश में आठवें पायदान पर खड़ा हुआ है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि ज्यादातर एक्सीडेंट लापरवाही के कारण होते हैं. इनमें से शहरी इलाकों की अपेक्षा गांवों से जुड़ी सड़कों पर लगभग दोगुनी दुर्घटनाएं होती हैं. मतलब करीब साढ़े आठ हजार हादसे शहरी इलाकों में और पंद्रह हजार से ज्यादा दुर्घटनाएं ग्रामीण इलाकों में हो रहीं हैं. इनमें से भी 26 प्रतिशत हादसों में हुई मौत की वजह हेलमेट का इस्तेमाल नहीं किया जाना होता है. जबकि सीट बेल्ट नहीं पहनने के कारण होने वाली मौतों का प्रतिशत भी करीब 27 फीसदी है. इन एक्सीडेंट्स की वजह से 18 से 45 वर्ष के युवा ज्यादातर मौत के मुंह में समा जाते हैं. मतलब तस्वीर साफ है कि हादसों का पीछे कहीं न कहीं लापरवाही भी प्रमुख कारण है. ऐसे में सरकार के प्रयास और कोशिशों पर भी उंगली उठना लाजिमी है.