जयपुर.राजस्थान राज्य सभा चुनाव में भाजपा विधायक की क्रॉस वोटिंग के चलते पार्टी की काफी फजीहत हुई है. भाजपा की बाड़ेबंदी और पूर्व में तय की गई रणनीति भी धरी की धरी रह गई. हालांकि यह पहला मौका नहीं था जब राजस्थान भाजपा के रणनीतिकारों (BJP strategy fails again and again in Rajasthan) की इस तरह किरकिरी हुई हो. पिछले कुछ वर्षों में ऐसी कई बड़ी घटनाएं हुईं जब भाजपा की सियासी रणनीति पर अपनों ने ही पानी फेर दिया. खास बात ये भी है कि तब भी प्रदेश भाजपा की रणनीतिकार वही थे जो आज हैं.
इन घटनाओं में राजस्थान भाजपा की हुई फजीहत
अविश्वास प्रस्ताव लाने की रणनीति हुई थी फेल: अगस्त 2020 में जब प्रदेश की गहलोत सरकार पर सियासी संकट चल रहा था. तब भाजपा ने यह निर्णय लिया था कि विधानसभा में गहलोत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर आएंगे ताकि सरकार गिर जाए. इसके लिए बकायदा रणनीति भी बनी और होटल क्राउन प्लाजा में भाजपा के विधायकों की बाड़ाबंदी हुई. हालांकि विधानसभा में जब अविश्वास प्रस्ताव लाने का समय आया उससे पहले ही सत्तारूढ़ दल ने विश्वास मत रख दिया लेकिन उस दौरान सदन में भाजपा के चार विधायक गायब थे. उनके फोन नंबर भी बंद थे. यह स्थिति तब थी जब पार्टी ने बकायदा सभी विधायकों को उस दिन सदन में मौजूद रहने की व्हिप जारी की थी.
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विधायकों ने यह कारनामा सत्तारूढ़ दल कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए किया या फिर ये पार्टी के भीतर चल रही आंतरिक कलह का नतीजा था लेकिन इससे पार्टी की खूब फजीहत हुई थी. सदन से नदारद रहने वाले इन विधायकों में गौतम मीणा, कैलाश मीणा, हरेंद्र निनामा और गोपीचंद मीणा के नाम शामिल हैं. तभी पार्टी के रणनीतिकारों में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और उप नेता राजेंद्र राठौड़ ही शामिल थे.
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पिछले राज्यसभा चुनाव में एक बीजेपी विधायक का वोट हुआ था खारिज
राजस्थान में जून 2020 में भी राज्यसभा की 3 सीटों पर चुनाव हुआ था जिसमें जीत के लिए प्रत्येक प्रत्याशी को प्रथम वरीयता के 51 वोट चाहिए थे. बीजेपी के पास तब एक सीट पर जीत के लिए पर्याप्त विधायक थे लेकिन बचे हुए अतिरिक्त वोट और अन्य निर्दलीयों में सेंधमारी का दावा करते हुए भाजपा ने वरिष्ठ नेताओं का सिंह लखावत को भी दूसरे प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतार दिया. तब भी भाजपा को मुंह की खाना पड़ी थी केवल एक प्रत्याशी राजेंद्र गहलोत ही जीते जिन्हें प्रथम वरीयता के सारे वोट दिए गए. जबकि दूसरे प्रत्याशी ओंकार सिंह लखावत को हार का मुंह देखना पड़ा था. तब भाजपा के एक विधायक का वोट खारिज भी हो गया था. मतलब भाजपा को ही अपने सभी विधायकों के वोट पूरे नहीं मिल पाए थे. और पार्टी को फजीहत झेलना पड़ी थी. तब भी पार्टी के यही नेता रणनीतिकार थे जो आज हैं.