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परसराम मदेरणा की जयंती आज, जानें 1998 की सियासी अदावत का '2020 कनेक्शन'

राजस्थान में चल रहे सियासी सकंट के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर कई तरह के गंभीर आरोप लग रहे हैं. साल 1998 में भी प्रदेश में ऐसी ही सियासत देखने को मिली थी. जिसमें कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक गहलोत ने सियासी चतुराई से मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने नाम कर ली थी और जाट नेता परसराम मदेरणा को विधानसभा अध्यक्ष के पद से संतोष करना पड़ा था. ऐसी ही राजनीति खींचतान एक बार फिर राजस्थान में देखने को मिल रही है. आज कद्दावर जाट नेता परसराम मदेरणा की जयंती है, इस मौके पर आपको बताते हैं सियासी अदावत की 1998 की जंग.

जयपुर न्यूज, rajasthan news
दिग्गज जाट नेता परसराम मदेरणा की जंयती

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Published : Jul 23, 2020, 10:32 AM IST

जयपुर.राजस्थान में सियासत का महासंग्राम छिड़ा हुआ है. जिसमें कांग्रेस पार्टी के दो दिग्गज नेता मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किए गए सचिन पायलट दो गुटों में आमने-सामने आ गए हैं और अब सत्ता को लेकर संघर्ष चल रहा है. आज जिस तरह के हालात हैं, साल 1998 में भी कांग्रेस कुछ ऐसे ही हालातों से गुजरी थी. तब कांग्रेस गहलोत और मदेरणा कैंप में बंटी थी, लेकिन अंदरूनी लड़ाई को मजबूत आलाकमान ने सुलझा लिया था.

दिग्गज जाट नेता परसराम मदेरणा की जंयती

साल 1998 के राजस्थान विधानसभा के चुनाव में राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत. कहा जाता है कि उस समय विधानसभा चुनाव दिग्गज जाट नेता परसराम मदेरणा के चेहरे पर लड़ा गया था, और कांग्रेस ने 156 सीटों पर रिकॉर्ड जीत कायम की थी. उस समय कहा जाता था कि पहली बार कांग्रेस पार्टी की ओर से किसी जाट को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

उस समय राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक गहलोत ने सियासी चतुराई दिखाते हुए दिल्ली आलाकमान की मदद से मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने कब्जे में कर ली और परसराम मदेरणा को विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी से ही संतोष करना पड़ा. उस समय भी दोनों गुटों में तकरार ऐसी ही थी, जो आज के सियासी संकट में दिख रही है. लेकिन उस समय कांग्रेस का दिल्ली आलाकमान मजबूत था, जिसके निर्णय के खिलाफ जाना किसी भी नेता के बस में नहीं था.

आज के समय में हो रही सियासत 1998 में भी देखने को मिली थी

उस समय राजनीति का स्तर भी काफी ऊंचा था, लेकिन आज भी यही कहा जाता है कि जो काम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 1998 में परसराम मदेरणा के साथ किया वहीं साल 2008 में वर्तमान स्पीकर और तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सीपी जोशी के साथ किया. और यही हुआ साल 2018 के चुनाव में जीत के बाद सचिन पायलट के साथ. सीएम की कुर्सी को लेकर दोनों नेताओं की बीच 2018 से चली आ रही जंग अब आमने-सामने में तब्दील हो गई है.

वहीं, पायलट कैंप में शामिल हेमाराम, विश्वेंद्र सिंह, विजेंद्र अरोड़ा, मुकेश भाकर, रामनिवास गावड़िया बार-बार कह रहे हैं कि यह लड़ाई है स्वाभिमान और जाट अस्मिता की है. पायलट कैंप में इस समय जाट नेता पहुंचे है. जिनमें हेमाराम चौधरी, विश्वेंद्र सिंह और विजेंद्र ओला जैसे तीन सीनियर जाट नेता भी शामिल है.

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वहीं, हेमाराम ने तो वीडियो जारी कर यह तक कह दिया था कि साल 1998 में इसी तरीके से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने परसराम मदेरणा की कुर्सी छीन ली थी तो वही बृजेन्द्र ओला ने अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा कि दिग्गज जाट नेता शीशराम ओला को सच्ची श्रद्धांजलि का समय है. इसी तरीके से मंत्री पद से बर्खास्त किए गए विश्वेंद्र सिंह लगातार गहलोत पर अटैक कर रहे हैं.

इस लिस्ट में शामिल दो नेता मुकेश भाकर और रामनिवास गावड़िया है जो चुनाव भले ही पहली बार जीत कर आए हो, लेकिन जिस आक्रामकता से वो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर अटैक कर रहे हैं साफ तौर पर यह मैसेज देना चाह रहे हैं कि वह परसराम मदेरणा कि उस लड़ाई को लड़ रहे हैं जो साल 1998 में हुई थी. रामनिवास गवड़िया ने तो अपने एक ट्वीट में लिखा था कि पुरखों के हक और अपमान का बदला लेकर जादूगर के दमन का अंत राजस्थान के पायलट के नेतृत्व में युवा पीढ़ी करेगी.

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