जयपुर.5 सितंबर को पूरे देश में टीचर्स डे मनाया जाता है. यह दिन हमारे गुरुओं को समर्पित है. कहते हैं बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति से ही होती है और समाज तभी आगे बढ़ता है, जब कोई शख्स बदलाव के रास्ते में एक कदम बढ़ाता है. शिक्षक हमारे समाज में बदलाव का बड़ा जरिया हैं. शिक्षक केवल उन्हें ही नहीं कहा जा सकता, जो पेशे से बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं. कुछ लोग अपने जज्बे और हौसले से स्कूल के टीचर ना होते हुए भी गरीबों और जरूरतमंदों के गुरु बन जाते हैं. टीचर्स-डे पर हम आपको जयपुर के एक ऐसे शख्स से रुबरु करा रहे हैं, जिन्होंने जीवन भर बिजनेस की बुलंदियों को छुआ, लेकिन पिता से मिले संस्कारों की वजह से एक वक्त के बाद सारे ऐशो आराम को छोड़कर गरीबों, जरूरतमंदों और असहाय बच्चों की मुस्कान खोजने और उनके सपनों को पंख लगाने में जुट गए.
बच्चों के सपनों को मिल गए पंख
उम्मीद, आशाएं और चाह पर ही पूरी दुनिया टिकी है. सपने कौन नहीं देखता? कौन नहीं चाहता कि उसका सपना 1 दिन सच हो जाए, लेकिन उसके लिए जरूरत होती है तो बस हौसले की. हमारे देश में ऐसे कई गरीब बच्चे हैं, जो पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन सरकारी व्यवस्थाओं के अभाव के कारण वे चाहकर भी पढ़ नहीं पाते. उनके माता-पिता की भी कोशिश होती है कि वे अपने बच्चे को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाएं, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति उनके सपनों के सामने चट्टान बनकर खड़ी हो जाती है.
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ऐसे ही वंचित और गरीब बच्चों की उम्मीद और उनके सपनों को पंख लगाने का काम कर रहे हैं, बाल संबल के संस्थापक पंचशील जैन. बाल संबल एक ऐसा स्कूल है, जहां गरीब बच्चों को केवल पढ़ाया ही नहीं जाता, यहां उन्हें काफी सारी चीजें सिखाई जाती हैं. जैसे, संगीत, सिलाई, डांस और भी बहुत कुछ. 2010 में 7 बच्चों के साथ पंचशील जैन ने एक मिशन शुरू किया था, जो आज दस साल बाद 70 से अधिक बच्चों तक पहुंच गया है. पत्थर काटने की मशीन को इजात करने वाले पंचशील जैन ने बिजनेस की दुनिया में बुलंदियों को छुआ. उनके पास पैसे और शोहरत की कभी कोई कमी नहीं रही. पंचशील की दो बेटियां हैं, जो अब अमेरिका में सेटल हो चुकी हैं.
बिजनेस छोड़ बन गए समाज सेवी
पंचशील जैन बताते हैं कि उनके पिताजी एक समाजसेवी थे. जीवन भर उन्होंने लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा की. बचपन से पिता से मिले संस्कारों की वजह से उन्होंने पहले ही यह तय कर लिया था कि 50 साल तक की उम्र तक बिजनेस करेंगे, फिर सब कुछ छोड़ छाड़कर गरीब और जरूरतमंद बच्चों की सेवा में जुट जाएंगे.
अरावली पहाड़ियों पर बनाया बच्चों का आशियाना
पंचशील जैन ने पहले तो जयपुर से 45 किलोमीटर दूर अरावली पहाड़ियों के बीचों-बीच 18 बीघा जमीन खरीदी. यहां पर उन्होंने बाल संबल नाम से स्कूल शुरू की. इस स्कूल में राजस्थान के अलग-अलग जिलों के ट्राइबल एरिया, कच्ची बस्ती और फुटपात से जरूरतमंद बच्चों को ढूंढ़कर लाया गया.