जयपुर.प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार को आड़े हाथों ले रहे हैं, लेकिन उन्हीं के प्रदेश की राजधानी में चल रहा आशा सहयोगिनियों का धरना उन्हें दिखाई नहीं देता. अंधेरी रात में कंपकंपाती ठंड के बीच आशा सहयोगिनियां फुटपाथ पर अपनी मांगों को लेकर डटी हुई हैं.
आशा सहयोगिनियां फुटपाथ पर अपनी मांगों को लेकर डटी हुई हैं... बेपरवाह सूबे की सरकार...
आशा सहयोगिनियां सर्दी को मात देते हुए अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं. अपने बोरियां-बिस्तर लेकर इक्ट्ठा हुईं महिलाओं ने फुटपाथ पर ही चूल्हा-चौका लगा लिया है. बीते पांच दिनों से ये आशा सहयोगिनियां अपने घर पर कोई दूधमुंही बच्ची को छोड़कर यहां डटी है, तो कोई बीमार बच्चे को अकेला छोड़ दिन-रात धरना दे रही है. लेकिन सूबे की सरकार को इनकी परवाह ही नहीं है. जयपुर के गांधी नगर स्थित महिला एवं बाल विकास विभाग के दफ्तर के बाहर धरना दे रही ये आशाएं अब आशा की किरणों की बाट जो रही है.
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2700 में कैसे चले घर...?
हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में अलग-अलग जिलों से आई आशा सहयोगिनियां 24 घंटे धरना दे रही हैं. लेकिन सरकार उनकी पीड़ा समझने को ही तैयार नहीं है. आशा सहयोगिनी भंवरी और कौशल्या का कहना है कि सरकार 2700 रुपये मानदेय देकर इतिश्री कर लेती है, जबकि 2700 रुपए में घर चला पाना भी नामुमकिन है. ऐसे में घर-घर जाकर लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल करने वाली आशाएं कई किलोमीटर पैदल चलकर ढाणियों तक पहुंचती हैं, लेकिन इतनी कड़ी मेहनत के बाद भी न्यूनतम वेतन पाने के भी पात्र नहीं हैं.
आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार...
हालांकि, महिला बाल विकास के सचिव कृष्णकांत पाठक, मेडिकल हैल्थ सचिव सिद्धार्थ महाजन और डायरेक्टर आईसीडीएस डॉ. प्रतिभा ने आशा सहयोगिनी से वार्ता की, लेकिन वार्ता बेनतीजा रही. क्योंकि आशा सहयोगिनियों की मुख्य मांग मानदेय बढ़ाने को लेकर है, लेकिन अधिकारियों ने कहा कि यह निर्णय सरकार लेगी. ऐसे में जिम्मेदार महकमा भी इन आशा सहयोगिनियों पर ठंडे छींटे देकर धरना खत्म करने को आतुर है. आशा सहयोगिनियां लिखित में आश्वासन लिए बगैर हटने को तैयार नहीं हैं. अगर सरकार नहीं सुनती है तो आशा सहयोगिनियां आर-पार के मूड में हैं.
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क्या है मांग ?
वर्तमान समय में आशा सहयोगिनियों को मात्र 2700 रुपये मानदेय दिया जा रहा है, जिससे दूध-सब्जी या अन्य मूलभूत सुविधाएं भी पूरी नहीं हो सकती. बच्चों की पढ़ाई का खर्च तो दूर की बात है. इनका मानदेय न्यूनतम मजदूरी के समान तो दूर, उसके आसपास भी नहीं है. इसीलिए ये अपना मानदेय बढ़ाकर 15 हजार करवाने की मांग पर अड़ी हुई हैं. अब इनके मानदेय को लेकर आखिरी फैसला राज्य सरकार को ही लेना है.