जयपुर.बेहद खास है शिला माता. मां अम्बे की प्रतिमा बंगाल से आमेर लाई गई थी. मान्यता है कि शिला माता की प्रतिमा के सामने (Shardiya navratri 2022) विनाश और पीठ पीछे विकास है. इसी वजह से मूर्ति को पहले दक्षिण मुखी और जयपुर की बसावट के बाद उत्तर मुखी किया गया था. मां की स्थापना से जुड़े कई रहस्य छिपे हैं. ऐतिहासिक मंदिर में नवरात्र के छठें दिन भक्तों का तांता लग जाता है.माता के दर्शन पाने के लिए अलसुबह से ही भक्तों की लाइने लगी नजर आती है (Know All about the goddess with twisted neck). दूरदराज से भक्त अपनी मनोकामनाएं लिए माता के दरबार में धोक लगाने पहुंचते है. भक्त हाथों में ध्वज लिए और दंडवत लगाते हुए भी माता के दरबार में हाजिरी लगाते हैं.
बंगाल कनेक्शन: इस प्रतिमा को बंगाल कूचबिहार के इलाके में आने वाले जसोर के राजा को हराकर मिर्जा राजा मानसिंह जयपुर लाए थे. वहीं के राजा केदार को हराकर शिला देवी के विग्रह को 1580 में राजा मानसिंह आमेर लेकर आए थे. शिला माता का मंदिर करीब 500 साल पुराना है. शिला देवी के मंदिर में अंदर जाने पर सबसे पहले मंदिर का द्वार मुख्य आकर्षण का केंद्र रहता है.
मां का मंदिर खास: शिला माता मंदिर का द्वार चांदी का बना हुआ है. इस पर नवदुर्गा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री विराजित है. वहीं दस महाविद्याओं के रूप में काली, तारा, षोडशी, भुनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर, भैंरवी, धूमावती, बगुलामुखी, मातंगी और कमला भी मौजूद हैं. दरवाजे के ऊपर लाल पत्थर की गणेशजी की मूर्ति भी है.
क्यों कहते हैं शिला माता?: माता मंदिर के पुजारी बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि शिला माता के विग्रह को शिला देवी इसलिए कहा जाता है कि 16वी शताब्दी में महाराजा मानसिंह प्रथम माता की प्रतिमा को शिला रूप में लेकर आए थे. प्रतिमा को आमेर लाने के बाद मूर्तिकारों ने मूर्ति का रूप दिया. ये माता की तांत्रिक प्रतिमा है. शिला माता की पूजा अर्चना की परंपरा आज भी राज परिवार की ओर से निभाई जाती है. ये माता की जागृत प्रतिमा है. मान्यता है कि माता के दरबार में आने वाले कई निसंतान भक्तों को संतान का वरदान भी माता ने दिया है.