जयपुर. देश के हजारों किसानों के एक साल के लंबे विरोध के बाद कृषि कानूनों को निरस्त करने से राजनीतिक ध्यान फिर से सबसे बड़े आर्थिक क्षेत्र कृषि पर केंद्रित हो गया है. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (Jaipur Literature Festival) में इसकी झलक देखने को मिली. लेखिका मुकुलिका बनर्जी, पत्रकार नमिता वाइकर, लेखक बद्री नारायण ने जेएलएफ के लाइव सेशन में कैसे ग्रामीण भारत की उपेक्षा और लोकतंत्र में बदलाव को लेकर चर्चा की.
चर्चा में लेखिका मुकुलिका ने कहा कि किसान जिस तरह से बिना रुके दिन-रात जमीन पर काम करता है, उसी तरह देश के लोकतंत्र के लिए काम करने की जरूरत है. चर्चा को आगे बढ़ाते हुए बद्री ने दोनों वक्ताओं से पूछा कि बढ़ते शहरीकरण के साथ किसान आंदोलन हाशिए पर चला गया है, जिस पर नमिता ने जवाब दिया कि हाल के कृषि कानून जो अब निरस्त हो गए हैं, इसका एक बड़ा उदाहरण है. देश में बड़े कॉरपोरेट या राजनेता नीतियां बना रहे हैं, लेकिन जो किसान अपने खेतों में चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं और वे ऐसे लोग हैं जो किसी भी नीतिगत फैसले से प्रभावित होंगे.
जिस तरह से संसद में सिर्फ एक घंटे में कृषि कानून पारित किए गए, उससे पता चलता है कि किसानों का कैसे ध्यान रखा जा रहा है. नमिता ने आगे कहा कि गौ हत्या पर प्रतिबंध जैसे अन्य कानूनों ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या के उन्हें प्रभावित किया है.
एक अन्य सत्र में लेखक संदीप जोहर, चंद्रकांत लहरिया, पत्रकार बरखा दत्त और अमरीश सात्विक ने महामारी के दौरान गलत सूचना से निपटने के तरीके के बारे में बातचीत की. चर्चा में ये स्पष्ट कहा गया कि गलत सूचना का मुकाबला करने का सबसे अच्छा तरीका सही सूचना प्रकाशित करना है. कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर के दौरान गलत सूचना से निपटना सरकार के लिए कठिन परिस्थिति थी. आज भी अमेरिका जैसे देश में छह में से एक व्यक्ति को वैक्सीन के प्रति पूर्वाग्रह है. यही वजह है कि वहां टीका लगने का प्रतिशत कम है. इस दौरान मॉडरेटर रही पत्रकार बरखा ने सोशल मीडिया के युग में ऑनलाइन गलत सूचना दिए जाने पर सवाल खड़े करते हुए आधिकारिक चैनलों के माध्यम से सही सूचनाओं को प्रसारित करने की बात कही.