जयपुर. वायु प्रदूषण और कोरोना संक्रमण का हवाला देते हुए दिवाली के त्योहार पर आतिशबाजी बैन कर दी गई थी. लेकिन राजस्थान सरकार ने इस आदेश में संशोधन करते हुए पटाखे चलाने की अनुमति दे दी. शर्त ये है कि आतिशबाजी निश्चित समय पर ग्रीन पटाखों से ही की जाए.
जयपुर के परकोटा एरिया में आतिशबाजी और पटाखों के बड़े शोरूम हैं. प्रदेशभर में मेलों, त्योहारों और शादियों के लिए आतिशबाजी की खरीददारी परकोटा के बाजारों में ही होती आई है. लेकिन जिस तरह से पटाखे प्रतिबंधित किये जा रहे हैं उससे जयपुर के परंपरागत पटाखा व्यवसाई आर्थिक रूप से टूट चुके हैं. परकोटा की एक बड़ी पटाखा दुकान में तो अब जूते-चप्पल बिकने लगे हैं.
पटाखा व्यवसाइयों की परेशानी आर्थिक रूप से टूटे पटाखा व्यवसाई
कोरोना के बाद से ही आतिशबाजी प्रतिबंधित की गई है. इससे पहले प्रदूषण के कारण पटाखों को बैन किया जा चुका है. लेकिन अब दिवाली से कुछ दिन पहले सरकार ने पटाखा व्यापारियों को राहत दी है. आतिशबाजी से बैन हटा लिया है. हालांकि पटाखा व्यापारियों को ग्रीन पटाखे ही बेचने होंगे. हालांकि व्यापारी कहते हैं कि राहत कुछ देर से मिली, हमने माल दूसरे राज्यों में कम कीमत पर बेच दिया. कुछ व्यापारी तो ऐसे हैं जिन्होंने रोजगार ही बदल दिया है.
दो साल का नुकसान 15 दिन में कैसे भरेगा
पटाखा व्यवसाइयों के पास दिवाली सीजन में कमाई करने के लिए दो सप्ताह का समय है. इसमें भी उन्हें ग्रीन पटाखे ही बेचने होंगे. पटाखा व्यवसाय से सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से दो से ढाई लाख लोग जुड़े हैं. ये लोग पहले से आर्थिक संकट झेल रहे थे. अब राहत की उम्मीद है लेकिन इस दिवाली नुकसान की भरपाई असंभव सी लगती है.
पटाखे की मशहूर दुकान थी, अब जूतियां बिक रही
कोरोना काल में संक्रमितों को होने वाली परेशानी को देखते हुए राज्य सरकार ने पटाखों पर बैन लगाया था. तब राजधानी के पटाखा व्यापारियों को लाखों का नुकसान हुआ था. हवा महल के सामने पिंक सिटी फायरवर्क्स पटाखों की मशहूर दुकान थी, जिसमें पटाखे की जगह जयपुरी जूतियां बिकने लगी हैं. यह पटाखा कारोबारियों की मजबूरी का एक नमूना है.
पटाखों की दुकान में बिक रहे जूते चप्पल आतिशबाजी का समय सीमित, ग्रीन पटाखों की बंदिश
व्यापारियों के विरोध के बाद अब सरकार ने पटाखों पर से प्रतिबंध तो हटा लिया लेकिन सिर्फ ग्रीन पटाखे बेचने की आज्ञा दी है. आतिशबाजी भी रात 8 से 10 बजे तक ही की जा सकेगी. जयपुर व्यापार महासंघ के अध्यक्ष सुभाष गोयल कहते हैं कि सरकार ने बैन हटाने में काफी देर कर दी. लाइसेंसधारी व्यापारियों ने पटाखों के लिए एडवांस पैसा देकर माल बुक कर दिया था. रोक लगने की वजह से उन्हें भारी नुकसान हुआ है. 2020 का पूरा सीजन खराब हुआ और 2021 में भी दशहरे पर जाकर बैन हटा है.
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बच्चों के खिलौने बेचकर काम चला रहे छोटे दुकानदार
सीजनल पटाखा दुकान लगाने वालों को अब तक लाइसेंस नहीं मिला है. सीजनल पटाखा व्यवसायी मोहम्मद शब्बीर कहते हैं कि पटाखों के बड़े कारोबारी 12 महीने का लाइसेंस लेते हैं. उन्होंने तो अपनी दुकानें सजा ली हैं. छोटे व्यापारी लाइसेंस के बिना न माल खरीद सकते हैं, न दुकान लगा सकते हैं और न बेच सकते हैं. ऐसे में फिलहाल बच्चों की क्रैकर टॉय गन बेच कर काम चला रहे हैं.
पटाखा व्यापारियों का कहना है कि दिवाली में दो सप्ताह का समय बचा है. दो साल से जो नुकसान झेल रहे हैं उसकी भरपाई इन 15 दिनों में कैसे होगी. हां, संतोष इस बात का है कि पटाखों पर से बैन हट गया. अब नुकसान की 20 फीसद भरपाई तो हो ही जाएगी. व्यापारी कहते हैं कि राजस्थान जब बैन लगा तो हमने दूसरे राज्यों में कम कीमत पर माल बेच दिया. अब शिवाकाशी से इतनी जल्दी माल आ नहीं सकता. यूं भी ग्रीन पटाखे ही बेचे जाने हैं.
तमिलनाडु में है शिवाकाशी, जहां पटाखों की 90 फीसदी फैक्ट्रियां
पूरे देश में पटाखों की सप्लाई अधिकांश रूप से तमिलनाडु के विद्युतनगर जिले के शिवाकाशी इलाके से होती है. यहां पटाखों की 8 हजार से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. यानी देश की 90 फीसद फैक्ट्रियां शिवाकाशी में हैं. वहां से माल आने में समय लगता है. राजस्थान में बैन हटने के बाद व्यापारियों के पास इतना समय ही नहीं बचा है कि वे माल का ऑर्डर दें और तुरंत माल आ जाए.
क्या हैं ग्रीन पटाखे
नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने तय सीमा में आवाज और धुएं वाले पटाखों को तैयार करने के लिए फार्मूला विकसित किया है. जिसे देश में रजिस्टर्ड 785 पटाखा बनाने वाली फैक्ट्रियों को उपलब्ध कराया गया है. इनमें से 90 फ़ीसदी फैक्ट्री शिवाकाशी में मौजूद हैं. 9 फैक्ट्री राजस्थान में हैं. जानकारों के अनुसार ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है.
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इनमें रोशनी करने वाले पटाखों में 32% पोटेशियम नाइट्रेट 40% एलुमिनियम पाउडर 11% एलुमिनियम टिप्स और 17% प्रोप्रिएट्री एडिटिव का उपयोग किया जाता है. वहीं आवाज करने वाले पटाखों में 72% प्रोप्रिएट्री एडिटिव, 16% पोटेशियम नाइट्रेट ऑक्सिडाइजर 9% एलुमिनियम पाउडर और 3% सल्फर का उपयोग होता है. सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 प्रतिशत तक कम हानिकारक गैसें पैदा होती हैं. इस तरह सामान्य पटाखों के मुकाबले ये पटाखे प्रदूषण भी आधा ही फैलाते हैं.
सामान्य पटाखों और ग्रीन पटाखों में अंतर
ग्रीन पटाखों के ऊपर ग्रीन फायरवर्क्स csir-neeri इंडिया का मोनोग्राम लगाया गया है. ग्रीन पटाखों के पैकेट पर साफ शब्दों में now green revolution भी लिखा होता है. सामान्य पटाखों और ग्रीन पटाखों के दामों में करीब 5 से 10% का अंतर होता है. यानी सामान्य पटाखे के मुकाबले ग्रीन पटाखा कुछ महंगा होगा. मान लीजिये की एक सामान्य अनार 50 रुपये का है तो उसी आकार का ग्रीन अनार 55 या 60 रुपये का होगा. व्यापारियों का कहना है कि छोटे ग्रीन पटाखों की कीमत तो सामान्य पटाखों जितनी ही है. बड़े ग्रीन पटाखे 5-10 फीसदी महंगे हैं.