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उपचुनाव में हार के बाद अब शुरू होगी प्रदेश भाजपा की असली परीक्षा, पूनिया के सामने होंगी ये चुनौतियां... - राजस्थान न्यूज

धरियावद और वल्लभनगर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को मिली करारी शिकस्त के बाद प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के सामने कई चुनौतियां होंगी. पूनिया के लिए विरोधियों को शांत करना और आलाकमान तक प्रदेश नेतृत्व के अब तक किए गए कार्यों को पहुंचाना और विश्वसनीयता बनाए रखना जैसी चुनौतियां होगी.

Challenges for Satish Poonia
Challenges for Satish Poonia

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Published : Nov 3, 2021, 2:08 PM IST

जयपुर. धरियावद और वल्लभनगर विधानसभा उपचुनाव में करारी शिकस्त के बाद प्रदेश भाजपा में एक नया सियासी तूफान आने के संकेत मिल रहे हैं. उपचुनाव तो हो गया, लेकिन प्रदेश भाजपा नेतृत्व की असल परीक्षा अब शुरू होगी क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को अब विरोधियों से मिलेगी कई चुनौतियां. खास तौर पर अब पार्टी के ही भीतर उनके विरोधी अपने स्वर बुलंद कर सकते हैं.

दरअसल, प्रदेश भाजपा में भले ही अनुशासन और एकजुटता की बात होती हो लेकिन यह सर्वविदित है कि यहां भी नेताओं के कई खेमे और गुट हैं. एक खेमा उन नेताओं का है जो प्रदेश नेतृत्व की अगुवाई में संगठन में पूरी भागीदारी निभा रहा है. वहीं दूसरा खेमा उन नेताओं का है जिन्हें संगठनात्मक दृष्टि से पार्टी में कोई जिम्मेदारी या काम नहीं मिला है. दूसरे शब्दों में कहें तो जो खुद को वर्तमान में पार्टी संगठन से अलग-थलग महसूस कर रहे हैं. अब उपचुनाव के परिणाम के बाद संभवतया ये नेता विरोध के स्वर बुलंद कर सकते हैं. विरोध पार्टी का नहीं बल्कि हार के लिए नेताओं को जिम्मेदार ठहराने का होगा. इसकी शुरुआत कोटा से पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत ने बयान जारी कर की, तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे समर्थक नेता रोहिताश्व शर्मा ने भी ऐसे ही बयान देकर आग में घी डालने का काम किया. हालांकि रोहिताश्व पार्टी के बाहर हैं लेकिन राजावत तो भाजपा में ही हैं. मतलब साफ है कि राजे समर्थक अब इस हार के बाद सियासी रूप से सक्रिय होंगे.

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पूनिया को इन चुनौतियों से होगा पार पाना

पूनिया विरोधी नेता अब मौजूदा उपचुनाव में मिली करारी हार के लिए प्रदेश नेतृत्व की कार्यशैली को जिम्मेदार ठहराएंगे और राजे को प्रदेश में निर्णायक भूमिका में लाने पर जोर देंगे. वहीं अलवर-धौलपुर पंचायत राज चुनाव और धरियावद-वल्लभनगर विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद ही नेता आगामी विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश भाजपा में आमूलचूल परिवर्तन का प्रयास भी करेंगे और उसके लिए जयपुर से लेकर दिल्ली तक लॉबिंग शुरू होने की संभावना भी है.

राजे जो पंचायत राज चुनाव और हाल के उपचुनाव से दूर रहीं, उसे भी ये नेता मुद्दा बना सकते हैं. संभवतया वो ये मैसेज देने का प्रयास करेंगे कि राजे की अनुपस्थिति में ही बीजेपी को उपचुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. मतलब राजे को राजस्थान में भाजपा का सर्वमान्य चेहरा घोषित करने का प्रयास भी तेजी से शुरू होगा.

बताया यह भी जा रहा है कि 2 साल बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं लेकिन उपचुनाव में भाजपा की हार के बाद अब संभावना है कि राजे की चहलकदमी और राजनीतिक सक्रियता प्रदेश में बढ़ सकती है और जल्द ही वह उदयपुर संभाग के कुछ जिलों में अपना दौरा और प्रवास प्लान कर सकती हैं.

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इन परिस्थितियों में पूनिया को अपने विरोधियों से निपटना एक बड़ी चुनौती होगी. उपचुनाव में बीजेपी को हार जरूर मिली है लेकिन पूनिया के नेतृत्व में ही बीजेपी को पंचायत राज चुनाव में पिछली बार ऐतिहासिक सफलता मिली थी. ऐसे में पूनिया समर्थक उनके अब तक के कार्यकाल में बीजेपी को मिली संगठनात्मक मजबूती और बड़ी सफलताओं को गिनाने तक का काम करेंगे, तो वहीं विरोधी उपचुनाव में हार और संगठनात्मक रूप से फेल हुई रणनीति को लेकर मौजूदा नेताओं के सियासी पर कतरने की कोशिश में जुटेंगे. इन सबके बीच पूनिया के लिए विरोधियों को शांत कर अपने पक्ष में करना एक बड़ी चुनौती होगी. साथ ही पार्टी आलाकमान तक प्रदेश नेतृत्व के अब तक किए गए कार्यों को पहुंचाना और विश्वसनीयता बनाए रखना दूसरी बड़ी चुनौती होगी. इसके जरिए ही पूनिया इस हार से पार्टी और खुद के सियासी कद को हुए नुकसान की पूर्ती करने में सफल हो पाएंगे.

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