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25 साल बादः 21 जून को प्रदेश में दिखेगा वलयाकार सूर्य ग्रहण - वलयाकार सूर्य ग्रहण

प्रदेश में 21 जून को 25 वर्ष बाद फिर वलयाकार सूर्य ग्रहण दिखेगा. ऐसा सूर्य ग्रहण 1995 में दिखाई दिया था. इस सूर्य ग्रहण में सूरज का सिर्फ वलय आकार ही दिखाई देता है, बाकी बीच के हिस्सों पर अंधेरा छाया रहता है. राजस्थान में स्पष्ट रूप से यह घड़साना और सूरतगढ़ में दिखाई देगा. नीचे पढ़ें सूर्य ग्रहण पूरी कहानी...

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21 जून को प्रदेश में दिखेगा वलयाकार सूर्य ग्रहण

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Published : Jun 6, 2020, 8:05 AM IST

जयपुर. प्रदेश के लोग 21 जून को संभवतः अपने जीवन में पहली बार वलयाकार सूर्य ग्रहण देख सकेंगे, जबकि कुछ लोगों की पिछली सदी की 25 वर्ष पुरानी, 24 अक्टूबर 1995 की यादें ताजा हो जाएंगी, जब पूर्ण सूर्य ग्रहण के कारण दिन में ही अंधेरा छा गया था. पंछी अपने घोंसलों की ओर लौट आए थे और हवा अचानक शीतल हो गई थी. चांद की ओट से निकली सूरज की मुद्रिका तब पूरे विश्व में चर्चा का विषय बनी थी.

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21 जून 2020 को होने वाली इस अद्भुत, खूबसूरत और प्रकृति के रोमांच का अनुभव कराने वाली धटना की शुरूआत 5 जून को ही चंद्रग्रहण के साथ हो गई है. राजस्थान में इसे सबसे अच्छे रूप में घड़साना और सूरतगढ़ में देखा जा सकेगा. जहां सूर्य का मात्र एक प्रतिशत हिस्सा ही नजर आएगा और कंगन जैसी आकृति साफ नजर आएगी.

25 वर्ष पहले की पूर्ण सूर्य ग्रहण की यादें होंगी ताजा

बी.एम.बिड़ला तारामण्डल के सहायक निदेशक संदीप भट्टाचार्य ने बताया कि वलयाकार सूर्य ग्रहण की घटना राजस्थान में अब तक देखी नहीं गई है. पिछली बार जब 1995 में पूर्ण सूर्य ग्रहण की घटना हुई थी तब इस घटना ने पूरे विश्व का ध्यान राजस्थान की ओर खींचा था, क्योंकि तब राजस्थान के नीम का थाना में इसे सबसे ज्यादा पूर्णता के साथ देखा गया था. दुनियाभर से वैज्ञानिक इसे कवर करने राजस्थान पहुंचे थे और पहली बार इस घटना का दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण किया गया था, जिसे वैज्ञानिक यशपाल ने कवर किया था.

प्रदेश में 3 घंटे दिखेगा सूर्य ग्रहण

21 जून को भी राजस्थान फिर इस नजारे का गवाह बनने जा रहा है. जब ग्रहण की छाया राजस्थान में करीब सुबह 10ः15 बजे सूरतगढ़ के घड़साना से प्रवेश करेगी और करीब 3 घंटे तक सम्पूर्ण प्रदेश में इसे देखा जा सकेगा. उन्होंने बताया कि इस बार 1995 के पूर्ण ग्रहण की भांति सूर्य के ग्रहण मुक्त होते समय मुद्रिका का निर्माण नहीं होगा, लेकिन सूर्य के वलय पर चंद्रमा का पूरा आकार नजर आएगा. यानी किनारों पर चमक लिए केन्द्रीय भाग पूरा काला नजर आएगा.

जयपुर में चंद्रमा सूर्य के 88 प्रतिशत हिस्से को कवर किया हुआ दिखाई देगा

उत्तरी राजस्थान में करीब 20 किलोमीटर की पट्टी में सूर्य का 99 प्रतिशत हिस्सा ग्रहण में नजर आएगा. शेष राजस्थान के लोगों को आंशिक सूर्य ग्रहण दिखेगा. जयपुर में चंद्रमा सूर्य के 88 प्रतिशत हिस्से को कवर किया हुआ दिखाई देगा, जबकि बांसवाड़ा में 77 प्रतिशत, जोधपुर में 89 प्रतिशत और श्रीगंगानगर में 97 प्रतिशत सूर्य चंद्रमा की ओट में नजर आएगा.

5 जून को आंशिक चंद्रग्रहण से शुरू हुई तैयारी

भट्टाचार्य ने बताया कि यह प्रकृति में अक्सर होने वाली एक ऐसी घटना है, जो दुर्लभ भी है, क्योंकि इस प्रकार के सूर्य ग्रहण को पूरे विश्व में कहीं-कहीं ही देखा जा सकता है और अधिकांश जगह लोगों को आंशिक ग्रहण ही नजर आता है. इस बार जो वलयाकार सूर्य ग्रहण होने जा रहा है उसे ‘कंकण ग्रहण’ भी कहा जाता है, क्योंकि चंद्रमा की ओट में सूर्य के बडे़ हिस्से के ढक जाने के बाद उसके चारों ओर एक चूड़ी या कंगन के आकार का शेष एक प्रतिशत हिस्सा दिखाई देता रहेगा.

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भट्टाचार्य ने बताया कि सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की गतियों, उनके दीर्घवृत्ताकार कक्षाओं के सापेक्षिक स्थितियों कारण होने वाले सूर्य ग्रहण कम से कम वर्ष में दो बार होते हैं और लगातार या एकान्तर क्रम में चंद्रगहणों से जुडे़ होते हैं. सरल शब्दों में जब भी सूर्य ग्रहण होता है, दो चंद्र ग्रहण के साथ होता है. इसमें या तो दोनों चंद्रग्रहण उससे पहले होते हैं अथवा एक चंद्रग्रहण सूर्य ग्रहण से पहले और दूसरा सूर्यग्रहण के बाद दिखाई देता है जैसा इस बार होने जा रहा है.

भट्टाचार्य ने बताया कि 5 जून को रात में 11:15 पर होने वाला चंद्रगहण भी एक तरह से 21 जून का होने वाले पूर्ण सूर्य ग्रहण की तैयारी है. हालांकि इसे नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकेगा, लेकिन इसका अपना महत्व है. तीन ग्रहणों के इस क्रम का दूसरा चंद्रगहण 4 जुलाई को होगा.

सूर्य के दक्षिणायन वाले दिन होगा ग्रहण

भट्टाचार्य ने बताया कि इस बार सूर्य ग्रहण ऐसे दिन होने जा रहा है, जब उसकी किरणें कर्क रेखा पर सीधी पडे़गी. इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात होती है. कर्क रेखा राजस्थान में उदयपुर से गुजरती है. इस दिन के बाद सूर्य का भूमध्य रेखा की ओर गमन शुरू हो जाता है, जिसे सूर्य का दक्षिणायन होना भी कहते हैं.

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