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राधा दामोदर मंदिर में निभाई गई 500 साल पुरानी परंपरा, दोपहर 12 बजे हुआ कान्हा का जन्मोत्सव

देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है. अधिकतर कृष्ण मंदिरों में रात 12 बजे पूजा-अर्चना, आरती कर जन्मोत्सव मनाया जाता है. हालांकि जयपुर के राधा दामोदर मंदिर में पिछले 500 सालों से चली आ रही परंपरा को निभाते हुए दोपहर 12 बजे कान्हा का जन्मोत्सव मनाया गया. भगवान का अभिषेक और खास शृंगार किया गया.

500 year old ritual in Radha Damodar temple of Jaipur
राधा दामोदर मंदिर में निभाई गई 500 साल पुरानी परंपरा, दोपहर 12 बजे हुआ कान्हा का जन्मोत्सव

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Published : Aug 19, 2022, 3:57 PM IST

जयपुर.छोटी काशी के प्रसिद्ध राधा दामोदर मंदिर में करीब 500 सालों से चली आ रही परंपरा का शुक्रवार को निर्वहन किया (500 year old ritual in Radha Damodar temple) गया. यहां दोपहर 12 बजे ही कान्हा का जन्मोत्सव मनाया गया. वैदिक मंत्रोचार के साथ पूजन कर भगवान का पंचामृत से अभिषेक और विशेष शृंगार किया गया. खास बात यह रही कि इस बार कोरोना की दीवार नहीं रही. ऐसे में इस बार अभिषेक कार्यक्रम को भव्यता के साथ मनाया गया.

जयपुर के आराध्य गोविंद देव मंदिर से सभी भलीभांति परिचित हैं. यहां जन्माष्टमी पर होने वाला कृष्ण जन्मोत्सव कार्यक्रम विख्यात है. जयपुर में ही मौजूद राधा-दामोदर का भी अपना इतिहास रहा है. महंत के अनुसार राधा दामोदर जी की मूर्ति वृंदावन से तत्कालीन महाराजा सवाई जयसिंह के आग्रह पर जयपुर लाकर स्थापित की गई थी. राधा दामोदर के विग्रह के लिए कहा जाता है कि श्री गोविंद विग्रह के प्राप्तकर्ता रूप गोस्वामी ने इसका निर्माण किया और अपने भतीजे जीव गोस्वामी को सेवा पूजा के लिए सौंप दिया. राधा दामोदर की सेवा का प्राकट्य माघ शुक्ल दशमी संवत 1599 का माना जाता है. इसकी विशेषता ये है कि दूसरे मंदिरों से अलग यहां जन्माष्टमी पर भगवान का अभिषेक दिन में दोपहर 12 बजे होता है.

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राधा दामोदर जी की ये परंपरा वृंदावन से चली आ रही है. कृष्ण जन्मोत्सव दोपहर में मनाने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि दामोदर ठाकुर जी के नटखट बाल स्वरूप हैं और जिस तरह बच्चों को देर रात तक नहीं जगाया जाता, उसी तरह दामोदर जी का भी दोपहर में अभिषेक कर शाम तक नंदोत्सव मनाने के बाद 12 बजे से पहले ही मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं. दामोदर जी का दूध, दही, घी, बूरा और शहद से पंचामृत अभिषेक किया गया. बाद में ठाकुर जी को पंजीरी लड्डू, खीरसा एवं रबड़ी कुल्लड़ का भोग लगाया गया. साथ ही बैंड वादन के साथ महाआरती की गई.

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