जयपुर. राजस्थान रोडवेज के की ओर से पिछले साल इलेक्ट्रिक बसों को राजस्थान रोडवेज के बेड़े में शामिल करने की कवायद की गई थी. जिसके बाद अब रोडवेज के बेड़े में इलेक्ट्रिक बसें अभी आना शुरू हो गई हैें. कुल 48 इलेक्ट्रिक बसों को अनुबंध पर लिया जा रहा है. हालांकि इलेक्ट्रिक बसों के लिए किए गए अनुबंध को लेकर कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं.
कैग रिपोर्ट में भी साल 2017 में डीजल की अनुबंधित बसों से रोडवेज को घाटा होने की बात सामने आ चुकी है. हालांकि परिवहन मंत्री और रोडवेज के अफसर इससे इनकार भी करते हैं. बता दें कि रोडवेज प्रशासन निजी कंपनी से ना केवल बसे ले रही हैं, बल्कि बसों का संचालन भी करवाएगी. इसके बदले निजी कंपनी को प्रति किलोमीटर 53 पॉइंट 70 रुपए के हिसाब से भुगतान भी किया जाएगा. ऐसे में 10 साल तक कंपनी को करीब 547 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाएगा. खास बात यह है, कि कंपनी 48 बसों की खरीद की लागत जो करीब 109 करोड़ रुपए है. उसे कंपनी 2 साल में ही निकाल लेगी.
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वहीं, बचे हुए 8 साल में कंपनी रोडवेज से 450 करोड़ से अधिक भुगतान उठा कर उसका फायदा कमाएगी. दूसरी तरफ इलेक्ट्रिक बसों से रेवेन्यू आए या ना आए रोडवेज को सालाना 54 करोड़ रुपए कंपनी को देने ही होंगे. करीब 4000 करोड़ रुपए के घाटे में चल रहे रोडवेज को 10 साल तक निजी कंपनी को मोटा भुगतान करने से आगे भी नुकसान ही होगा. जानकारी के अनुसार रोडवेज ने हाल ही में 876 बसों के लिए इलाहाबाद बैंक से लोन लिया है.
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ऐसे में अब रोडवेज प्रशासन पर कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं. जिसमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि 876 ब्लूलाइन बसों के लिए रोडवेज प्रशासन लोन ले सकता है तो इलेक्ट्रिक बसों को निजी कंपनी के जरिए क्यों खरीदा जा रहा है. रोडवेज खुद लोन लेता तो 96 करोड़ में ही बसे आ जाती. वहीं, केंद्र से मिलने वाली 50 फीसदी सब्सिडी रोडवेज के पास आती. ऐसे में रोडवेज को 72 करोड़ पर ही देने पड़ते वहीं, बसों की मेंटेनेंस के लिए रोडवेज निर्माता कंपनी से ही प्रति किलोमीटर रख रखाव के हिसाब से बसों को ले सकता है.