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Special : बीकानेर शहर खो रहा अपनी ऐतिहासिक पहचान...हजार हवेलियों के शहर में ढाई सौ हवेलियां भी नहीं बची

राजस्थान की स्थापत्य कला में बीकानेर का बड़ा योगदान है. बीकानेर को हजार हवेलियों का शहर कहा जाता है. खूबसूरत हवेलियां इस शहर की पहचान रही हैं. लेकिन अब धीरे-धीरे यह पहचान दम तोड़ रही है...

बीकानेर की हवेलियां
बीकानेर की हवेलियां

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Published : Aug 21, 2021, 6:55 PM IST

Updated : Aug 21, 2021, 11:02 PM IST

बीकानेर.रसगुल्ला और भुजिया के लिए पूरी दुनिया में मशहूर बीकानेर अपनी सांस्कृतिक विरासतों, लोक कलाओं और परंपराओं के लिए जाना जाता है. दुनिया में बीकानेर की स्थापत्य कला भी मशहूर है. यही कारण है कि बीकानेर को हजार हवेलियों का शहर कहा जाता है.

दरअसल बीकानेर शहर के पुराने हिस्से में बनी ऐतिहासिक हवेलियां पत्थरों पर नक्काशी के बारीक काम के लिए प्रसिद्ध हैं. इन्हें देखने वाला बरबस ही दांतों तले उंगली दबा लेता है. देश और विदेश से बीकानेर आने वाले पर्यटक यहां के व्यंजनों का स्वाद चखने के साथ-साथ इन हवेलियों को देखने जरूर आते हैं.

हजार हवेलियों का शहर है बीकानेर

बीकानेर के प्रमुख साहित्यकारों ने भी इन हवेलियों के बारे में काफी कुछ लिखा है. एक बार इन हवेलियों की गिनती की गई थी. माना जाता है कि हवेलियों को क्रमबद्ध करते हुए की गई गिनती में हजार हवेलियां निकलीं. इसी के बाद बीकानेर को हजार हवेलियों का शहर भी कहा जाने लगा. लेकिन धीरे-धीरे हवेलियों पहचान गायब होने लगी है.

ये लंदन नहीं, बीकानेर की गलियां हैं

हवेलियों की जान पत्थर पर नक्काशीदार काम है, जो इन्हें हेरिटेज लुक देता है. इस तरह की कारीगरी की देश और दुनिया में काफी डिमांड है. हेरिटेज लुक के चलते बाहर के लोग इन हवेलियों को खरीदने में दिलचस्पी रखने लगे. बीकानेर की जालीदार खिड़कियों, झरोखों और दरवाजों वाली कई हवेलियां खरीदारों के हवाले हो गई हैं.

अधिकतर हवेलियां बन चुकी हैं हेरिटेज होटल

इसके बावजूद बीकानेर में कई हवेलियां ऐसी हैं जिनकी सार-संभाल नहीं हो रही है. ये हवेलियां जर्जर अवस्था में पहुंच गई हैं. खतरे के चलते कई हवेलियों को गिरा दिया गया है. कुछ ऐसी हवेलियां भी हैं जिनमें कोई नहीं रहता. ये हवेलियां वर्षों से बंद पड़ी हैं. इनमें रहने वाले लोग बरसों पहले व्यापार के लिए दूसरे राज्यों या विदेश में चले गए थे. ऐसे में या तो हवेलियां बिक गईं या फिर जर्जर हाल में पहुंच गईं.

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बदलते वक्त के साथ लोगों की जरूरत भी बदली है. ऐसे में कुछ परिवार जो इन हवेलियों में रह रहे थे, उन्होंने इनके हेरिटेज लुक को खत्म कर नया निर्माण कर लिया है. हवेलियां गिराकर कई मंजिला इमारतें खड़ी हो गई हैं. बीकानेर से करीब 40 किलोमीटर दूर गांव दुलमेरा में लाल पत्थर पाया जाता है. इस पत्थर की खासियत ये है कि यह है लचीला है और पानी में भी खराब नहीं होता है. बीकानेर की हवेलियों में मथेरण आर्ट भी किया गया है.

इन हवेलियों का कोई जवाब नहीं

बीकानेर का प्राचीन जूनागढ़ फोर्ट हो या फिर गजनेर पैलेस, ये आलीशान इमारतें दुलमेरा के पत्थर से ही बनी हैं. बीकानेर की रामपुरिया हवेली देश-दुनिया में मशहूर है. भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित कर रखा है. इन हवेलियों का पर्यटन और पुरातत्व की दृष्टि से कितना महत्व है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर साल बीकानेर में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय उत्सव के दौरान हेरिटेज वॉक का आयोजन भी किया जाता है. बीकानेर की रामपुरिया हवेली जहां स्थित है, उस जगह को भी हेरिटेज रूट का नाम दिया गया है. हेरिटेज वॉक का उद्देश्य बीकानेर की प्राचीन हवेलियों से विदेशी पर्यटकों को रूबरू करवाना है. प्रशासनिक स्तर पर हर साल अंतरराष्ट्रीय उत्सव के मौके पर यह हेरिटेज वॉक होती है. विदेशी पर्यटक इन हवेलियों को निहारते हैं.

बीकानेर में हेरिटेज वॉक

सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के साथ ही पोषित करने के लिए काम कर रहे युवा गोपाल सिंह चौहान ने हवेलियों के संरक्षण के लिए काफी संघर्ष किया है. उनका कहना है कि बीकानेर की पहचान हेरिटेज सिटी के रूप में है. उसका कारण ये हवेलियां ही तो हैं. लेकिन धीरे-धीरे ये हवेलियां प्रशासन की अनदेखी चलते खत्म हो रही हैं.

हवेलियों का शहर है बीकानेर

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गोपाल सिंह कहते हैं कि इन हवेलियों को संरक्षण की जरूरत है. इसको लेकर सरकार को प्रयास करने चाहिएं. हालांकि बीकानेर में जिन लोगों ने इन हवेलियों को अपने तरीके से सुरक्षित रखा है, वे आज भी इनमें रह रहे हैं. कुछ हवेलियां हेरिटेज होटल में भी तब्दील हो चुकी हैं. बीकानेर में इस तरह के हेरिटेज होटल्स की भारी डिमांड है. ऐसे में खूबसूरत नक्काशीदार हवेलियों की खरीद-फरोख्त का सिलसिला बदस्तूर जारी है.

लाल पत्थर पर यह नक्काशी है नायाब

हेरिटेज संरक्षण से जुड़े संजय तिवारी कहते हैं कि आज के दौर में जरूरत के हिसाब से हवेलियों को खत्म किया जा रहा है. बीकानेर में अब हजार हवेलियां नहीं रही हैं, करीब-करीब ढाई सौ हवेली ही बची हैं. कला एवं पुरातत्व संस्कृति मंत्री डॉ. बी.डी. कल्ला कहते हैं कि निश्चित रूप से ये हवेलियां बीकानेर की पहचान हैं. इनको सांस्कृतिक विरासत के रूप में सहेजना चाहिए. हालांकि सार-संभाल और रखरखाव नहीं होने के चलते कुछ हवेलियां जर्जर हो गई हैं, ऐसे में उनका गिरना भी जरूरी है. लेकिन इनका संरक्षण किया जाए. मंत्री कल्ला कहते हैं कि आम आदमी को भी जागरूक रहते हुए इन हवेलियों का सरंक्षण करना चाहिए. अगर सही ढंग से उनका संरक्षण किया जाए तो ये हजारों साल तक सुरक्षित रह सकती हैं.

एक सच ये भी है कि सरकार और प्रशासन के स्तर पर इन हवेलियों के संरक्षण के कभी गंभीर प्रयास हुए ही नहीं. इसी वजह से धीरे-धीरे ये हवेलियां शहर के नक्शे से गायब हो रही हैं. 500 साल से भी ज्यादा पुराने जूनागढ़ और गजनेर पैलेस, लालगढ़ और लक्ष्मी निवास जैसे महल अब हेरिटेज होटल बन गये हैं. ये इस बात का सबूत है कि प्रशासनिक और सरकारी उदासीनता बीकानेर के हेरिटेज को लगातार खत्म कर रही है.

Last Updated : Aug 21, 2021, 11:02 PM IST

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