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Hireshwar Mahadev Temple: पिता की इच्छा पूरी करने के लिए बेटों ने बनाया भव्य शिव मंदिर...उड़ीसा के कारीगरों ने की नक्काशी

सावन का महीना है और भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना का दौर (Hireshwar Mahadev Temple in Bikaner) जारी है. भक्त अपनी श्रद्धा भक्ति के साथ भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने में जुटे हैं. इस बीच बीकानेर के हीरेश्वर महादेव मंदिर की कहानी भोले की भक्ति और बेटों की पिता के प्रति श्रद्धा से जुड़ी हुई है.

Hireshwar Mahadev Temple in Bikaner
बीकानेर की हीरेश्वर महादेव मंदिर की कहानी....

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Published : Jul 27, 2022, 6:03 AM IST

Updated : Jul 28, 2022, 6:56 AM IST

बीकानेर. सावन के महीने में शिवालयों में बोल बम के साथ विशेष पूजा-अर्चना का दौर जारी है. इस (Hireshwar Mahadev Temple in Bikaner) महीने में हर शिव मंदिर में भक्तों की आस्था का अलग ही नजारा दिखाई देता है. इसी कड़ी में आज हम आपके लिए बीकानेर के हीरेश्वर महादेव मंदिर की कहानी लेकर आए हैं. इस मंदिर के निर्माण की कहानी भगवान भोलेनाथ की भक्ति और बेटों की अपने पिता के प्रति श्रद्धाभाव से पूरा करने से जुड़ी है.

बीकानेर के पुगल रोड स्थित अपनी जमीन पर 1999 में हीरालाल गहलोत ने शिव मंदिर बनाने की परिकल्पना के साथ ही भूमिपूजन करवाया था. इसके दो साल बाद उनका निधन हो गया. ऐसे में मंदिर निर्माण की इच्छा अधूरी रह गई. लेकिन करीब 7 साल बाद सभी बेटों ने मिलकर मंदिर निर्माण का बीड़ा उठाया. हीरालाल गहलोत के सबसे बड़े बेटे विष्णुदत्त गहलोत ने पूरे निर्माण कार्य को अपने निर्देशन में पूरा करवाया.

बीकानेर की हीरेश्वर महादेव मंदिर की कहानी....

विष्णुदत्त कहते हैं कि पिताजी की इच्छा थी कि वे एक शिव मंदिर बनाएं. इसके लिए उन्होंने भूमि पूजन करवाया. पिता जी के निधन के समय केवल नींव पूजन हुआ और पूरा आर्किटेक्ट डिजाइन नहीं हो पाया था, जिसके कारण वो काम आगे नहीं बढ़ा. इसके बाद 2007 में एक बार फिर से मंदिर के निर्माण का काम शुरू हुआ जो 2018 में जाकर पूरा हुआ. हालांकि आज भी मंदिर परिसर में लगातार थोड़े बहुत स्तर पर पार्क को विकसित करने के साथ ही दूसरे काम जारी हैं.

एक सवाल पर विष्णुदत्त कहते हैं कि यह तो पिता जी की इच्छा थी. उनके और भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से यह काम पूरा हुआ है. हमें तो केवल निमित्त बनाया गया है. कई हजार स्क्वायर फीट में फैले मंदिर के निर्माण में पूरी तरह से मकराना का सफेद मार्बल काम में लिया गया है. वहीं उड़ीसा के कारीगरों की ओर से मार्बल पर नक्काशी का काम कई सालों तक चलने के बाद पूरा हुआ.

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मंदिर परिसर में निर्माण में लगे खर्च के सवाल पर विष्णुदत्त कहते हैं कि इसका कभी हिसाब नहीं किया. क्योंकि देने वाला भी भगवान है और हम तो केवल निमित्त मात्र हैं. गहलोत कहते हैं कि 2007 के बाद के निर्माण का काम शुरू हुआ जो 2018 तक लगातार चला. संगमरमर पर उड़ीसा के कलाकारों की ओर से दिन-रात काम किया गया.

उड़ीसा के कलाकारों ने भगवान की लीलाओं को मार्बल में उकेरा

चढ़ावा दक्षिणा नहींःविष्णु दत्त गहलोत के छोटे भाई किशन गहलोत कहते हैं कि मंदिर में किसी भी तरह का भगवान के सामने नकदी चढ़ावा या पुजारी को दक्षिणा की पूरी तरह से मनाही है. मंदिर में भगवान शिव के साथ ही मां दुर्गा, भगवान श्री गणेश और भगवान भैरवनाथ के भी मंदिर बनाए गए हैं. इसके अलावा पूरे मंदिर परिसर में उड़ीसा के कलाकारों ने भगवान शंकर की लीलाएं हाथ से कुरेद कर बनाई गई हैं. चित्र शैली में बनाई गई है शिव लीला श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है.

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नर्बदेश्वर 12 ज्योर्तिलिंग की स्थापनाःमंदिर स्थापना से ही हर रोज सुबह-शाम शिव भक्ति के साथ पूजा अर्चना करने वाले हीरालाल गहलोत के पुत्र माणक गहलोत कहते हैं कि मंदिर परिसर में 12 ज्योतिर्लिंग की स्थापना के साथ हीरेश्वर महादेव की स्थापना की गई है. वे कहते हैं कि मेरे पिताजी धार्मिक व्यक्ति थे और शिव भक्त थे, ऐसे में भगवान शंकर के इस मंदिर की स्थापना में उनका नाम जोड़ते हुए हीरेश्वर महादेव मंदिर से इस नाम की स्थापना की गई है.

पुजारी के लिए मंदिर परिसर में ही निवासःकिशन गहलोत कहते हैं कि मंदिर परिसर में किसी तरह का चढ़ावा चढ़ाने का रिवाज नहीं है और पूजा-अर्चना का खर्च भी परिवार की ओर से उठाया जाता है. मंदिर परिसर में ही पुजारी के लिए पूरी तरह से आवास की सुविधा उपलब्ध कराई गई है.

Last Updated : Jul 28, 2022, 6:56 AM IST

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