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CORONA EFFECT: नहीं निकलेगी गणगौर की शाही सवारी, पूजा में ईसर और गौरा को पहनाया मास्क - corona lockdown

होली के अगले दिन धुलंडी से शुरु होने वाली गणगौर की पूजा पर भी इस बार कोरोना वायरस का असर देखने को मिला. जहां एक ओर बीकानेर के जूनागढ़ किले से निकलने वाली शाही गणगौर की सवारी इस बार नहीं निकलेगी. वहीं दूसरी ओर घर पर ही हुई गणगौर की पूजा में गणगौर को भी मास्क पहनाया गया और सेनेटाइजर का प्रयोग किया गया.

कोरोना का असर, CORONA EFFECT
कोरोना का असर

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Published : Mar 27, 2020, 3:06 PM IST

बीकानेर.कोरोना वायरस के चलते आम जनजीवन जहां पूरी तरह से ठप है. वहीं परंपराओं का निर्वहान भी कोरोना के चलते प्रभावित हो गया है. शुक्रवार को आयोजित होने वाले गणगौर मेले के साथ ही बीकानेर के प्राचीन ऐतिहासिक जूनागढ़ किले से निकलने वाली शाही गणगौर की सवारी भी इस बार नहीं निकलेगी.

गणगौर की पूजा पर कोरोना का असर

दरअसल परिवार की सुख समृद्धि और सुहाग की कामना को लेकर गणगौर की पूजा की जाती है. लेकिन इस बार कोरोना के प्रकोप के चलते हुए लॉकडाउन ने गणगौर की पूजा को सिर्फ प्रतीकात्मक रूप तक सीमित कर दिया है. संयुक्त परिवार की महिलाओं ने एकत्र होकर अपने परिवार के साथ ही गणगौर की पूजा की और घर से बाहर नहीं निकली.

बता दें कि हर सुबह समूह के रूप में बालिकाएं गणगौर की पूजा करती हैं और कुएं पर पालसिये का विसर्जन भी करती हैं. लेकिन इस बार गणगौर का मेला नहीं भरने के चलते महिलाएं घरों में ही गणगौर की पूजा कर रही हैं. यहां तक कि गणगौर की पूजा में भी कोरोना का असर नजर आया और समूह में बैठी महिलाएं मुंह पर मास्क और हाथों में सैनिटाइजर का इस्तेमाल करते नजर आईं. साथ ही गणगौर को भी मास्क पहनाया और सेनेटाइजर का प्रयोग किया.

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महिलाओं का कहना था कि हर बार परिवार की सुख समृद्धि और पति की लंबी आयु की कामना के साथ ही गणगौर की पूजा करती है. लेकिन इस बार कोरोना वायरस से मुक्ति की कामना को लेकर गणगौर की पूजा की है.

पहली बार नहीं निकलेगी शाही गणगौर

पहली बार ऐसा होगा जब शाही गणगौर जूनागढ़ किले से बाहर नहीं निकलेगी. हर बार शाही लवाजमे के साथ निकलने वाली गणगौर जूनागढ़ से चौतीना कुआं तक जाती है और वहां खोल भराई और पानी पिलाने की रस्म अदायगी के बाद फिर से जूनागढ़ लौटती है. लेकिन इस बार कोरोना के चलते जूनागढ़ के अंदर ही गणगौर को प्रतीकात्मक रूप से घुमाया जाएगा और शनिवार को जूनागढ़ के अंदर ही प्रतीकात्मक रस्म अदायगी की जाएगी.

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