बीकानेर.कोरोना ने देश और दुनिया की हर व्यवस्था को प्रभावित किया है. चाहे बात अर्थव्यवस्था, उद्योग धंधे, दैनिक दिनचर्या, सामान्य कामकाज या फिर शादी विवाह अथवा मांगलिक आयोजनों की हो. इन सबके साथ पहली बार ऐसा हुआ है कि शिक्षण व्यवस्था भी पूरी तरह से चौपट हुई है. होली से लेकर दिवाली तक पूरी तरह से स्कूलों की छुट्टियां रहीं. हालांकि बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो, इसको लेकर संचालक और सरकारी स्तर पर भी ऑनलाइन एजुकेशन के मोड़ पर बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने की कवायद जारी है. लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम भी पूरी तरह से प्रभावी नहीं कहा जा सकता है.
स्कूल खोलने की योजना पर विचार करे सरकार हालांकि केंद्र सरकार ने अब स्कूलों को खोलने का निर्णय तो पूरी तरह से राज्यों का विषय बताते हुए राज्य सरकार को अपने स्तर पर निर्णय लेने की छूट दे दी है. लेकिन बावजूद उसके राजस्थान में सरकार, शिक्षा मंत्री और शिक्षा विभाग ने अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं किया है. वहीं 1 दिसंबर से 31 दिसंबर तक की जारी गाइडलाइन के मुताबिक स्कूलों का पूरी तरह से बंद रखने के आदेश भी जारी कर दिए हैं. हालांकि कोरोना काल में बंद हुई पढ़ाई के बावजूद बच्चों के भविष्य को देखते हुए शिक्षा विभाग ने साफ कर दिया है कि बिना परीक्षा दिए बच्चों को पास नहीं किया जाएगा. लेकिन ऐसे में जब तीन चौथाई शैक्षिक सत्र कोरोना की भेंट चढ़ चुका है. सरकार ने भी अब इसको लेकर कवायद शुरू कर दी है और शिक्षा विभाग और सरकार स्तर पर इसकी तैयारी चल रही है.
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जानकारी के मुताबिक शिक्षा विभाग ने बच्चों के सिलेबस को 50 फीसदी करने का हल सुझाया है. वहीं पासिंग मार्क्स के लिए एक तिहाई की बजाय अब एक चौथाई अंकों की अनिवार्यता को लेकर प्रस्ताव बनाया है. हालांकि अधिकृत रूप से अभी तक इस बारे में सरकार के स्तर पर कोई निर्णय नहीं हुआ है. लेकिन जल्द ही शिक्षा विभाग की होने वाली बैठक में सरकारी स्तर पर इस पर निर्णय होने की उम्मीद जताई जा रही है. वहीं दूसरी ओर स्कूल संचालक अपनी पीड़ा जताते हुए बच्चों के भविष्य की चिंता कर रहे हैं. दरअसल, कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों के अभिभावकों की अपेक्षा उन अभिभावकों की चिंता ज्यादा है, जिनके बच्चों की इस साल बोर्ड परीक्षा होनी है.
क्या कहना है स्कूल संचालकों का?
स्कूल संचालक गजेंद्र सिंह राठौड़ कहते हैं कि सरकार को इसको लेकर गाइडलाइन जारी करनी चाहिए. ऐसे में जब अनलॉक के बाद हर तरह की गतिविधि पूरी तरह से शुरू हो गई है और चुनाव अथवा मांगलिक आयोजन भी करवाए जा रहे हैं तो शिक्षा को अछूता नहीं रखना चाहिए. स्कूल स्तर पर सर्वे करने की बात कहते हुए वे कहते हैं कि छोटे बच्चों के अभिभावक भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजा चाहते हैं. लेकिन बोर्ड परीक्षाओं मैं बैठने वाले छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावक अपने बच्चों के साल खराब होने की चिंता में हैं. ऐसे में सरकारी स्तर पर भी इस तरह का निर्णय होना जरूरी है.
31 दिसंबर तक स्कूल नहीं खोले जा सकेंगे उन्होंने कहा कि हर स्कूल अपने स्तर पर सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करते हुए बोर्ड परीक्षाओं के कक्षाओं के विद्यार्थियों को स्कूल बुलाकर उनकी नियमित कक्षाएं लगवाने के लिए सक्षम हैं. इसको लेकर हल भी ढूंढा जा सकता है, उन्होंने कहा कि ऐसे में जब पूरी तरह से स्कूल संचालित नहीं होगी तो बोर्ड परीक्षा के विद्यार्थियों को सीमित संख्या में अलग-अलग कक्षाओं में बैठाकर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही अल्टरनेट डे पर भी बुलाने जैसी व्यवस्था की जा सकती है. इन सबसे विद्यार्थियों को फायदा होगा. उन्होंने कहा कि सरकार को इस बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. क्योंकि जब सरकार खुद कह रही है कि बिना परीक्षा दिए कोई भी बच्चा पास नहीं होगा तो यह तय है कि परीक्षा का आयोजन होगा. लेकिन जब बच्चा पढ़ ही नहीं पाएगा तो परीक्षा में क्या हल करेगा.
एक ओर जहां स्कूलों को एडवाइजरी के साथ सुनियोजित ढंग से खोलने की मांग हो रही है. वहीं दूसरी ओर अभिभावकों का कहना है कि छोटे बच्चों के लिए अभी तक स्कूल खोलने का कोई औचित्य नहीं है. अभिभावक ऋषि मोहन जोशी का कहना है कि जब तक वैक्सीन नहीं आती है, तब तक स्कूलों को खोलने के बारे में चर्चा भी नहीं करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग की पालना किसी भी हद तक संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि लाख कोशिश के बावजूद भी बच्चे एक दूसरे के पास संपर्क में जरूर आते हैं. इसके चलते संक्रमण का डर बना रहता है. ऋषिमोहन जोशी ने कहा कि बोर्ड परीक्षाओं के विद्यार्थियों को लेकर जरूर सरकार को एक टाइम प्रेम और सुनियोजित ढंग से प्लानिंग के साथ विचार करना चाहिए.
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स्कूल संचालक आनंद हर्ष कहते हैं कि हर जरूरी चीज एडवाइजरी की भावना के साथ सरकार खुद कर रही है और चुनाव से बड़ा आयोजन कुछ भी नहीं है. वहां पर भी सरकार जरूरी मानते हुए एडवाइजरी की पालना की व्यवस्था कर रही है. स्कूल संचालक अपने स्तर पर भी इस तरह की व्यवस्था कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि बोर्ड परीक्षाओं के लिए सरकार को गंभीरता से सोचने की जरूरत है. हर्ष कहते हैं कि निश्चित रूप से स्वास्थ्य पहली प्राथमिकता है. लेकिन अगर एडवाइजरी की पालना के साथ सुनियोजित ढंग से स्कूलों को संचालित करने की अनुमति दी जाती है तो कुछ भी दिक्कत नहीं होगी. आनंद हर्ष कहते हैं कि कोरोना काल में भी बोर्ड परीक्षाएं आयोजित हुई हैं. साथ ही समय-समय पर प्रतियोगी परीक्षाएं भी आयोजित की जा रही हैं और इन प्रतियोगी परीक्षाओं में लाखों विद्यार्थी परीक्षा में बैठे हैं. ऐसे में जब इन सबको लेकर व्यवस्थाएं हो सकती हैं तो स्कूल संचालन में सरकार को विचार करना चाहिए.
स्कूल खोलने के लिए राज्य सरकार को अपने स्तर पर निर्णय लेने की छूट दरअसल, स्कूल संचालकों की भी अपनी अलग पीड़ा है. एक ओर जहां पूरा साल बीतने को हैं. वहीं दूसरी ओर अभिभावक भी अब इस मुद्दे पर स्कूल संचालकों के सामने हैं और संचालक भी अब फीस मांगने की स्थिति में भी नहीं हैं. हालांकि ऑनलाइन पढ़ाई कराने वाले स्कूल 70 फीसदी फीस की मांग करते हुए नजर आते हैं. लेकिन अधिकांश स्कूलों में अभी तक पिछले साल की तुलना में फीस जमा नहीं हुई, जिसके चलते स्कूल संचालकों के लिए भी स्कूलों का संचालन करना बड़ा दुश्वार हो गया है. कुल मिलाकर अब स्कूल संचालक अभिभावक बोर्ड परीक्षाओं को लेकर चिंतित हैं. क्योंकि उन्हें इस बात की चिंता है कि अब जब शैक्षिक सत्र लगभग पूरी तरह से समाप्ति की ओर बढ़ रहा है और बच्चों की इस मायने में पढ़ाई नहीं हुई है तो वह बोर्ड परीक्षाओं में किस तरह से सफलता हासिल कर पाएंगे.