बीकानेर. देश में शनिवार को कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है. हर साल बड़ी संख्या में कैंसर के मरीज सामने आ रहे हैं. पहले ज्यादातर युवाओं और बुजुर्गों में कैंसर की बीमारी पाई जाती थी, लेकिन अब बच्चों में भी इसके ढेरों मामले देखने को मिल रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल कैंसर मरीजों में 5 फीसदी बच्चे कैंसर से हर साल पीड़ित हो रहे हैं.
बीकानेर में बढ़ रही कैंसर पीड़ित बच्चों की संख्या वहीं, बीकानेर में हर साल 12 हजार से ज्यादा नए कैंसर मरीज चिन्हित होते हैं, जिनमें करीब ढाई हजार से ज्यादा बच्चे नए रोगी के रूप में सामने आते हैं. बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज से संबंधित पीबीएम अस्पताल के आचार्य तुलसी कैंसर रीजनल रिसर्च सेंटर में राजस्थान के कई जिलों के साथ ही हरियाणा और पंजाब से भी कैंसर के मरीज इलाज के लिए आते हैं.
देश और दुनिया के अनुपात के मुकाबले बीकानेर में ये संख्या चार गुना है. आचार्य तुलसी कैंसर रिसर्च सेंटर के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. शंकर लाल जाखड़ बताते हैं कि बच्चों में होने वाले कैंसर में सबसे ज्यादा ल्यूकेमिया नामक कैंसर है, जिसे ब्लड कैंसर कहा जाता है. इसमें अक्यूटेलिम्फोबलस्टिक और अक्यूटमाइलोब्लास्टिक ऐसा चरण होता है, जिसमें अचानक इस बीमारी का पता चलता है. इसके अलावा बच्चों में आंखों को कैंसर भी हो रहा है. इसे रेटिनोब्लास्टोमा कहा जाता है. वहीं ब्रेन ट्यूमर के मामले भी सामने आ रहे हैं. चिकित्सा विज्ञान की भाषा में इसे मैड्यूलोब्लास्टोमा कहा जाता है. ब्लड कैंसर यानी ल्यूकेमिया के बाद सबसे ज्यादा इसी बीमारी से बच्चे पीड़ित होते हैं. शरीर की मांसपेशियों में चिन्हित होने वाले कैंसर को रेबडोम्योसारकोमा कहा जाता है और ये बीमारी सामने आ रही है.
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आचार्य तुलसी कैंसर रिसर्च सेंटर के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. सुरेंद्र बेनीवाल ने बताया कि बीकानेर में हर साल कैंसर के 15-20 फीसदी बच्चे चिन्हित हो रहे हैं. उनके मुताबिक बच्चों और बड़ों में होने वाली बीमारी और उसके इलाज में भी बहुत फर्क है. बच्चों के इलाज में काफी चुनौतियां हैं. हालांकि, उन्होंने बच्चों में होने वाले कैंसर के संबंध में कहा कि बच्चों में एक संभावना ये भी रहती है कि अगर समय पर बीमारी की जानकारी हो जाए तो उसका इलाज संभव है. साथ ही बच्चे की जान भी बच सकती है. लेकिन, कई बार जब ये पता चलता है कि कैंसर अपने आखिरी चरण में है तो इलाज में परेशानी होती है. ऐसे में कैंसर पीड़ित बच्चे का सरवाइव कर पाना भी मुश्किल होता है.
बड़ों के मुकाबले बच्चों के इलाज में आने वाली दिक्कतों पर बात करते हुए डॉ. सुरेंद्र बेनीवाल ने कहा कि बड़ों में खुद मरीज अस्पताल तक आता है और अपनी दवाइयों से लेकर हर चीज में परहेज करता है. हर तरह की सावधानी बरतने में खुद सझम रहता है. लेकिन, बच्चे ऐसा नहीं कर पाते. ऐसे में उनके अभिभावकों के साथ ही अस्पताल में नर्स और डॉक्टर की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि कई बार साप्ताह में एक बार कैंसर पीड़ित बच्चों को अस्पताल आना होता है, लेकिन वो खुद नहीं आ सकते. अभिभावक कई बार अन्य कामों के चलते उन्हें नहीं ला पाते हैं. ऐसे में उनका इलाज नियमित नहीं हो पाता है.
साथ ही डॉ. सुरेंद्र बेनीवाल ने ये भी कहा कि कई बार महसूस किया गया है कि कैंसर से पीड़ित बच्चों को भगवान भी कुछ ऐसी ताकत देता है, जिससे उसकी समझ का स्तर भी बड़ों के मुकाबले हो जाता है. कई बार इस तरह के उदाहरण सामने आए हैं, जब कैंसर पीड़ित बच्चा खुद अपना बेहतर ख्याल रखता है.
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वहीं, कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. शंकर लाल जाखड़ ने बताया कि बच्चों में कैंसर की वजह कई बार गर्भावस्था के दौरान रेडिएशन होता है. साथ ही कई बार अनुवांशिक तौर पर भी बच्चों में कैंसर की बीमारी होती है.