बीकानेर. मनवांछित फल की कामना और सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मंगल जीवन की अभिलाषा से शारदीय नवरात्र में नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा अर्चना और मंत्र और पाठ किए जाते हैं. 2 दिन की पूजा अर्चना के बाद विजयादशमी को दशांश हवन के साथ ही पूजा अनुष्ठान पूरा होता है. विजयादशमी यानी कि दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक, रावण पर भगवान राम की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है. लेकिन विजयादशमी का खास महत्व देवी अपराजिता (Maa Aparajita) की पूजा से भी जुड़ा हुआ है. देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की नवरात्रि में पूजा होती है और इन नौ स्वरूपों से ही देवी अपराजिता प्रकट हुई.
शत्रु दमन के लिए होती है पूजा: पचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि कि वैसे तो नाम से ही आभास हो जाता है कि अपराजिता का अर्थ है जिसकी कभी पराजय नहीं होती. उन्होंने बताया कि शत्रु दमन, किसी प्रकार की अड़चन और वर्तमान में चुनाव में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से भी मां अपराजिता की पूजा होती है. उन्होंने बताया कि सात्विक तरीके से षोडशोपचार के साथ देवी अपराजिता की पूजा करने का महत्व है. भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता की पूजा की थी और रावण पर विजय प्राप्त की थी. इसका जिक्र मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत में मिलता है.
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