बीकानेर. सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने और खान-पान के लिए पूरी दुनिया में मशहूर बीकानेर के बारे में एक और बात कही जाती है कि यहां के लोग धर्म परायण हैं. इसलिए बीकानेर को छोटी काशी कहा जाता है. बीकानेर में जगह-जगह मंदिर देखने को मिलते हैं.
बीकानेर में करीब एक हजार छोटे बड़े मंदिर हैं. इसी कड़ी में बात बीकानेर के 600 साल पुराने धरणीधर महादेव मंदिर की. यह मंदिर बीकानेर में अपना खास महत्व रखता है. इतना पुराना मंदिर होने के बावजूद इनकी पहचान पिछले 30 साल में धीरे-धीरे बनी. दरअसल बजरी के खनन एरिया से सटे इस मंदिर के पास तालाब और आगोर धीरे-धीरे खनन की भेंट चढ़ गए. एक समय ऐसा आया जब पूरे क्षेत्र को खनन से खोखला कर दिया गया. हालात यहां तक बन गए कि शहरी क्षेत्र से सटे होने के बावजूद इस क्षेत्र में शाम के बाद लोग जाते नहीं थे.
1990 में इस जगह की किस्मत बदलना शुरू हुआ. आज यह से बीकानेर में एक प्रमुख स्थान बन गया है. अब यह स्थान धार्मिक पर्यटन स्थल का रूप लेता जा रहा है. दरअसल बीकानेर में राजनीतिक पार्टी से जुड़े व्यक्ति रामकिशन आचार्य ने क्षेत्र की कायापलट करने का बीड़ा उठाया और आज समय के साथ इस क्षेत्र का विकास किया. खनन से खोखले हो चुके इस क्षेत्र में मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया. आज धरणीधर मंदिर क्षेत्र में ऑडिटोरियम, क्रिकेट ग्राउंड, क्रिकेट एकेडमी, तालाब और पार्क विकसित हो चुके हैं.
करीब 80 बीघा क्षेत्र को पूरी तरह से समतल किया गया और उसके बाद विकास के बहुत से कार्य करवाए गए. दौसा दुलमेरा, जोधपुर, जैसलमेर के पत्थरों से नक्काशीदार काम के साथ ही यहां हैरिटेज लुक में निर्माण करवाया गया. अपनों के बीच सरपंच साहब नाम से लोकप्रिय रामकिशन आचार्य सरपंच रह चुके हैं. वे बताते हैं कि 1990 में धरणीधर मंदिर के पुनर्निर्माण को लेकर बात शुरू हुई थी. पिछले 30 साल में एक भी बार यहां काम बंद नहीं हुआ. वे कहते हैं कि चिनाई करने वाला औजार आज तक यहां बंद नहीं हुआ. हर रोज काम चल रहा है. आचार्य कहते हैं कि शायद एक अच्छे मुहूर्त में एक अच्छे काम का इंतजार हो रहा था.
सरकारी मदद के साथ ही हर व्यक्ति की मदद
रामकिशन आचार्य बताते हैं कि सांसद विधायक निधि के साथ ही स्थानीय निकायों से भी यहां विकास के लिए राशि खर्च हुई. जिससे धरणीधर तालाब वापस अपने स्वरूप में आया और आज यह पूरा क्षेत्र हरियाली से आच्छादित है. भविष्य में भी यहां सघन पौधारोपण की योजना है. सरकार की मदद ही नहीं बल्कि समाज के भामाशाह और हर व्यक्ति ने खुले मन से इस काम में यहां सहयोग दिया. लेकिन किसी भी सहयोगी और दानदाता के नाम का पत्थर यहां नहीं लगाया गया.
खर्च का कोई हिसाब नहीं
आचार्य बताते हैं कि सरकार की ओर से किए गए खर्चे का रिकॉर्ड तो सरकार के पास है. लेकिन जनता से लिए गए सहयोग का कोई रिकॉर्ड नहीं है और न ही किसी काम के लिए कभी किसी से नगद राशि ली गई और न ही कोई रसीद दी गई. बल्कि हर व्यक्ति ने अपनी आस्था और क्षमता के अनुसार यहां जरूरत के सामान की उपलब्धता करवाई चाहे वह पत्थर, सीमेंट हो या फिर कुछ और. वे कहते हैं कि जितना निर्माण में खर्च हुआ है उससे ज्यादा तो यहां जमीन को समतल करने में समय और पैसा लगा है.