बीकानेरः समय के साथ तेज गति से चलने की व्यक्ति की सोच ने उसे इंसान की बजाय मशीन बना दिया है. बेशक विज्ञान ने तरक्की की है. इसका लाभ भी हमें मिला है. लेकिन खामियाजा भी उठाना पड़ रहा है. पर्यावरण में असंतुलन के चलते ही ग्लोबल वार्मिंग और हीटवेव जैसे मामले सामने आ रहे हैं.
बीकानेर के राजकीय डूंगर महाविद्यालय के रसायन विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर नरेंद्र भोजक कहते हैं कि पारिस्थितिकी असंतुलन का दुष्परिणाम ग्लोबल वार्मिंग और हीटवेव के रूप में है.
डूंगर कॉलेज के ही समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर और पर्यावरणविद श्यामसुंदर ज्याणी कहते हैं कि हीटवेव कोई लोकल फिनोमिना (local Phenomena) नहीं है बल्कि इसका कारण ग्लोबल है. औद्योगिककरण और आधुनिकीकरण (Modernization) के नाम पर हुई गतिविधियों से धरती की सतह का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. बीते सालों में धरती का ऊष्मा बजट भी बढ़ गया है. धरती जितना ताप सूरज से लेती है, उतना ही वो लौटाती है. लेकिन औद्योगिकरण (industrialization) के चलते प्रदूषण से इसमें भी असंतुलन हुआ है. लिहाजा ग्लोबल वार्मिंग और हीटवेव (Heat Wave) जैसे परिवर्तन देखने को मिले हैं.
डूंगर कॉलेज के ही प्रोफेसर और पर्यावरणविद (Environmentalist) विक्रमजीत कहते हैं कि लगातार वृक्षों का कटना और जंगल का खत्म होना पारिस्थितिकी असंतुलन (Ecological Imbalance) का सबसे बड़ा कारण है. हीटवेव या ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियां खुद मनुष्य ने ही पैदा की है. हमारी संस्कृति अरण्य संस्कृति हुआ करती थी. अरण्य का मतलब वन से है. वानप्रस्थ का मतलब भी वनगमन से है. यह सब चीजें हमारे पूर्वजों के समय थी लेकिन धीरे-धीरे इन सब में बदलाव हुआ. मनुष्य ने जब अपनी जरूरतों के लिए वनों को काटना शुरू किया तब पारिस्थितिकी असंतुलन होने लगा.