बीकानेर. पूर्वजों की संपत्ति के दस्तावेजों को लेकर कई बार उत्तराधिकारियों में विवाद हो जाता है. वैध प्रमाणित दस्तावेज नहीं होने के चलते बात अदालत तक चली जाती है. बरसों-बरस प्रॉपर्टी के मामले कोर्ट में चलते रहते हैं. बीकानेर में राज्य अभिलेखागार ने एक पहल कर रियासतकालीन 5 लाख पट्टों का डिजिटाईजेशन कर दिया है.
वर्तमान में किसी भी भूखंड या मकान का पट्टा सरकार जारी करती है. रियासतकालीन दौर में पट्टे जारी करने की व्यवस्था नहीं थी. ऐसे में एक ही जमीन के कई दावेदार हो जाते थे. जिसका कब्जा जमीन पर हो जाता, संपत्ति उसी की हो जाती थी. पुराने लोग कहावत भी कहते थे कि कागज झूठा, कब्जा सच्चा. बीकानेर रियासत के पूर्व महाराजा गंगासिंह ने इस तरह के विवादों को निपटाने के लिए रियासत स्तर पर जमीनों के पट्टे जारी किए थे. पूर्व महाराजाओं ने भी यही व्यवस्था जारी रखी.
लेकिन उन दस्तावेजों की प्रामाणिकता और उन में लिखी गई भाषा को समझना आसान काम नहीं था. बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार ने रियासतकालीन दस्तावेजों और पट्टों को डिजिटल कर दिया है. विभाग ने करीब 5 लाख रियासतकालीन पट्टे डिजिटल कर दिये हैं. ये पट्टे 1600 ई. से 1953-54 तक के हैं. अभिलेखागार ने दो कियोस्क भी स्थापित कर दिये हैं. सैंकड़ों साल पुराने इन पट्टों का लिंक इस कंप्यूटराइज्ड मशीन से कर दिया गया है. अब कोई भी व्यक्ति एक क्लिक के जरिये अपनी पैतृक संपत्ति, भूखंड या पट्टे की जानकारी निशुल्क ले सकता है.
कियोस्क से जानकारी जुटाने के बाद वह उसके माध्यम से 24 घंटे से 100 रुपये देकर सत्यापित प्रति भी हासिल कर सकता है. अमूमन इस काम में पहले 4-5 महीने लग जाते थे. अभिलेखागार के निदेशक डॉ. महेंद्र खडगावत ने बताया कि बीकानेर के अलावा अजमेर, जयपुर, जोधपुर और अलवर के रियासतकालीन पट्टों को भी डिजिटलाइज किया जा रहा है. पूरे राजस्थान में 20 लाख से ज्यादा रियासतकालीन पट्टों को डिजिटल कर दिया गया है.