बीकानेर. पुरातत्व और ऐतिहासिक स्थापत्य कला के शहर बीकानेर को 534 साल पहले राव बीकाजी ने बसाया था. 5 शताब्दी के इस सफर में बीकानेर ने बहुत ऊंचाइयों को प्राप्त किया है. आज देश और विदेश में बीकानेर की स्थापत्य कला को देखने के लिए पर्यटक आते हैं. बीकानेर में एक ऐसा प्राचीन मंदिर भी है जो बीकानेर की स्थापना से दो दशक पुराना है. देखिये यह खास रिपोर्ट...
बीकानेर को हजार हवेलियों का शहर कहा जाता है. वैसे तो बीकानेर अपनी रसगुल्लों की मिठास और भुजिया के तीखापन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने भी बीकानेर में देखने को मिलते हैं. चाहे बात बीकानेर के प्राचीन किला जूनागढ़ की हो या फिर हेरिटेज वॉक स्थित रामपुरिया हवेली की.
बीकानेर के प्राचीन भांडाशाह जैन मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके निर्माण के समय इसकी नींव पानी से नहीं बल्कि देसी घी से भरी गई थी. सुनने में भले ही यह बड़ा अटपटा लगता है. लेकिन इस मंदिर के बारे में यही कहा जाता है. 552 साल पूर्व स्थापित जैन मंदिर को सेठ भांडाशाह ने बनवाया था.
श्रीश्वेतांबर जैन धर्म के पांचवे तीर्थंकर श्रीसुमतिनाथ जी का यह मंदिर आज सिर्फ जैन धर्मावलंबियों तक ही सीमित नहीं हैं. बल्कि देश और दुनिया के हर कोने से हर दिन बीकानेर में आने वाले पर्यटक इस मंदिर के दर्शन के लिए जरूर आते हैं.
बीकानेर शहर के मंदिरों में सर्वोच्च शिखर वाले इस मंदिर की भव्यता और और कलात्मकता बेमिसाल है. इस मंदिर का निर्माण कार्य 46 साल तक चला. 506 साल पहले यह मंदिर पूरी तरह बनकर तैयार हुआ. इस मंदिर को भारत सरकार ने राष्ट्रीय सरंक्षित स्मारक के रूप में शामिल किया है.
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मंदिर के पुजारी जगदीश सेवक कहते हैं कि पीढ़ियों से उनका परिवार इस मंदिर में पुजारी के तौर पर जुड़ा हुआ है. वे कहते हैं कि इस मंदिर में तकरीबन चार हजार क्विंटल देसी घी का प्रयोग किया गया. जगदीश बताते हैं कि तेज गर्मियों के समय में इस मंदिर का फर्श सतही तौर पर चिकना हो जाता है. जो कहीं न कहीं इस बात का सूचक है कि घी गर्मी में ऊपर आने लगता है.
मंदिर को देखने के लिए आए पर्यटक कहते हैं कि इस तरह की स्थापत्य कला का नमूना उन्होंने पहले कभी नहीं देखा. चंडीगढ़ से आए पर्यटक दंपत्ति का कहना था कि इस मंदिर के बारे में गूगल पर बहुत कुछ पढ़ा था, इसे देखकर दिल खुश हो गया.
इटालियन मार्बल और जैसलमेर की पत्थरों का प्रयोग
देसी घी से भरी नींव की खासियत तो जमीन के नीचे दबी हुई कही जा सकती है. लेकिन नींव के ऊपर बना यह भव्य मंदिर अपनी नक्काशी कला के लिए भी प्रसिद्ध है. मंदिर के निर्माण में जैसलमेरी पीला पत्थर और इटालियन मार्बल का इस्तेमाल इसे और भी नायाब बना देता है.