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भीलवाड़ा में निकाली गई जिंदा व्यक्ति की अनोखी शव यात्रा, अबीर-गुलाल के बीच शीतला अष्टमी पर निकालने की है अनूठी परंपरा

भीलवाड़ा में शीतला अष्टमी पर हर बार की तरह अबीर-गुलाल और ढोल नगाड़े के साथ जिंदा व्यक्ति की अनोखी शव यात्रा (unique funeral procession in Bhilwara) निकाली गई. शीतला अष्टमी निकाली जाने वाली इस अनूठी परंपरा में बड़ी संख्या में शहर के लोग सड़कों पर नाचते गाते निकले.

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Published : Mar 25, 2022, 8:27 PM IST

Updated : Mar 25, 2022, 10:47 PM IST

funeral procession of a living person tradition
जिंदा व्यक्ति की अनोखी शव यात्रा

भीलवाड़ा. मेवाड़ के प्रवेशद्वार भीलवाड़ा में शीतला अष्टमी के मौके पर दशकों से जिंदा व्यक्ति की शव यात्रा निकालने की अनूठी परंपरा (unique funeral procession in Bhilwara) रही है. इस अनोखी शवयात्रा में सैकड़ों शहरवासी भाग लेते हैं. पिछले 2 सालों से कोरोना संक्रमण के चलते लगे इस पर प्रतिबंध लगा हुआ था. इसबार प्रतिबंध हटने के बाद भीलवाड़ा शहर में बड़े धूमधाम से शीतला सप्तमी पर जिंदा व्यक्ति की अनोखी शवयात्रा निकाली गई. शव यात्रा में सैकड़ों की संख्या में शहरवासी शामिल हुए और हंसी के गुब्बारे छोड़ते हुए शहर के मुख्य मार्गों से गुजरे.

भीलवाड़ा में इस कार्यक्रम को लेकर जिला कलेक्टर की ओर से अवकाश भी घोषित किया गया था. साथ ही पूरे शहर में पुलिस की ओर से कड़ा पहरा रखा गया ताकि यह पूरा कार्यक्रम शांति से हो सके. शहर के प्रमुख लोगों की मौजूदगी में रंग-गुलाल उड़ाते और हंसी मजाक करते इस मुर्दे की सवारी निकाली गई. स्थानीय लोगों का कहना है कि यात्रा का उद्देश्य ऐसा मनोवैज्ञानिक संदेश देना है कि हम सुख-दुख में मजबूत रहें, कैसा भी दुख और परेशानी हो हम खुशी से जीवन जिएं.

जिंदा व्यक्ति की अनोखी शव यात्रा

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शहर की शीतला अष्टमी पर निकाली जाने वाली शवयात्रा बहुत अनूठी होती है. इस यात्रा में एक जीवित व्यक्ति को अर्थी पर लेटाकर चार कंधों पर ले जाया जाता है. यह जिंदा व्यक्ति की शवयात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए गाजे-बाजे और गीतों के साथ प्राचीन बड़े मंदिर के पास पहुंचती है. मंदिर के पीछे अंतिम संस्कार की प्रक्रिया की जाती है. इस दौरान शव पर लेटा व्यक्ति अर्थी से उठकर भाग जाता है और कार्यक्रम संपन्न हो जाता है.

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अंतर्राष्ट्रीय कलाकार बहरूपिया जानकीलाल ने बताया कि भीलवाड़ा में दशकों से इलाजी की डोल निकाली जाती है. शहर में रहने वाली गेंदार नाम की एक वैश्या ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. गेंदार की मौत के बाद स्थानीय लोग अपने स्तर पर मनोरंजन के लिए यह यात्रा निकालने लगे. संदेश था अपने अंदर की बुराइयों को निकालकर उनका अंतिम संस्कार कर देना. अच्छी बात ये है होली के आस-पास होने के कारण यह संदेश देने वाली यात्रा हंसी-ठिठोली के बीच निकाली जाती है. शवयात्रा चित्तौड़ वालों की हवेली से शुरू होती है और पुराने शहर के बाजारों से होती हुई बहाले में जाकर पूरी होती है. वहीं इस यात्रा से एक दिन पहले बहाले में भैरूंजी और इलाजी की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं. इन प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की जाती है. जानकी लाल ने बताया कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में यहीं इस यात्रा का आयोजन देखा है.

कौन थे इलाजी
मान्यता है कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का विवाह इलाजी से तय हुआ था. विवाह की तिथि पूर्णिमा की निकली थी. इधर, हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद की भक्ति से परेशान था. बेटे के मुंह से अपने दुश्मन नारायण का नाम बार-बार सुनकर उसने बहन होलिका के सामने प्रस्ताव रखा कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठे. होलिका ने मना किया तो हिरण्यकश्यप ने उसके विवाह में खलल डालने की धमकी दी. बेबस होलिका ने भाई की बात मान ली. वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि शैया पर बैठ गई . इसी दिन उनका विवाह भी था इसलिए इलाजी बारात लेकर आ गया था लेकिन जब पता चला कि होलिका नहीं रही तो उसने उसकी राख को ही अपने पूरे शरीर पर लपेट लिया. होलिका की मौत के दुख में इलाजी पूरे जीवन अविवाहित रहा.

Last Updated : Mar 25, 2022, 10:47 PM IST

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