भीलवाड़ा. मेवाड़ के प्रवेशद्वार भीलवाड़ा में शीतला सप्तमी के मौके पर करीब 5 सदी से जिंदा मुर्दे की शव यात्रा निकालने की परंपरा रही है. इस अनोखी शवयात्रा में सैकड़ों शहरवासी भाग लेते हैं. इस बार कोरोना संक्रमण के चलते यह यात्रा नहीं निकाली जा सकी. देखिये ये रिपोर्ट...
भीलवाड़ा की शीतला सप्तमी शवयात्रा बहुत अनूठी होती है. इस शव यात्रा में एक व्यक्ति को अर्थी पर लेटाकर उसे कंधों पर उठाकर उसकी शव यात्रा निकाली जाती है. यह जिंदा व्यक्ति की शवयात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए गाजे-बाजे और गीतों के साथ प्राचीन मंदिर के पास पहुंचती है. मंदिर के पीछे शव का अंतिम संस्कार किया जाता है. इस दौरान शवयात्री अर्थी से उठकर भाग जाता है.
अंतर्राष्ट्रीय कलाकार बहरूपिया जानकीलाल भांड ने बताया कि भीलवाड़ा में करीब 500 साल से यह इलाजी की डोल निकाली जाती है. जानकी लाल ने बताया कि शहर में रहने वाली गेंदार नाम की एक वैश्या ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. गेंदार की मौत के बाद स्थानीय लोग अपने स्तर पर मनोरंजन के लिए यह यात्रा निकालने लगे. संदेश था अपने अंदर की बुराइयों को निकालकर उनका अंतिम संस्कार कर देना अच्छी बात है. होली के आस-पास होने के कारण यह अच्छा संदेश देने वाली यात्रा हंसी-ठिठोली के वातावरण के साथ घुल-मिल गई.
शवयात्रा में शहरभर के लोग शामिल होते हैं. जिंदा व्यक्ति की अर्थी चित्तौड़ वालों की हवेली से शुरू होती है. इसके बाद पुराने शहर के बाजारों से होती हुई बहाले में जाकर पूरी होती है. इस यात्रा से एक दिन पहले बहाले में भैरूंजी और इलाजी की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं. इन प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना भी भव्यता के साथ की जाती है. जानकी लाल ने बताया कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में इस यात्रा का आयोजन देखा है. सिर्फ भीलवाड़ा में ही यह अनोखी यात्रा निकाली जाती है.