भीलवाड़ा. सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना का दौर जारी है. हर छोटे-बड़े शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की आस्था का अनूठा नजारा देखने को मिल रहा है. इसी कड़ी में भीलवाड़ा के तिलस्वा महादेव मंदिर (Tilswan Mahadev of Bhilwara) में भी हर दिन भक्तों का तांता लगा हुआ है. भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया क्षेत्र में तिलस्वां महादेव का प्रसिद्ध शिव मंदिर है जहां मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो तिल के समान है. जहां भक्त भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर परिवार में सुख शांति समृद्धि की कामना करते हैं.
जिले के ऊपर माल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिजौलियां उपखंड में अरावली पर्वत श्रृंखला के मध्य ऐरु नदी किनारे स्थित जन-जन की आस्था का केंद्र तिलस्वां महादेव मंदिर काफा अनूठा है. यहां भोले की आस्था में डूबे भक्तों का हर दिन मेला लगा रहता है. मान्यता है कि भगवान शंकर की पूजा करने व सामने स्थित कुंड में नहाने व उसकी मिट्टी लगाने से कैंसर समेत सभी लाइलाज बीमारियों के साथ ही असाध्य चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है.
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10वीं से 12वीं सदी के बीच हुई स्थापनाःऊपर माल क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध तिलस्वां महादेव मंदिर की स्थापना 10 वीं से 12 वीं सदी के बीच आज से 2024 वर्ष पूर्व राजा हवन ने की थी. राजा हवन ने ऊपर माल क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध बिजोलिया क्षेत्र में 12 मंदाकिनीय बनाई. उसमें से तिलस्वां महादेव प्रमुख मंदाकनी के नाम से शिव मंदिर प्रसिद्ध है. जहां सावन माह में देश व प्रदेश से काफी संख्या में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं. यहां तक की कोई भक्त जो कुष्ठ रोग से ग्रसित होता है व भक्त भगवान भोलेनाथ को न्यायाधिपति मानते हुए मंदिर परिसर में कैदी के रूप में रहकर प्रतिदिन पवित्र कुंड में स्नान कर भगवान भोलेनाथ के मंदिर की परिक्रमा करते हैं. मान्यता है कि इससे असाध्य रोग दूर हो जाते हैं. सावन जैसे पवित्र माह में प्रतिदिन ब्राह्मण भगवान भोलेनाथ का पाठ करते हैं और भगवान शंकर का प्रतिदिन श्रृंगार किया जाता है.
एक तिल के समान हैंः तिलस्वां महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो एक तिल के समान है. तिल के समान शिवलिंग होने से यहां का धार्मिक महत्व काफी है. सावन जैसे पवित्र माह में यहां बालिकाएं व युवतियां अच्छा जीवन साथी मिलने की कामना लेकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के लिए भजन गाती हुई आती हैं.
कुंड के जल और मिट्टी है खासःतिलस्वां महादेव मन्दिर का निर्माण पौराणिक काल का माना जाता है . मंदिर के ठीक सामने विशाल गोलाकार कुण्ड बना हुआ है. मध्य में गंगा माता का मन्दिर हैं यहां दर्शनार्थियों के स्नान के लिए चारों ओर घाट बने हुए हैं. मुख्य मंदिर के दोनों ओर गणेश व अन्नपूर्णा के मन्दिर हैं . मन्दिर के प्रवेश द्वार के समीप ही सभा मण्डप है. यहां रहने वाले रोगी सुबह-शाम भजन-कीर्तन करते हैं. यहां बने तीन विशाल सिंहद्वार भी आकर्षण के केंद्र हैं. मंदिर की सेवा-पूजा का कार्य पाराशर परिवार की ओर से 16 पीढ़ियों से किया जा रहा है. पुजारी स्व.भंवरलाल पाराशर की ओर से भक्तों के सहयोग से कुण्ड का निर्माण करवाया गया था.
कैसे पड़ा तिलस्वा महादेव का नामः'तिलस्वां' नाम के पीछे भी एक जनश्रुति है. माना जाता है कि मेनाल के राजा हवन को एक बार कुष्ठ रोग हो गया तो एक सिद्ध योगी ने उसे बिजौलियां के मन्दाकिनी महादेव के कुण्ड में स्नान करने का आदेश दिया .जिससे सम्पूर्ण शरीर का कोढ़ तो मिट गया, लेकिन 'तिल' मात्र कोढ़ शेष रह गया. इस पर योगी ने राजा को यहां से थोड़ी दूर दक्षिण दिशा में स्थित जल कुण्ड में स्नान करने और वहां स्थापित शिवलिंग की पूजा करने का आदेश दिया. राजा के ऐसा करने पर 'तिल' मात्र कुष्ठ भी ठीक हो गया .तभी से 'तिलस्वां' नाम का विख्यात हुआ और राजा ने यहां विशाल शिव मन्दिर का निर्माण करवाया. मान्यता है कि यहां के पवित्र कुण्ड में स्नान करने और यहां की मिट्टी जिसे स्थानीय भाषा में 'केसर गार' कहा जाता है का लेपन करने से असाध्य और दुष्कर रोग भी दूर हो जाते हैं.