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स्पेशल स्टोरी: इस सरकारी स्कूल में बच्चों के पोषाहार के लिए 'मास्टरजी' उगाते हैं ऑर्गेनिक सब्जियां - भीलवाड़ा न्यूज़

भीलवाड़ा जिले के आसींद पंचायत समिति के गनपुरा गांव का सरकारी स्कूल अपने आप में अनूठा है. यहां का इन्फ्रास्ट्रक्चर तो आम स्कूलों की तरह ही है लेकिन कैंपस में बना किचन गार्डन इसे अनोखा बनाता है. यही वजह है कि यहां पढ़ने वाले बच्चे प्रकृति को करीब से देख पाते हैं और अपने स्वास्थ्य का भी ख्याल रख पाते हैं. देखें ये खास रिपोर्ट...

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स्कूल में उगाई सब्जियां खाते हैं स्टूडेंट्स

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Published : Jan 27, 2020, 2:58 PM IST

Updated : Jan 27, 2020, 5:50 PM IST

भीलवाड़ा.राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गेनपुरा में स्कूली बच्चों की दिनचर्या मां सरस्वती की वंदना से शुरु होती है. इसके बाद बच्चे अपनी-अपनी कक्षाओं की तरफ रुख करते हैं. इस बीच जब पोषाहार का समय होता है तो बच्चों के सेहत का पूरा ख्याल रखा जाता है. पोषाहार में उन्हें ऑर्गेनिक सब्जियां ही परोसी जाती हैं. खास बात ये है कि ये साग-सब्जियां हैं स्कूल स्टाफ द्वारा कैंपस में ही खाली पड़ी जमीन पर उगाई जाती हैं.

स्कूल में उगाई सब्जियां खाते हैं स्टूडेंट्स

बच्चों की शिक्षा के साथ उनके स्वास्थ्य को ध्यान रखते हुए स्कूल स्टाफ ने ये अनूठी पहल की है. एक बीघा के करीब जमीन में बने इस गार्डन में सब्जियां उगाने के लिए किसी प्रकार के रसायन का उपयोग नहीं होता. पिछले 1 वर्ष से लगातार स्कूल स्टाफ बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ सब्जियां भी उगा रहा है. जहां सर्दी की ऋतु में सब्जियां खत्म होने पर विद्यालय कैंपस में स्थित दूसरी जगह पर गर्मी की ऋतु की सब्जियों की बुवाई की जा चुकी है. इन सब्जियों की विशेष तौर पर ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की जा रही है.

किचन गार्डन प्रभारी और पोषाहार बनाने वाली महिलाएं प्रतिदिन गार्डन की निगरानी करती हैं. वर्तमान में सर्दी ऋतु के हिसाब से पालक, मोगरी, मूली, धनिया, लौकी, गाजर और हरी मिर्च की बुवाई हो रखी है. जिनका उपयोग बच्चों के पोषाहार बनाने में लिया जाता है. साथ ही आगामी गर्मी ऋतु को देखते हुए भिण्डी, गवारफली, करेला, टिंडी, तर ककड़ी की बुवाई अभी से की जा चुकी है. स्कूल में अध्यनरत एक छात्र महावीर गुर्जर ने बताया कि हमें पोषाहार में यहां उगी सब्जियां ही उपयोग में ली जाती हैं.

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ड्रिप सिस्टम से सिंचाई
खास बात यह है कि बागवानी ड्रिप सिस्टम से कि जाती है. इससे रोजाना सैकड़ों लीटर पानी की बचत होती है. प्रत्यक्ष रुप से तो नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से स्कूल के बच्चे भी इसमें हाथ बंटाते हैं. एसयूपीडब्ल्यू (समाज उपयोगी एवं उत्पादक शिविर) कैंप के माध्यम से बच्चों को बागवानी से परिचित करवाया जाता है. स्कूल के शिक्षकों का मानना है कि भविष्य में विद्यार्थी कृषि व उद्यानिकी को आजीविका का माध्यम भी बना सकते हैं.

शिक्षा के साथ-साथ देशभक्ति और स्वास्थ्य भी
स्कूल के एक अध्यापक ने जानकारी दी कि प्रार्थना सभा में भी कई तरह के नवाचार किए जाते हैं. बच्चों को देशभक्ति से जोड़ने के लिए बच्चे कभी राष्ट्र की शान तिरंगा की आकृति में बैठकर जय हिंद, जय हिंद के नारे लगाते हैं. तो कभी उन्हें प्रार्थना सभा में ही महापुरूषों की जीवनियों के बारे में भी बताया जाता है.

विद्यालय के संस्था प्रधान रामस्वरूप शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया कि उनका उद्देश्य बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना है. बाजार में मिल रही सब्जियां में कई तरह के रासायन होते हैं. कुछ जगह खाद का ज्यादा उपयोग होता है. कहीं गंदे पानी से सब्जियां बोई जाती हैं. इसलिए स्कूल में खाली पड़ी जमीन को किचन गार्डन की शक्ल दी गई और सब्जियों का उत्पादन शुरु किया गया. उनके मुताबिक बच्चों के पोषाहार के लिए पर्याप्त मात्रा में सब्जी का उत्पादन हो जाता है.

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बच्चों से नहीं करवाया जाता कोई काम
स्कूल के ही एक स्टाफ ने बताया कि उनके यहां 220 छात्र-छात्राएं अध्यनरत हैं. स्कूल में 11 शिक्षकों का स्टाफ है. हम यहां बच्चों के सिलेबस के अलावा शारीरिक विकास की भी शिक्षा देते हैं. साथ ही अलग-अलग मौसम में अलग-अलग सब्जियां उगाई जाती हैं. बच्चों से कोई काम नहीं करवाया जाता केवल विशेष शिविर के तहत ही उन्हें बागवानी सिखाई जाती है. और ड्रिप सिस्टम से सिंचाई के माध्यम से हम पानी बचाने का संदेश भी दे पाते हैं.

स्कूल में पोषाहार बनाने का जिम्मा संभालने वाली महिला ने बताया कि वे खुद गार्डन से सब्जियां तोड़कर लाती हैं. इसके अलावा निराई और गुड़ाई का काम भी करती हैं. उनका मानना है जिस तरह वे अपने खेत पर काम करती हैं, उसी तरह स्कूल के इस गार्डन की भी देखभाल करती हैं ताकि छोटे-छोटे बच्चों को अच्छा आहार दिया जा सके.

Last Updated : Jan 27, 2020, 5:50 PM IST

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