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आदिवासी क्षेत्र के लिए अलग राज्य बनाना, समस्याओं का समाधान नहीं -पद्मश्री महेश शर्मा - Mahesh Sharma on development in tribal areas

मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में आदिवासियों के उत्थान के लिए वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित महेश शर्मा रविवार को जिले के प्रवास पर (Padma Shri Mahesh Sharma in Bhilwara) रहे. इस दौरान ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा कि आदिवासियों के अलग राज्य बनाने से समस्या का समाधान नहीं होगा. उन्होंने स्वर्ण व दलित में बढ़ती खाई के लिए अज्ञानता को जिम्मेदार ठहराया और बताया कि लोगों को आदिवासियों के बीच जाने की जरूरत है.

आदिवासी क्षेत्र के लिए अलग राज्य बनाना, समस्याओं का समाधान नहीं-पद्मश्री महेश शर्मा

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Published : Jun 12, 2022, 10:25 PM IST

Updated : Jun 12, 2022, 10:41 PM IST

भीलवाड़ा. मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में आदिवासियों के उत्थान के लिए वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित महेश शर्मा का कहना है कि आदिवासियों के लिए अलग राज्य बनाना समस्याओं का समाधान नहीं (Mahesh Sharma on demand of separate state for tribal) है. अब तक जो राज्य इस आधार पर बने हैं, वे आज भी केंद्रीय सहायता पर आश्रित हैं. उन्होंने स्वर्ण और दलितों के बीच बढ़ती खाई पर कहा कि लोगों को आदिवासी समाज के बीच जाना होगा, तब ये दूरियां मिटेंगी.

शर्मा ने रविवार को नगर परिषद के महाराणा प्रताप सभागार में 'पाथेय हमें प्राप्त होगा' शीर्षक पर वरिष्ठजनों को संबोधित किया. इस दौरान ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्र में अलग राज्य बनाना समस्या का समाधान नहीं है. अलग राज्य बनने पर भौतिक संसाधन के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़ेगा. जैसे पूर्वोत्तर में राज्य अलग बने पर केंद्र पर आश्रित हैं. इसलिए जिस तरह परिवार में सभी एकजुट रहकर परिवार का विकास करते हैं, उसी तरह सभी को एकजुट रहकर काम करना होगा. आदिवासी क्षेत्र में कुछ राजनेताओं की इच्छा शक्ति कमजोर रही है. इस वजह से उस क्षेत्र में विकास जिस गति से होना चाहिए था, वह नहीं हो रहा (Mahesh Sharma on development in tribal areas) है. लेकिन अलग राज्य बनना कोई समस्या का हल नहीं है.

आदिवासी क्षेत्र के लिए अलग राज्य बनाना, समस्याओं का समाधान नहीं-पद्मश्री महेश शर्मा

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देश में स्वर्ण और दलितों के बीच बढ़ती खाई के बारे में शर्मा ने कहा कि स्वर्ण व दलित के बीच गहराती खाई को पाटने के लिए हमने जो प्रयास किए हैं, उसके परिणाम भी अब सामने आने लगे हैं. शहरों में जो स्वर्ण समाज रहता है, वो जनजाति क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समाज के पहनावे, संस्कृति को देख पिछड़ा मानते हैं. जबकी मैंने आदिवासी समाज के लोगो को नजदीक से देखा है. इस दौरान महसूस किया कि शहरों के मुकाबले जनजाति क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समाज के लोगों की वैवाहिक परंपरा व सामाजिक रीति-रिवाज कहीं आगे हैं. स्वर्ण व दलितों में अज्ञानता के कारण दूरियां बढ़ रही हैं. जब तक धरातल पर स्वर्ण समाज के लोग आदिवासी समाज व दलित के बीच जाकर नहीं बैठेगे, तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा.

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शर्मा ने कहा कि पहले लोगों में जनजाति समाज के प्रति चोर, लुटेरे व कुछ काम नहीं करना जैसी धारणा थी. लेकिन जब मैंने धरातल पर जाकर निकट से देखा तो पता चला कि वास्तव में देश में इनकी गलत तस्वीर पेश की गई. इसलिए धरातल पर मैंने गांव वालों के साथ बैठकर इनको सशक्त बनाने का प्रयास किया. जिसके कारण यह समाज आज समृद्ध समाज के नाम से जाना जाने लगा है. शर्मा ने 1978 से 1998 तक विद्या भारती में प्रांत संगठन मंत्री एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों में रहते हुए उल्लेखनीय कार्य किए. 1998 में वनवासी कल्याण आश्रम में प्रांत महामंत्री का पद निभाते हुए झाबुआ आए. तब से लेकर विगत 24 वर्षों से झाबुआ वनांचल क्षेत्र में सामाजिक अध्ययन, जागरण, सामाजिक समृद्धि के लिए जो सराहनीय कार्य किए, उसके चलते उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

Last Updated : Jun 12, 2022, 10:41 PM IST

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