भीलवाड़ा. अगर किसान परंपरागत खेती छोड़कर आधुनिक नवाचार के साथ सब्जियों की खेती करें, तो खेती घाटे का सौदा साबित नहीं हो सकती है. यही कर दिखाया भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा क्षेत्र के पनौतिया गांव के किसान गोपाल कुमावत ने. जिन्होंने एक बीघा हल्दी की फसल बोकर लाखों रुपए की उपज ली है. जहां किसान गोपाल ने ईटीवी भारत के माध्यम से अपील करते हुए कहा कि अगर प्रदेश के अन्य किसान इसी तरह परंपरागत खेती छोड़ कर आधुनिक नवाचार के साथ किसानी काम करें, तो उनका जीवन स्तर सुधर सकता है.
भीलवाड़ा में कृषि में नवाचार कर किसान ने कमाया लाभ.. हल्दी की उपज देखकर बनाया मन
ईटीवी भारत की टीम भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा क्षेत्र के पनौतिया गांव पहुंची. जहां हल्दी की फसल की उपज देखकर टीम भी दंग रह गई. किसान अपने खलियान से उपज को समेट रहा था. इस दौरान किसान गोपाल लाल कुमावत ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि मुझे यह फसल बोने की प्रेरणा तब मिली जब में कोटा में नीट की पढ़ाई कर रहे मेरे बेटे से मिलने गया. रास्ते में हल्दी के खेत देखकर उनका मन किया कि हल्दी किसानों से बात की जाए. गोपाल ने किसानों से संवाद किया. इस संवाद का असर यह हुआ कि गोपाल कुमावत ने भी हल्दी की खेती करने का मन बना लिया.
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एक बीघा खेत में हल्दी की खेती का प्रयोग किया
किसान गोपाल कुमावत ने बताया कि उन्होंने परंपरागत खेती छोड़कर हल्दी की फसल बोने का इरादा पक्का कर लिया था. 4 जून 2020 को उन्होंने बूंदी से हल्दी की बीज मंगवा लिए. इसके बाद खेत की सिंचाई करके जुताई की. फिर एक बीघा में 500 किलो हल्दी के बीज की बुआई कर दी. गोपाल ने एक अहम बात ये बताई कि हल्दी की फसल की बुवाई के बाद न तो निराई गुड़ाई होती है और न ही खरपतवार बडा होता है. फसल उगने के बाद खरपतवार बड़ा नहीं हो, इसके लिए गोपाल ने जमीन पर वेस्ट बिखेरा. इससे खरपतवार बड़ा नहीं होता है.
दिसंबर के अंत तक तैयार हो गई हल्दी की फसल... दिसंबर के अंत तक तैयार हो गई फसल
हल्दी की फसल की बुवाई के बाद 10 से 12 दिन के अंतराल में 6 माह तक इनकी पिलाई करनी पड़ती है. बाद में दिसंबर के प्रथम पखवाड़े से दिसंबर लास्ट तक इनकी फसल परिपक्व होकर तैयार हो जाती है. गोपाल ने ईटीवी के जरिए प्रदेश के अन्य किसानों से भी अपील की कि वे भी परंपरागत खेती छोड़कर इसी तरह सब्जी औऱ बागवानी की खेती करें. ताकि किसानों का जीवन स्तर सुधर सके.
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अब हल्दी उगल रही सोना
गोपाल ने बताया कि उनके एक बीघा खेत में 100 क्विंटल हल्दी की उपज हुई है. वर्तमान में 25 रूपये प्रति किलो के भाव से हल्दी की उपज बिक रही है. अगर प्रदेश में किसान इसी तरह खेती करें तो खेती घाटे का सौदा साबित नहीं होगी. क्योंकि कपास की फसल में निराई गुड़ाई औऱ कीटनाशक छिड़काव करना पड़ता है. लेकिन उपज अच्छी नहीं होती. हल्दी की फसल में ना तो कीटनाशक, ना निराई गुड़ाई का काम है. सिर्फ उपज ही उपज है.
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किसान गोपाल कुमावत की हल्दी की उपज देखने आए देवरिया गांव के रामगोपाल पुरोहित ने कहा कि वे हल्दी की फसल देखने आए हैं. अब वे भी परंपरागत खेती छोड़कर हल्दी की फसल बोएंगे. जिससे अच्छी उपज होगी. वहीं अन्य किसान राधाकृष्ण ने कहा कि वे भी इस इलाके में हल्दी की फसल देखकर दंग रह गए. राधाकृष्ण ने भी कहा कि वे अगले सीजन में हल्दी की फसल बोएंगे.
सवा बीघा में अच्छी उपज हासिल की किसान गोपाल ने... कुल मिलाकर हल्दी की फसल की यह शुरुआत इलाके के किसानों की तकदीर बदल सकती है. गोपाल ने जो नवाचार किया है उसका फायदा उसे मिलने लगा है. अब गोपाल कुमावत की देखादेखी अन्य किसान भी अपने खेतों में सब्जी और बागवानी की खेती करने को लालायित हैं.