भरतपुर.घर की सजावट के लिए लोग तरह-तरह की चीजें आजमाते रहते हैं. खासकर बैठक की सजावट के लिए लकड़ी और बेंत से बनी वस्तुएं आमतौर पर इस्तेमाल होती हैं, लेकिन बदलते समय के मुताबिक अब लोग घरों में महंगी सजावटी वस्तुओं के बजाय साधारण दिखने वाली वस्तुओं को सजावट और रोजमर्रा इस्तेमाल के लिए उपयोग करना पसंद करते हैं. इसलिए दफ्तरों और रेस्तरां के अलावा अब घरों में भी सरकंडों या नायलॉन से बने सोफे, कुर्सियां, सजावटी चीजें रखना नया चलन बन चुका है.
घर की सजावट और रख-रखाव में चकाचौंध भरे सामान और भारी-भरकम कला के नमूने और चीजें रखने का चलन अब नहीं रहा. वजह यह भी है कि एक तो ये महंगे होते हैं और दूसरा, ज्यादा लंबे समय तक एक जैसी साज-सज्जा उबाऊ भी हो जाती है. साथ ही इन्हें संभालना काफी मशक्कत का काम है. ऐसे में आजकल घर के आंतरिक और बाहरी रूप में बदलाव जल्दी होने लगे हैं. पर अब लोग किफायती सामान ढूंढ़ते हैं, जिसे बदलना आसान हो और जो जेब भी ज्यादा हल्की न करें. साथ ही जिसे एक जगह से दूसरी जगह खिसकाना, हटाना भी आसान हो. ऐसे में सरकंडों से बने मुड्डे घरों की शोभा बढ़ाने के मामले में लोगों की पहली पसंद बन चुके हैं.
राजस्थान ना केवल अपने किलों और इमारतों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की शिल्पकारी और कलाकृतियां लोगों को हमेशा से ही आकर्षित करती रही हैं. प्रदेश के भरतपुर को मुड्डों के लिए जाना जाता है. ये मुड्डे देश में बिकते ही हैं. विदेशों में भी इनकी अच्छी खासी मांग रहती है. इसलिए भारी संख्या में जिले में मुड्डे और मुड्डी बनाई जाती है.
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भरतपुर जिले में कई गांव ऐसे हैं जो केवल मुड्डों का निर्माण कर अपना घर चलाते हैं, लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है. यह व्यापार पूरी तरह से ठप हो गया है. जिससे ये पूरा का पूरा गांव ही बेरोजगार हो गया है. हालात ये हैं कि बीते तीन माह से यहां का मुड्डा व्यवसाय पूरी तरह ठप पड़ा है. ईटीवी भारत ने इस गांव में पहुंच कर यहां के लोगों से बात की.
हम बात कर रहे हैं भरतपुर के गांव चक नगला बीजा की. इस गांव में घुसते ही यहां की खासियत पता चल जाती है. कोई पेड़ की छांव में तो कोई घर के चबूतरे पर. हर तरफ लोग सरकंडों को मुड्डा का आकार देते नजर आते हैं. यहां बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक मुड्डा, मुड्डी बनाने में पारंगत हैं. केवल ये ही नहीं आस-पास के करीब 12 गांव और भी हैं जो इस मुड्डा व्यवसाय पर ही निर्भर हैं.
केवल गांव चक नगला बीजा में 60 घरों की बस्ती है और सभी घरों के लोग मुड्डा बनाने का ही काम करते हैं. लेकिन इस बार कोरोना ने इस गांव को ऐसा दंश दिया है कि पूरा गांव ही बेरोजगार हो गया है.
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मुड्डा व्यवसायी खेम चंद और पवन बताते हैं कि वो और उनका पूरा गांव पुश्तों से मुड्डा, मुड्डी बनाने का काम कर रहे हैं. गांव के हर घर में सरकंडों से मुड्डे बनाता कोई ना कोई आपको नजर आ ही जाएगा.