भरतपुर. शहर से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित बयाना को बाणासुर नगरी के नाम से भी जाना जाता है. इसी कस्बे में एक बहुत ही प्राचीन उषा मंदिर स्थित है जिसे भगवान श्री कृष्ण के नाती अनिरुद्ध और बाणासुर की पुत्री उषा के प्रेम के प्रतीक के रूप में पहचाना जाता है. मंदिर के पुजारी और बुजुर्ग कस्बे वासियों की मानें तो सूर्य की पहली किरण बयाना कस्बे में सबसे पहले उषा मंदिर पर पड़ती है. इतना ही नहीं, इस मंदिर से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्य ऐसे हैं जो कि रोमांचित कर देने वाले हैं. उषा मंदिर से कई इतिहास और किंवदंतियां जुड़ी हैं.
मंदिर के पुजारी चंद्र प्रकाश ने बताया कि इतिहास में उषा मंदिर को लेकर एक किवदंती काफी प्रचलित है. जिसमें बताया जाता है कि बाणासुर की पुत्री उषा को एक रात स्वप्न में भगवान श्री कृष्ण के नाती अनिरुद्ध दिखाई दिए. उषा को अनिरुद्ध से प्रेम हो गया और अगले दिन अपनी सहेली चित्रलेखा से स्वप्न के बारे में चर्चा की. जिसके बाद मायावी चित्रलेखा ने अनिरुद्ध का चित्र बनाया और उषा ने उसे पहचान लिया. उषा ने अपनी सहेली चित्रलेखा से सिर्फ अनिरुद्ध से ही विवाह करने की इच्छा जताई, जिसके बाद मायावी चित्रलेखा द्वारिका से अनिरुद्ध को अपहरण कर बाणासुर की नगरी बयाना ले आई.
जब भगवान श्री कृष्ण को अपने नाती अनिरुद्ध के अपहरण की सूचना मिली तो भगवान श्री कृष्ण ने बयाना पर चढ़ाई कर दी. भगवान श्री कृष्ण और बाणासुर में बयाना की धरती पर भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने बाणासुर को पराजित कर दिया. उसके बाद बाणासुर की पुत्री उषा और भगवान श्री कृष्ण के नाती अनिरुद्ध का विवाह हुआ और उसी की याद में इस मंदिर का नामकरण उषा मंदिर किया गया.
96 स्तंभों पर निर्मित है मंदिर...
मंदिर के पुजारी चंद्र प्रकाश ने बताया कि ऐतिहासिक उषा मंदिर 96 स्तंभों पर बना हुआ है. बेजोड़ शिल्प के नमूने इन स्तंभ में से 24 गोल स्तंभ मंदिर के जगमोहन कहलाने वाले भाग में हैं. बाकी 72 स्तंभ भी कहीं साधारण तो कहीं शिल्पयुक्त हैं. मंदिर परिसर की लंबाई 120 फीट 9 इंच है और चौड़ाई 85 फीट है. साथ ही दीवारों की मोटाई 57 इंच है. मंदिर पर लगे सिलावट के अनुसार 956 ईस्वी में इस मंदिर का निर्माण या पुनर्निर्माण किया गया था. हालांकि इतिहासकार इस मंदिर को 956 ईसवी से भी काफी पुराना बताते हैं.