भरतपुर.जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर बयाना स्थित है. जहां त्रेता युग के राक्षस बाणासुर का किला आज भी मौजूद है. जो ऊंची पहाड़ी पर काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है. जहां किले के लिए पहाड़ी पर चढ़ने के लिए इंसान को कई बार थककर बैठना पड़ता है. बताया जाता है कि बयाना को पहले बाणासुर की नगरी भी कहा जाता था.
त्रेता युग के राक्षस का बाणासुर का बयाना में किला बाणासुर की पुत्री का श्री कृष्ण के प्रपौत्र अनिरुद्ध से प्रेम
पौराणिक मान्यता के मुताबिक बाणासुर की पुत्री उषा के सपनों में एक राजकुमार दिखाई देता था. जहां उषा ने अपनी सहेली चित्रलेखा को यह वृतांत बताया था कि उसके सपनों में एक राजकुमार आता है. जिसे उसने कभी देखा भी नहीं और चित्रलेखा ने उषा के बताए अनुसार सपनों में आने वाले राजकुमार का चित्र बनाया था. जो भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र अनिरुद्ध का था. उसके बाद चित्र बनने के बाद उसको पता लगा की उसके सपने में आने वाले व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि श्रीकृष्ण के प्रपौत्र अनिरुद्ध है. जिसके बाद उषा को अनिरुद्ध से प्रेम हो गया और कहा जाता है की अनिरुद्ध रात को उषा से मिलने के लिए बाणासुर के किले में आया करता था.
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अनिरुद्ध को मारने की बाणासुर ने बनाई रणनीति
इस प्रेम प्रसंग का पता लगने पर बाणासुर काफी नाराज हुआ और उसने अनिरुद्ध को मारने की रणनीति बनाई थी. कहा जाता है की बाद में भगवान श्री कृष्ण ने बाणासुर का वध किया था. जिसके बाद उषा और अनिरुद्ध की शादी हुई थी.
बाणासुर राक्षस का श्रीकृष्ण ने किया संहार
भगवान श्रीकृष्ण को महर्षि परशुराम ने सुदर्शन चक्र भेंट किया. इससे बयाना के शासक बाणासुर राक्षस का संहार किया. श्रीमद्भागवत में बाणासुर की पुत्री ऊषा और श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के प्रेम का वर्णन है. तब श्रीकृष्ण ने उसी सुदर्शन चक्र से बाणासुर का वध किया. ऊषा की याद में चित्रलेखा मंदिर का निर्माण कराती है.
किले के पास कभी बहती थी गंभीरी नदी
वहीं बाणासुर के किले के पास ही गम्भीरी नदी बहती थी. जो आज विलुप्त हो चुकी है और उस समय गम्भीरी नदी बहने के कारण यह क्षेत्र काफी हरा भरा और संपन्न था. जहां पानी की कोई किल्लत भी नहीं थी और बाणासुर का किला ऊंची पहाड़ी पर स्थिति होने के कारण काफी सुरक्षित माना जाता था.
पांडवों ने भी यहां बिताया अज्ञातवास
यह भी कहा जाता है की अज्ञातवास के समय पांडवों ने भी यहां अपना अज्ञातवास बिताया था और काफी समय वे यहां रहे थे. जहां इस किले में आज भी भीम की लाट स्थिति है जो एक मीनार की तरह है. आज यह किला पुरातत्व विभाग के अधीन आता है, लेकिन फिर भी यह किला खंडहर में तब्दील हो चुका है. जहां किले के महज खंडर है और टूटे फूटे महल भी है.
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रात को कोई नहीं जाता किले के अंदर
यहां एक किवदंती भी मशहूर है की वर्ष में एक बार रात को 12 बजे इस किले में भूतों की बारात भी निकलती है. दिन में स्थानीय लोग और पर्यटक इस किले को देखने के लिए आते है, लेकिन रात को इस किले में जाता सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षित नहीं माना जाता है. इसलिए रात को इस किले में कोई भी नहीं जाता है.