भरतपुर.राजस्थान में राजपूत राजाओं के बीच इतिहास में अपनी अलग छाप छोड़ने वाला जाट राजा, जो किसी के सामने घुटने नहीं टेके, मराठाओं के साथ मिला, तो मुगलों को धूल चटा दी, ईश्वरी सिंह का साथ दिया तो सत्ता के राजसिंहसन पर बैठा दिया...और हाथों में तलवारें उठाई, तो युद्ध भूमि में दुश्मन को ढेर कर दिया. हम बात कर रहे हैं भरतपुर के महाराज सूरज मल की, जिनको लेकर मुगलों में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध थी कि 'तीर चले तलवार चले, चाहे इशारे से, अल्लाह अबकी बार बचाए जाट भरतपुर वारे से'.
महाराज सूरजमल से थर्राते थे मुगल 25 दिसंबर को महाराजा सूरजमल का 257वां बलिदान दिवस मनाया जा रहा है. उनका जन्म औरंगजेब की मौत वाले दिन ही 13 फरवरी 1707 को हुआ था. सूरजमल को वैर की जागीर अपने पिता बदन सिंह की ओर से मिली थी. साल 1733 में महाराज सूरजमल ने सोगरिया की फतहगढ़ी पर पर हल्ला बोल विजय हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने 1743 में उसी स्थान पर भरतपुर नगर की नींव रखी और 1753 में वहां आकर रहने लगे.
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सूरजमल ने ही भरतपुर में अभेद्य लोहागढ़ का किला बनवाया था. अंग्रेजों ने इस किले पर 13 बार अपनी तोपों से आक्रमण किया, लेकिन वे सफल नहीं हो सके. मिट्टी के बने इस किले की दीवारें इतनी मोटी बनाई गई थीं कि तोप के मोटे-मोटे गोले भी इन्हें कभी पार नहीं कर पाए. माना जाता है कि ये देश का एकमात्र किला है, जो हमेशा अभेद्य रहा.
कहा जाता है कि सूरजमल की जयपुर के महाराज जयसिंह से अच्छी मित्रता थी. जयसिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटों ईश्वरी सिंह और माधोसिंह के बीच गद्दी को लेकर झगड़ा होने लगा. जिसके बाद उदयपुर के महाराणा जगत सिंह छोटे पुत्र माधो सिंह के पक्ष में आ गए, जैसे ही इसकी सूचना महाराज सूरजमल को मिली, तो उन्होंने महाराज जयसिंह के बड़े बेटे ईश्वरी सिंह समर्थन में बिगुल बजा दिया. इसके बाद युद्ध हुआ और सूरज सिंह के समर्थन से ईश्वरी सिंह की जीत हुई. इसके बाद महाराजा सूरजमल का डंका सारे भारत में बजने लगा.
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महाराज सूरजमल का सपना दिल्ली पर विजय प्राप्त करने की थी. महाराजा ने दिल्ली पर चढाई की लेकिन वीरगति प्राप्त हो गए. जिसके बाद उनके पुत्र जवाहर सिंह ने अपने पिता की मौत का बदला लेने की ठानी और जवाहर सिंह ने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी और जीत हासिल की. महाराजा जवाहर सिंह ने दिल्ली का किला फतह तो किया ही लौटते वक्त वे चित्तौड़गढ़ का बुलंद दरवाजा उखाड़कर भरतपुर ले आए.
इतिहासकार बताते हैं कि महाराज सूरजमल ने 80 युद्ध किए और सभी युद्धों में उन्होंने जीत हासिल की. महाराज सूरजमल के समय जाट शक्ति अपने चर्मोत्कर्ष पर थी. लेकिन, साल 1763 का वो काला दिन 25 दिसंबर भी आ गया, जब हिंडन नदी के तट पर नवाब नजीबुद्दौला से युद्ध लड़ते हुए महाराज सूरजमल वीरगति को प्राप्त हो गए. महाराज सूरजमल को भारत के गौरवमयी इतिहास में एक ऐसे योद्धा के रूप में याद किया जाता रहेगा, जो कभी अपने शर्तों के साथ समझौता नहीं किया.