भरतपुर. नौंह गांव का नाम सुनते ही जेहन में पुरानी सभ्यता हिलोरे मारती है, लेकिन अब यह 'इतिहास' सड़ांध के बीच खतरे में है. नौंह गांव की प्राचीन सभ्यता से नगर निगम का कोई वास्ता नजर नहीं आ रहा है. अब नई पहचान की बात करें तो नौंह का नाम कचरा घर के रूप में सामने आ रह है. आश्चर्य तो इस बात का है कि कई सभ्यताओं का गवाह रहा यह गांव आज अपनी मूल पहचान खोकर सिर्फ नगर निगम के कचरा घर की वजह से पहचाना जाता है. ईटीवी भारत की टीम ने गांव पहुंच कर यहां के बुजुर्गों और इतिहासकारों से कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां जुटाईं.
मिले थे पांच सभ्यताओं के अवशेष : इतिहासकार रामवीर वर्मा बताते हैं गांव में 1963 में पुरातत्व विभाग की ओर से उत्खनन किया गया, जिसमें यहां की प्राचीन बस्ती और सभ्यताओं के बारे में जानकारी मिली. इसके द्वारा सबसे महत्वपूर्ण जानकारी यह मिली कि भारतवर्ष में ईसा पूर्व 12 वीं शताब्दी में लोहे का प्रयोग हुआ था. यहां से प्राप्त मूर्तियों से मौर्यकालीन, शुंग एवं कुषाण कालीन सभ्यता और कला का ज्ञान हुआ. यहां कुषाण नरेश हुविस्क और वासुदेव के सिक्के प्राप्त हुए, साथ ही ताम्र युगीन, आर्य युगीन और महाभारत कालीन सभ्यताओं के अवशेष भी मिले. वहीं, मौर्यकालीन चुनार के चिकने पत्थर के टुकड़े मिले.
राजस्थान में यहां दबी है 1100 ई. पू. की 'सभ्यता'...सुनिए विशाल यक्ष प्रतिमा : वर्ष 1963 के उत्खनन के दौरान यहां से विशालकाय दो यक्ष प्रतिमाएं प्राप्त हुईं. गांव के हरिमूल शर्मा ने बताया कि इनमें से के प्रतिमा (Noha Ancient Civilization Remnants) तभी से गांव में स्थित पुरातत्व विभाग के स्मारक में रखी है तो दूसरी संभवतः संग्रहालय में. गांव में रखी प्रतिमा में यक्ष का एक ही हाथ प्रदर्शित है. संभवतः दूसरा हाथ क्षतिग्रस्त हो गया हो.
पढे़ं :स्पेशलः दो नदियों का प्रवाह रोक बनाया गया था अभेद लोहागढ़ दुर्ग, मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ने टेके थे घुटने
गुप्तकाल की शिव-पार्वती विवाह मूर्ति : गांव में खुदाई के दौरान गुप्तकालीन एक और दुर्लभ मूर्ति मिली जो कि भरतपुर के संग्रहालय में रखी गई है. यह मूर्ति शिव-पार्वती के विवाह से संबंधित है. इस मूर्ति में भी शिव और पार्वती के चेहरे खंडित हैं. अनुमान है कि किसी (Shiva Parvati Marriage Idol of Gupta Period) समय इन मूर्तियों को खंडित करके मिट्टी में दफन कर दिया गया होगा.
भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण विभाग के बोर्ड उत्खनन में यह भी मिला : रामवीर वर्मा ने बताया कि यह एक लोहा युगीन सभ्यता है और यहां से प्राप्त मांड, काले और लाल वेयरयुक्त थे. जिसमें तश्तरियां, ढकने, घड़े आदि शामिल हैं. ऐतिहासिक काल में यहां सफाई के लिए गंदे पानी को संभावित करने के साधन थे जो मिट्टी के रिंग बेल के रूप में पहचाने जाते थे. यहां ऐसे 16 रिंगबेल मिले. यहां से लोहे के कृषि यंत्र और चक्रकूप के अवशेष भी मिले. नौंह सभ्यता का समय 1100 ई. पू. से 900 ई. पू. का माना जाता है.
पढ़ें :धरोहर बचाने की मशक्कत : बंदरों के कूदने से टेढ़ा हो गया विजय स्तम्भ का तड़ित चालक...पुरातत्व विभाग ने ली सुध
बेशकीमती प्रतिमा के चोरी का प्रयास : ग्रामीण हरिमूल शर्मा ने बताया कि कई वर्ष पूर्व सर्दियों की रात में घना कोहरा छाया हुआ था, तभी रात को तेज-तेज आवाज आने लगी. नींद खुली तो आवाज का पीछा किया. पता चला कुछ लोग गांव में रखी यक्ष प्रतिमा को जमीन से खोदकर खींच रहे थे. शोर मचाया तो चोर प्रतिमा को छोड़ भागे. बाद में पुरातत्व विभाग ने इस प्रतिमा को लोहे के पिंजरेनुमा मंदिर में रखवा दिया.
संरक्षण की जरूरत : ग्रामीण हरिमूल ने बताया कि कई सभ्यताओं के इतिहास को समेटने वाले इस गांव की आज पहचान ऐतिहासिकता के लिए नहीं, बल्कि कचरा घर के लिए होती है. नगर निगम द्वारा यहां बनाया गया (Negligence of Bharatpur Municipal Corporation) डंपिंग यार्ड यहां की पहचान बन गया है. जबकि हकीकत में पुरातत्व के इस गांव और यहां की ऐतिहासिक पहचान को संरक्षित करने की आवश्यकता है.