भरतपुर. लोहागढ़ वासियों के आराध्य देव श्री बांके बिहारी जी का श्री विग्रह (प्रतिमा) का इतिहास करीब 600 वर्ष पुराना (600 year old statue of Banke Bihari) है. नागा बाबा कल्याणगिरि चिंतामणि एक बार यमुना में स्नान कर रहे थे, उसी दौरान श्री बांके बिहारी का विग्रह/प्रतिमा उनकी गोदी में आ गया. उसके बाद नागा बाबा बांके बिहारी जी को बैलगाड़ी में लेकर वृंदावन से निकल पड़े. उस बैलगाड़ी का पहिया चलते-चलते वर्तमान मंदिर के स्थान पर आकर रुक गया.
बताया जाता है कि नागा बाबा ने यहीं पर श्री बांके बिहारी जी के विग्रह की स्थापना (Naga Sadhu established Banke Bihari Temple) कर दी. तभी से श्री बांके बिहारी भरतपुर वासियों के ईष्टदेव के रूप में कृपा बरसा रहे हैं. जन्माष्टमी पर (Banke Bihari temple on Janmashtami) यहां भक्तों की भीड़ जुटती है और आकर्षक सजावट भी रहती है.
भगवान कृष्ण ने सुलझाई जटाः मंदिर के पुजारी मनोज भारद्वाज ने बताया कि नागा बाबा कल्याणगिरि चिंतामणि नियमित रूप से चौरासी कोस की परिक्रमा लगाते थे. किवदंती है कि परिक्रमा के दौरान एक बार नागा बाबा की जटा झाड़ियों में उलझ गई. उसी समय भगवान श्रीकृष्ण एक बालक के रूप में प्रकट होकर बाबा की जटाएं सुलझाने लगे. नागा बाबा पहचान गए कि भगवान श्रीकृष्ण ही हैं. नागा बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि यदि आप सच में भगवान श्रीकृष्ण हैं तो कभी मेरी गोद में आकर विराजिए.