भरतपुर.पक्षियों का स्वर्ग माना जाने वाला विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park) बीते लंबे समय से पानी की कमी (Water crisis) की मार झेल रहा है. बीते वर्षों में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिलना बंद हो गया और अब हालात यह हैं कि यहां से साइबेरियन (Siberian) सारस समेत कई प्रजाति के हजारों प्रवासी पक्षियों ने मुंह मोड़ लिया है. जिन पक्षियों के कलरव से केवलादेव घना गुंजायमान रहता था, ऐसे कितने ही पक्षी आज देखने को नहीं मिलते.
प्राकृतिक जल स्रोत सिमटे, जल संकट बढ़ा
पक्षी विशेषज्ञ डॉक्टर सत्य प्रकाश मेहरा और सेवानिवृत्त रेंजर भोलू अबरार ने बताया कि पहले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में गंभीरी नदी, बाणगंगा नदी, पांचना बांध और रूपारेल नदी के माध्यम से पानी मिलता था. इससे यहां पर प्राकृतिक पानी के साथ ही पक्षियों के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन भी उपलब्ध होता था, जिसकी वजह से देसी - विदेशी सैकड़ों प्रजाति के लाखों पक्षी यहां प्रभात करते थे. लेकिन अब प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिलना बंद हो गया है और अब पहले की तरह पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा. जिसकी वजह से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अब पहले की तरह पक्षियों के लिए जरूरी विविध प्रकार की वनस्पति और भोजन में कमी आई है, प्राकृतिक बदलाव हुए हैं, जिसके चलते पक्षियों की प्रजातियों में कमी के साथ ही संख्या में भी गिरावट आई है.
लाखों से हजारों में सिमटी संख्या
पक्षी विशेषज्ञों की माने तो जब तक केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिल रहा था, तब तक यहां पर लाखों की संख्या में पक्षी आते थे, लेकिन बीते वर्षों की पक्षी गणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो अब घना में औसतन 55 से 57 हजार तक पक्षी पहुंच रहे हैं. इतना ही नहीं साइबेरियन सारस समेत कई प्रजाति के पक्षी अब यहां देखने को नहीं मिलते.
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इन प्रजातियों के पक्षियों ने मुंह मोड़ा
पक्षी विशेषज्ञ भोलू अबरार और डॉक्टर सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से अब कई प्रजाति के पक्षियों ने पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया है. पहले कई प्रजाति के पक्षी केवलादेव घना में अच्छी तादाद में देखने को मिलते थे, लेकिन अब वो कहीं नजर नहीं आते.
साइबेरियन सारस : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की विश्वस्तरीय पहचान साइबेरियन सारस की वजह से हुई थी, लेकिन वर्ष 2002 के बाद से केवलादेव घना में साइबेरियन सारस में आना बंद कर दिया.
लार्ज कॉरवेंट: अब नहीं आता. पहले यह पक्षी अच्छी संख्या में आता था और घना में पेड़ों पर घौंसला बनाकर प्रजनन और प्रवास करता था.
पेंटेड स्टॉर्क: पहले पेंटेड स्टॉर्क करीब 10 हजार की संख्या में आते थे, लेकिन अब मुश्किल से 2 या ढाई हजार ही आ रहे हैं.
मार्वल टेल: यह पक्षी भी पहले घना में आता था, लेकिन अब इसने भी आना बंद कर दिया है.
रिंग टेल्ड फिशिंग ईगल : तिब्बत से आता था, लेकिन अब बिल्कुल दिखाई नहीं देता.