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SPECIAL : 'अपना घर' में अपनों से मिले बरसों के बिछड़े...बेटी से लिपटकर रोई मां, बेटे से 16 साल बाद मिला पिता - Story of human compassion

भरतपुर में अपना घर आश्रम की स्थापना डॉ. बीएम भारद्वाज ने की है. उनकी पहल ने रिश्तों को उम्मीद की डोर में बांध रखा है. यहां रहने वाले लोग वो हैं जिनको वक्त और हालात ने अपनों से दूर कर दिया था. कभी कभी यहां ऐसे नजारे दिखाई देते हैं कि बरसों बाद कोई अपना बांहें फैलाकर मिलता है और अपने खोये हुए लाड़ले, लाड़ली को साथ ले जाता है. खोये हुए रिश्ते फिर एक हो जाते हैं. आंखें खुशी से बरसने लगती हैं.

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अपना घर आश्रम में आंखों से छलकी खुशियां

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Published : Feb 24, 2021, 7:15 PM IST

Updated : Feb 24, 2021, 10:23 PM IST

भरतपुर. अपना घर वो होता है जिसमें अपने होते हैं. लेकिन भरतपुर का अपना घर गुमशुदा लोगों के आसरा लेने की ऐसी जगह है. जहां लोगों की जिंदगी अपनों की याद में तकलीफ तो देती है. लेकिन जब बिछुड़े हुए मिलते हैं तो खुशियां अपना दामन फैला देती हैं. देखिये ये रिपोर्ट

अपना घर आश्रम में आंखों से छलकी खुशियां

भरतपुर में अपना घर आश्रम की स्थापना डॉ. बीएम भारद्वाज ने की है. उनकी पहल ने रिश्तों को उम्मीद की डोर में बांध रखा है. यहां रहने वाले लोग वो हैं जिनको वक्त और हालात ने अपनों से दूर कर दिया था. कभी कभी यहां ऐसे नजारे दिखाई देते हैं कि बरसों बाद कोई अपना बांहें फैलाकर मिलता है और अपने खोये हुए लाड़ले, लाड़ली को साथ ले जाता है. खोये हुए रिश्ते फिर एक हो जाते हैं. आंखें खुशी से बरसने लगती हैं.

केस 1 : 8 साल पहले बच्ची के साथ लापता हुई शायदा

12 साल पहले मध्यप्रदेश के धार की रहने वाली शायदा अपनी 14 महीने की बच्ची के साथ लापता हो गई थी. तब मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी. अपना घर आश्रम के संस्थापक डॉ बीएम भारद्वाज ने बताया कि मध्य प्रदेश के धार जिले की किसाउदा निवासी शायदा अक्टूबर 2012 को घर से लापता हो गयी थी. साथ में मासूम बेटी भी थी. 29 अक्टूबर 2012 को भरतपुर के रेलवे स्टेशन पर वह लावारिस स्थिति में मिली.

गुमशुदा लोगों का पता है अपना घर

शायदा को अपना घर आश्रम लाया गया और यहां उसकी उपचार के साथ देखभाल की गई. डॉ. भारद्वाज ने बताया कि वे खुद शायदा को लेकर मध्यप्रदेश के इंदौर गए. उम्मीद थी कि शायदा के माता-पिता कहीं मिल जाएंगे. लेकिन जब उसके परिजनों का कहीं कोई पता नहीं चला तो शायदा को वापस अपना घर आश्रम लेकर आ गए.

8 साल बाद बेटी और नातिन से मिली एक मां

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शायदा को लेने अपना घर आश्रम आये भाई मो. जाहिद और मां जमीला बी ने बताया कि लापता होने के बाद शायदा को उन्होंने हर जगह ढूंढा. बरसों तक ढूंढते रहे. लेकिन कहीं कोई पता नहीं चला. एक वक्त आने पर सभी लोग उम्मीद छोड़ चुके थे. लेकिन कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर अपना घर आश्रम के एक वीडियो में शायदा को देखा तो खुशी से आंखें चमक उठीं.

डॉ भारद्वाज ने बताया कि शायदा जब अपना घर आश्रम पहुंची तो साथ में 14 महीने की बेटी सानिया थी. जो अब साढ़े 9 साल की हो गयी है. अब मां - बेटी दोनों स्वस्थ हैं. बेटी छठी कक्षा में पढ़ती है.

अपना घर आश्रम में जब शायदा और उसकी बेटी सानिया को परिजनों के सामने लाया गया तो खुशी के आंसू छलक पड़े. मां-बेटी गले मिलकर देर तक रोईं. सानिया को भी नानी ने सीने से लगाकर जी भर दुलार किया. ये परिवार 8 साल बाद फिर से आबाद हुआ. शायदा का भाई भी बरसों बाद अपनी बहन और भांजी से मिला तो भावुक हो गया. उसने भरे गले से बताया कि कैसे बहन के खो जाने से पूरा परिवार परेशान रहा था.

केस 2 : 16 साल बाद बेटे से मिला पिता

बिहार के मूसापुर निवासी पोखनराम का पुत्र राजेश 16 साल पहले कमजोर मानसिक स्थिति के चलते घर से लापता हो गया. पुलिस में गुमशुदगी दर्ज कराई गई. पोखनराम ने जगह-जगह जाकर बेटे की तलाश की. लेकिन राजेश का कहीं पता नहीं चला. आखिर परिजनों ने अपने बेटे के मिलने की उम्मीद छोड़ दी.

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पिता पोखनराम ने बताया कि बेटा राजेश के लापता होने के बाद उसकी मां बेटे के गम में बीमार रहने लगी. 2014 में बेटे का इंतजार करते-करते मां चल बसी. पिता पोखनराम ने बताया कि वे बेटे के मिलने की उम्मीद छोड़ चुके थे. लेकिन कुछ दिन पहले सोशल साइट पर एक वीडियो में बेटा राजेश नजर आया.

16 साल बाद अपने खोए हुए बेटे से मिला पिता

उसके बाद अपना घर आश्रम में संपर्क किया और कंफर्म होने पर बिहार के मूसापुर से 900 किमी दूर अपने बेटे को लेने पोखनराम भरतपुर के अपना घर आश्रम पहुंचे गए. आखिरकार 16 साल बाद पिता का इंतजार अपना घर आकर खत्म हुआ.

कुल मिलाकर ये तस्वीरें अपना घर आश्रम के इस परिवार को खुशी भी देती हैं और दर्द भी. अपनों से बिछड़ने के बाद दुनिया में कुछ लोग फिर अपने हो जाते हैं. रिश्तों की डोर में बंधकर लोग यहां से चले जाते हैं. लेकिन अपनों को मिलाने वाले खुद अपनों से दूर हो जाते हैं. अपना घर आश्रम के संस्थापक डॉ भारद्वाज ने बताया कि सोशल साइट के माध्यम से वो हमेशा प्रयास करते रहते हैं कि आश्रम में रहने वाले लोगों को उनके परिजन मिल जाएं.

Last Updated : Feb 24, 2021, 10:23 PM IST

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