भरतपुर. राजा मानसिंह हत्याकांड के आरोपियों को 35 साल बाद न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. न्याय के लिए 35 साल की लंबी लड़ाई में राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह, उनकी बेटी और पूर्व पर्यटन मंत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा और नवासे दुष्यंत सिंह ने कड़ा संघर्ष किया. न्याय की इस लड़ाई में राजा मान सिंह के परिवार को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा.
राजा मानसिंह के नवासे दुष्यंत सिंह ने बताया कि यह पूरा घटनाक्रम राजनीतिक दुष्चक्र के तहत हुआ था. ऐसे में इस केस में शुरुआत में काफी उतार-चढ़ाव आए. पुलिस ने इस पूरे घटनाक्रम को एक अलग अर्थ में प्रस्तुत करने का प्रयास किया. भरतपुर जिले समेत राजस्थान की जनता में इस घटनाक्रम को लेकर काफी आक्रोश था. पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराने के लिए सीबीआई जांच की मांग की गई और मजबूरन राजस्थान सरकार को सीबीआई को जांच सौंपनी पड़ी. 28 फरवरी, 1985 को सीबीआई जांच के आदेश हुए और जुलाई 1985 में सीबीआई ने चार्जशीट फाइल की.
दुष्यंत सिंह ने बताया कि उसके बाद जयपुर के सेशन कोर्ट में इसकी सुनवाई शुरू हुई और अगले लगभग 5 साल तक वहां पर सुनवाई होती रही. 17 दिसंबर, 1989 मे राजा मानसिंह की बेटी कृष्णेंद्र कौर दीपा ने सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी लगाई और उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई जयपुर सेशन न्यायालय से मथुरा सेशन न्यायालय में ट्रांसफर करने के आदेश दिए.
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सबसे छोटी बेटी ने संभाला मोर्चा
दुष्यंत सिंह ने बताया कि राजा मानसिंह की 3 बेटियां हैं. सबसे बड़ी बेटी गिरेंद्र कौर जो कि नोएडा में रहती हैं, दूसरे नंबर की बेटी रविंद्र कौर जो कि बचपन से ही दिव्यांग है और सबसे छोटी बेटी कृष्णेंद्र कौर दीपा है. घटनाक्रम के समय कृष्णेंद्र कौर दीपा के पति विजय सिंह राजा मानसिंह के साथ जोंगा में बैठे हुए थे. जोंगा में बैठे चार लोगों में से सिर्फ विजय सिंह ही जिंदा बचे और उन्होंने ही राजा मानसिंह के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए मामला दर्ज कराया था और उसी लड़ाई को राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह, बेटी कृष्णेंद्र कौर दीपा एवं नवासे दुष्यंत सिंह ने आखिर तक लड़ा.
दुष्यंत सिंह ने बताया कि जिस समय यह घटना हुई उस समय वह स्कूल में पढ़ते थे. उस समय उन्हें यह बात समझ में आती थी कि किसी ने उनके नाना की हत्या कर दी है. जब भी उनके माता-पिता न्यायालय में सुनवाई के लिए जाते तो वह भी उनके साथ जाते थे. लेकिन बीते 15 साल से दुष्यंत सिंह इस न्याय की लड़ाई में पूरी तरह से अपने माता-पिता के साथ खड़े होकर संघर्ष करते रहे हैं.
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