भरतपुर. पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन और उसका असर देखने को मिल रहा है. बीते तीन दशक में जलवायु में हुए बदलावों के आंकड़ों के अध्ययन (Disclosure in Study Report) में सामने आया है कि भरतपुर का जलवायु तंत्र इस परिवर्तन से काफी प्रभावित (Climate system changed of Bharatpur) हुआ है. मौसम विभाग के आंकड़ों की मानें तो बीते तीन दशक में भरतपुर जिले में बरसात के औसत दिनों (average rainy days of Bharatpur) में गिरावट दर्ज की गई है. इसके साथ ही सर्दियों के न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी हुई है. इसका सीधा असर विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले प्रवासी पक्षियों पर देखने को मिला है.
राजपूताना सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री (आरएसएनएच) के निदेशक एवं पर्यावरणविद डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा के निर्देशन में बीएससी स्टूडेंट हर्ष सिंघल ने 'क्लाइमेट चेंज एंड द अविफौनल पैटर्न ऑफ द वेटलैंड्स इन एंड अराउंड केवलादेव नेशनल पार्क' विषय पर अध्ययन किया. जबिक शोधार्थी हर्ष सिंघल ने विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के इंस्पायर फेलो के रूप में इस पर स्टडी की है.
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20% कम हुए बरसात के दिन
डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि शोधार्थी हर्ष सिंघल ने वर्ष 1990 से 2020 तक के बरसात के आंकड़ों का अध्ययन किया है. सिंघल ने बताया कि 1991 से 2000 तक के दशक में जहां बरसात के दिन औसतन 35 तक हुआ करते थे. वहीं वर्ष 2011 से 2020 तक बरसात के दिन 25 से 27 तक ही सिमट गए हैं. यानी 30 वर्ष में बरसात के औसत दिनों में करीब 20% तक की गिरावट दर्ज की गई.
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बढ़ गया सर्दियों का न्यूनतम तापमान
अध्ययन में सामने आया है कि वर्ष 1991 से 2000 के दशक में जहां सर्दियों के मौसम में औसत न्यूनतम तापमान 3 से 4 डिग्री रहा करता था, अब वर्ष 2011 से 2020 के दौरान यह 6 से 7 डिग्री तक पहुंच गया है. यानी सर्दियों के औसत न्यूनतम तापमान में 2 से 3 डिग्री तक कि वृद्धि हुई है, जो कि जलवायु में बड़े परिवर्तन का सूचक है.
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पक्षियों की कॉलोनी में 70 फीसदी कमी
अध्ययन के आंकड़ों में जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले प्रवासी पक्षियों के घोंसलों पर देखने को मिला है. वर्ष 1991 में जहां केलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों के 5549 घोंसले दर्ज किए गए थे. वहीं वर्ष 2020 में यह घोंसले सिर्फ 1586 दर्ज किए गए हैं, यानी 3 दशक में इनमें करीब 70 फीसदी कमी आई है.
कई वर्ष सूखा का असर
वहीं जिले में बीते 3 दशक में कई साल ऐसे भी रहे जब बहुत कम बरसात की वजह से उद्यान में प्रवासी पक्षियों ने घोंसले ही नहीं बनाए. उद्यान प्रशासन के आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1997, 1999, 2000, 2002, 2003, 2004, 2006 और 2009 में घोंसलों की संख्या शून्य रही.
विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के इंस्पायर फेलो हर्ष सिंघल ने बताया कि उन्होंने यह स्टडी करीब एक साल में पूरी की है. इसमें मौसम विभाग, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और सरसों अनुसंधान निदेशालय से मिले 30 साल के आंकड़ों के आधार पर अध्ययन किया है.