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केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान के पक्षियों पर बीमारी का खतरा, मृत मवेशियों का मांस खाते हैं पक्षी

भरतपुर में स्थित वर्ल्ड हेरिटेज केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान के पास जगह-जगह शहर के मृत मवेशियों को डाला जाता है. जिससे वहां के पक्षियों पर खतरा मंडरा रहा है. लेकिन उद्यान प्रशासन और नगर निगम प्रशासन विश्व विरासत की सुरक्षा को लेकर संवेदनशील दिखाई नहीं दे रहे हैं.

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Published : Jan 5, 2020, 12:07 PM IST

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पक्षियों पर बीमारी का खतरा

भरतपुर. जिले में स्थित वर्ल्ड हेरिटेज केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान पर खतरा मंडरा रहा है, जो कभी भी त्रासदी का रूप ले सकता है. पक्षी उद्यान की रेंज और उसकी बाउंड्रीवॉल से महज 300 मीटर दूर खाली पड़ी जगह में शहर के मृत मवेशियों को डाला जाता है. जहां पक्षी मृत मवेशियों का मांस खाने के लिए आते हैं, जिससे पक्षियों में गंभीर बीमारी फैल सकती है.

पक्षियों पर बीमारी का खतरा

जयपुर-आगरा नेशनल हाईवे पर है पक्षी उद्यान

यह पक्षी उद्यान जयपुर-आगरा नेशनल हाईवे पर स्थित है. यह 19 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. देश-विदेश से करीब 363 प्रकार की प्रजातियों के पक्षी नवंबर शुरू होते ही यहां आते हैं. पक्षी ब्रीडिंग करते हैं और बच्चों को जन्म देते हैं. बाद में उनका पालन-पोषण करते हैं और मार्च महीने के शुरू में सभी अपने देशों में वापस लौट जाते हैं.

पक्षियों का स्वर्ग

विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान को पक्षियों का स्वर्ग भी कहा जाता है. मानसून और सर्दी के मौसम में यहां अप्रवासी पक्षी यूरोप, एशिया, साइबेरियन सहित कई देशों से आते हैं और ब्रीडिंग कर बच्चों को जन्म देते हैं. इन पक्षियों को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश के पर्यटक आते हैं, जिससे बर्ड सेंक्चुरी की आमदनी होती है.

डेंजर जोन

केवलादेव पक्षी उद्यान साल 2008 में पानी की कमी के चलते संकट में आ गया था. जिसके बाद यूनेस्को ने इसे डेंजर जोन की सूची में डाल दिया था, क्योंकि उन दिनों यहां बारिश की कमी थी. जो पानी पहले करौली के पांचना बांध से मिलता था, उसे बंद कर दिया गया था. लेकिन उसके बाद केंद्र और राज्य सरकारों की मदद से चंबल और गोवर्धन ड्रेन के जरिये यमुना पानी की आवक शुरू हुई, जिससे यहां पानी का संकट दूर हुआ.

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विश्व विरासत

केवलादेव पक्षी उद्यान को 1982 में राष्ट्रीय पक्षी उद्यान की सूची में सम्मलित कर लिया गया था. यूनेस्को ने 1985 में इसे विश्व विरासत की सूची में सम्मलित कर लिया था, लेकिन पानी की कमी के चलते यूनेस्को ने इसे 2008 में डेंजर जोन में डाल दिया था.

नगर निगम की आयुक्त नीलिमा तक्षक ने बताया, कि पहले नगर निगम ने मृत पशुओं को डालने का ठेका दे रखा था. फिलहाल, काफी समय से ठेका व्यवस्था बंद कर दी है और खुद नगर निगम प्रशासन ही शहर में मृत होने वाले मवेशियों को दूसरी जगह ले जाता है और गड्ढा खोदकर दफनाता है. आयुक्त ने बताया, कि उन्होंने निदेशक से कहा है, कि वह कार्रवाई करें और मृत मवेशियों को डालने वाले वाहनों को जप्त कर उनके खिलाफ कार्रवाई करें.

वहीं केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान के निदेशक मोहित गुप्ता ने बताया, कि इसको लेकर उन्होंने नगर निगम को रिपोर्ट किया है, जिससे डंपिंग का काम रोका जा सके और मृत मवेशियों को यहां नहीं डाला जाए, इसके लिए भी हम प्रयास कर रहे हैं.

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